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Apni mehboba ko mushqil me dal raha hu by ajay prasad

 अपनी महबूबा को मुश्किल में डाल रहा हूँ   अपनी महबूबा को मुश्किल में डाल रहा हूँ उसकी मोबाइल आजकल  खंगाल …


 अपनी महबूबा को मुश्किल में डाल रहा हूँ 

Apni mehboba ko mushqil me dal raha hu by ajay prasad

 अपनी महबूबा को मुश्किल में डाल रहा हूँ

उसकी मोबाइल आजकल  खंगाल रहा हूँ ।

क्या पता कि कुछ पता चल जाए मुझे यारों

क्यों  मैं उसकी नज़रों में अब जंजाल रहा हूँ।

उसकी गली के कुत्ते भी मुझ पर भौंकते  हैं

कभी जिस गली में जाकर मालामाल रहा हूँ।

जिसके  निगाहें  करम से था मैं बेहद अमीर

फिर अब किस वज़ह से हो मैं कंगाल रहा हूँ।

बेड़ा गर्क हो कम्बखत नये दौर में  इश्क़ का

था कभी हठ्ठा क्ठ्ठा अब तो बस कंकाल रहा हूँ

-अजय प्रसाद


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