Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Sukh dukh ki kahani by siddharth pandey

 सुख दुःख की कहानी आँखों में उसने तराशी हैं खुशियां , न ढूँढ़ पाना तो अपनी नाकामी। ख़ुशी उसने बख्शी …


 सुख दुःख की कहानी

Sukh dukh ki kahani by siddharth  pandey

आँखों में उसने तराशी हैं खुशियां ,

न ढूँढ़ पाना तो अपनी नाकामी।

ख़ुशी उसने बख्शी है चेहरे पे सबके ,

गर दुख ढूँढ़ ले तो है कैसी हैरानी।

जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।

संभल के है रहना बुरे दिनों में अब तो,
कहीं रूठ ना जाये अपनी जवानी।

उसे लोग कहते थे निकम्मा बड़ा है।
ऐसे ही बे फालतू का पड़ा है।

लोगों की बातों ने उसे ऐसा झिंझोरा,
कि उसने है अब काबिल बनने की ठानी।

जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।

वो घर पे बैठे अनेक सपने था बुनता।
कही कहायी बातों को भी था वो सुनता।

कभी कह न पाया वो अपने मन की व्यथा को,
एक कहानी भी थी ऐसी ,जो थी सबको सुनानी।

जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।

उसने है सोचा ये मुझको पता है,
खुशियां आखिर क्यों लापता है।

वैसे तो मुझमे है कितनी अच्छाइयाँ,
मुझको पता है ,क्यों हैं सबको गिनानी।

जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।

सिद्धार्थ पाण्डेय


Related Posts

रसेल और ओपेनहाइमर

रसेल और ओपेनहाइमर

October 14, 2025

यह कितना अद्भुत था और मेरे लिए अत्यंत सुखद— जब महान दार्शनिक और वैज्ञानिक रसेल और ओपेनहाइमर एक ही पथ

एक शोधार्थी की व्यथा

एक शोधार्थी की व्यथा

October 14, 2025

जैसे रेगिस्तान में प्यासे पानी की तलाश करते हैं वैसे ही पीएच.डी. में शोधार्थी छात्रवृत्ति की तलाश करते हैं। अब

खिड़की का खुला रुख

खिड़की का खुला रुख

September 12, 2025

मैं औरों जैसा नहीं हूँ आज भी खुला रखता हूँ अपने घर की खिड़की कि शायद कोई गोरैया आए यहाँ

सरकार का चरित्र

सरकार का चरित्र

September 8, 2025

एक ओर सरकार कहती है— स्वदेशी अपनाओ अपनेपन की राह पकड़ो पर दूसरी ओर कोर्ट की चौखट पर बैठी विदेशी

नम्रता और सुंदरता

नम्रता और सुंदरता

July 25, 2025

विषय- नम्रता और सुंदरता दो सखियाँ सुंदरता व नम्रता, बैठी इक दिन बाग़ में। सुंदरता को था अहम स्वयं पर,

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

Next

Leave a Comment