Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

cinema, Virendra bahadur

सुपरहिट:बेटी नहीं, बेटी जैसी ‘सुजाता’

सुपरहिट:बेटी नहीं, बेटी जैसी ‘सुजाता’ महात्मा गांधी की मनपसंद फिल्म कौन सी थी, यह कोई पूछे तो फिल्म राम राज्य …


सुपरहिट:बेटी नहीं, बेटी जैसी ‘सुजाता’

सुपरहिट:बेटी नहीं, बेटी जैसी 'सुजाता'

महात्मा गांधी की मनपसंद फिल्म कौन सी थी, यह कोई पूछे तो फिल्म राम राज्य का नाम अधिकतर लोगों को याद आ जाएगा। मूल पलिताणा (गुजरात) के ब्राह्मण परिवार के विजय भट्ट ने 1943 में बनी इस फिल्म का एक खास शो महात्मा के लिए मुंबई के जुहू में आयोजित किया था। पर अगर आप से कोई यह पूछे कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की फेवरिट फिल्म कौन थी तो झट से जीभ पर कोई नाम नहीं आएगा। यह सच है कि नेहरू आधुनिक मौजशौक करने वाले आदमी थे, पर वह फिल्मों के शौकीन थे, यह बात ध्यान में नहीं आती। एक फिल्म इसमें अपवाद है, विमल राय की 1959 में आई फिल्म ‘सुजाता’।
अंतर्जातीय विवाह पर आधारित इस फिल्म को बेस्ट फिल्म, बेस्ट ऐक्ट्रेस, बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट स्टोरी का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था और नेशनल अवार्ड भी मिला था। फिल्म ‘सुजाता’ को फ्रांस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कांस फिल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित किया गया था। पंडित नेहरू ने यह फिल्म देखी थी और वह इससे इतना प्रभावित हुए थे कि 28 जून, 1959 को लिखे एक पत्र में कहा था,
“फिल्म की फोटोग्राफी और कहानी अच्छी है। फिल्में उपदेश देने लगें तो बोरिंग हो जाने का खतरा रहता है। मैंने देखा कि ‘सुजाता’ में इस गलती से बचा गया है और एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय को अत्यंत संयमित रूप से छेड़ा गया है।”
‘दो बीघा जमीन’, ‘परिणीता’, ‘बिराज बहू’, ‘देवदास’, ‘मधुमती’, ‘परख’ और ‘बंदिनी’ जैसी क्लासिक फिल्में देने वाले यथार्थवादी फिल्म निर्माता बंगाली बाबू विमल राय के यशस्वी कैरियर में ‘सुजाता’ एक सीमाचिह्न के समान है। भारत की आजादी की लड़ाई चल रही थी, साथ ही उस समय समांतर सामाजिक सुधार की भी लड़ाई चल रही थी, क्योंकि उस समय सामाजिक-राजनैतिक नेताओं की समझ में आ गया था कि भारतीयों की गुलामी का एक कारण उनका पिछड़ापन, निरक्षरता, अंधविश्वास और जातीय भेदभाव है। इसलिए समाज में आधुनिक विचार और जीवनशैली प्रचलित करने की जागृति का भी काम हो रहा था।
उस समय के फिल्म निर्माताओं ने भी अपनी तमाम फिल्मों में सामाजिक मुद्दों को उठाया था। खास कर बंगाल में सुधारवादी आंदोलन बहुत तीव्रता से चल रहा था। इसलिए वहां के साहित्य-सिनेमा में इसकी झलक अधिक देखने को मिल रही थी। सुबोध घोष नाम के एक बंगाली लेखक और पत्रकार ने ‘सुजाता’ नाम का उपन्यास लिखा था, जो विमल राय की फिल्म का आधार बना था। (घोष की ही ‘जातु गृह’ की कहानी पर गुलजार ने ‘इजाजत’ बनाई थी)।
‘सुजाता’ एक अर्थ में सिर पर चढ़ाने जैसी फिल्म थी। ऊपर से तो यह एक प्रेम कहानी थी, पर इस लॉलीपॉप में विमल दा ने ऊंचनीच के भेद का कड़वा घूंट पिलाया था, जो तत्कालीन समाज की एक कड़वी वास्तविकता थी और आज भी है। इसलिए यह फिल्म आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इसकी कहानी कुछ इस तरह है।
एक ब्राह्मण युगल उपेन चौधरी और चारु (तरुण बोस और सुलोचना लतकर) महामारी में मर चुकी अपनी कामवाली की बेटी को पालते हैं और उसका नाम रखते हैं ‘सुजाता’ (नूतन)। उपेन को सुजाता बेटी जैसी लगती है, पर चारु और उसकी बुआ (ललिता पवार) उसे अछूत मान कर उपेक्षित करती रहती हैं। फिल्म का पहला एक घंटा यह तय करने में चला जाता है कि सुजाता ‘बेटी जैसी है’ पर ‘बेटी’ नहीं, क्योंकि वह ‘नीची जाति’ की है। चारु का एक संवाद भी है, “वो हमारी बेटी नहीं, हमारी बेटी जैसी है।”
बुआ का बेटा अधीर (सुनील दत्त) सुजाता से प्यार करने लगता है। पर बुआ की इच्छा चारु की असली बेटी रमा (शशिकला) के साथ उसका विवाह करने की थी। एक दिन चारु और बुआ की बात सुजाता के कान में पड़ती है, तब उसे पता चलता है कि वह अछूत है। इस हकीकत को स्वीकार कर के वह अधीर को दूर रखने की कोशिश करती है, परंतु अधीर शहर में पढ़ा-लिखा आधुनिक विचारों वाला युवक है। वह इस ऊंचनीच के रीति-रिवाजों को नहीं मानता।
एक दिन चारु का एक्सीडेंट हो जाता है और उसे खून की जरूरत पड़ती है। उसे खून मात्र सुजाता ही दे सकती है। सुजाता की यह उदारता देख कर चारु के दिल में परिवर्तन आता है और अब वह सुजाता को बेटी की तरह प्यार करने लगती है। अंत में बुआ भी अधीर और सुजाता के संबंधों को स्वीकार कर लेती है।
पचास के दशक में जब भारतीय समाज में छुआछूत का खूब चलन था, तब विमल राय ने एक ऐसी संयमी फिल्म बनाई थी, जिसमें न तो कोई उपदेश देने की भावना थी, न तो लोगों को उसकाने का आक्रोश और न ही सहानुभूति पाने का रोनाधोना। उन्होंने तत्काल समाज की एक क्रूर व्यवस्था के बारे में किसी भी तरह का जजमेंट दिए बगैर हर पात्र की संवेदना को ध्यान में रख कर हल्का से एक मुक्का मारा था। नेहरू को उनकी यही बात पसंद आई थी।
छुआछूत के खिलाफ सब से अधिक जागृति का काम महात्मा गांधी और डा.अम्बेडकर ने किया था। फिल्म में एक दृश्य में गाधीजी का परोक्ष संदर्भ भी है। अछूत होने के अपमान से बचने के लिए सुजाता आत्महत्या करने के लिए बरसात में निकल पड़ती है, पर वह महात्मा घाट पर पहुंच जाती है, जहां महात्मा की प्रतिमा के नीचे लिखा होता है, “मरे कैसे? आत्महत्या कर के? कभी नहीं, आवश्यकता हो तो जिंदा रह कर मरें।” यह पढ़कर सुजाता की उत्तेजना शांत हो जाती है।
हमने कोरोनाकाल में देखा है कि संक्रामक रोग में जातिभेद किस तरह उभर कर बाहर आता है। विमल राय ने पचास साल पहले के इस भारतीय समाज की बात इस फिल्म में की थी, जिसमें कालरा जैसा रोग एक निश्चित वर्ग में ही फैलता है। एक दृश्य में गांव का पंडित अमुक लोगों को बवाल करने से मना करते हुए ‘वैज्ञानिक कारण’ बताता है कि ये लोग नशीली गैस छोड़ते हैं।
फिल्म की विशेषता नूतन थीं। जिन्हें सुजाता की भूमिका के लिए बेस्ट ऐक्ट्रेस का फिल्म फेयर अवार्ड मिला था (विमल राय को बेस्ट फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड मिला था)। नूतन हिंदी सिनेमा की अभिनेत्रियों में से एक हैं, जिन्हें ‘नेचुरल ऐक्ट्रेस’ कहा जाता है। वह किसी भी भूमिका में इतनी सहज रूप से ओतप्रोत हो जाती हैं कि ऐसा लगता है कि नूतन खुद ही ऐसी ही होंगी। फिल्म सुजाता में एक काली और अछूत लड़की का उनका अभिनय देख कर लगता है कि जैसे नूतन असल में सामाजिक अन्याय का शिकार बनी होंगी।
फिल्म का अन्य सशक्त पक्ष था उसका संगीत। मजरूह सुल्तानपुरी के बोल और एस डी बर्मन के संगीत ने उसमें जादू खड़ा कर दिया था। कुल सात गाने थे और पांच इतने सदाबहार थे कि आज भी लोकप्रिय हैं। सुनो मेरे बंधू रे, जलते हैं जिसके लिए, काली घटा छाए मोरा जिया तरसाए, तुम जियो हजारो साल और बचपन के भी क्या दिन थे।
1995 में नूतन ने एक इंटरव्यू में कहा था, “मेरी पसंद की दो भूमिकाएं बंदिनी और सुजाता थीं। दोनों फिल्मों ने स्त्रीत्व के ऐसे अंजाने पक्षों को इतने ताकतवर रूप से बताया था, जो मेरी दूसरी फिल्मों में देखने को नहीं मिला।

About author 

वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336

वीरेन्द्र बहादुर सिंह
जेड-436ए सेक्टर-12,
नोएडा-201301 (उ0प्र0)
मो-8368681336


Related Posts

मिलन की रैना और ‘अभिमान’ का अंत | milan ki Raina aur abhiman ka ant

February 4, 2023

सुपरहिट  मिलन की रैना और ‘अभिमान’ का अंत जिस साल अमिताभ बच्चन की पहली सुपरहिट फिल्म ‘जंजीर’ आई (मई 1973),

RRR movie : Golden globe se Oscar tak

February 1, 2023

 आरआरआर : गोल्डन ग्लोब से ऑस्कर तक ए.आर.रहमान को जब गोल्डन ग्लोब अवार्ड मिला था, पूरे भारत के लोगों ने

सुपरहिट-दृष्टिभ्रम के मास्टर पीटर परेरा की मास्टरपीस ‘मिस्टर इंडिया’

January 29, 2023

सुपरहिट-दृष्टिभ्रम के मास्टर पीटर परेरा की मास्टरपीस ‘मिस्टर इंडिया’ हिंदी फिल्मों में एक्टर, एक्ट्रेस, डायरेक्टर और संगीतकार (इसी क्रम में)

गणतंत्र दिवस पर लेख | Republic day spacial

January 24, 2023

 नियम और कानून का पालन ही है सही ढंग से गणतंत्र दिवस मनाना 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस। इस दिन

जिलियन हसलम : एक ब्रिटिश इंडियन महिला जो भारत को नहीं भूल सकती | jillian haslam

January 23, 2023

जिलियन हसलम : एक ब्रिटिश इंडियन महिला जो भारत को नहीं भूल सकती भारत की आजादी के बाद ज्यादातर अंग्रेज

सुपरहिट कन्हैयालाल: कर भला तो हो भला | Superhit Kanhaiyalal

January 19, 2023

सुपरहिट कन्हैयालाल: कर अच्छा तो हो अच्छा ओटीटी प्लेटफॉर्म एम एक्स प्लेयर पर ‘नाम था कन्हैयालाल’ नाम की एक डाक्यूमेंट्री

Leave a Comment