बरखा
बरखा रानी आओ ना
बूंद बूंद बरसाओ ना
तपती धरती का व्याकुल अंतर्मन
क्षुब्ध दुखी सबका जीवन
शीतल स्पर्श कर जाओ ना
बूंद बूंद बरसाओ ना
बासी बासी लगती सृष्टि
धूल ही धूल जहां तक दृष्टि
ठंडा स्नान कराओ ना
बूंद बूंद बरसाओ ना
चमक उठे पेड़ और पौधे
धरती फिर हरियाली चूनर ओढे
नव श्रृंगार सजाओ ना
बूंद बूंद बरसाओ ना
धुल जाए यह धरा का जहर
जीवों में हो खुशी की लहर
एक बार फिर हर्षाओ ना
बूँद बूँद बरसाओ ना
घुमड़ घुमड़ कर बादल बरसे
धरती से आलिंगन को तरसे
सुखद मिलन करवाओ न
बूँद बूँद बरसाओ ना
– श्वेता तिवारी
रीवा मध्यप्रदेश
स्वरचित,,मौलिक
