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शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा-घटता अपनापन

शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा-घटता अपनापन भौतिकता की पराकाष्ठा के समय में जिसमें प्रत्येक कार्य व रिश्तों को धन की बुनियाद पर …


शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा-घटता अपनापन

शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा-घटता अपनापन

भौतिकता की पराकाष्ठा के समय में जिसमें प्रत्येक कार्य व रिश्तों को धन की बुनियाद पर खड़ा किया जाने लगा है और वो सम्पूर्ण मानव जाति के लिये घातक कदम साबित हो रहा हैं सम्प्रति विवाहों में धन का प्रदर्शन किन-किन तरीकों से होने लगा है सब कल्पनातीत है, आज इंसान को अपने धन की बाहुलता को सिद्ध करने का अवसर विवाह ही नजर आता है और वो ऐसा मान बैठा की विवाह से अच्छा कोई अवसर नहीं है जहाँ धनखर्च किया जाए ? जबकि विवाह एक संस्कार है जिसमें मानवीय व सामाजिक मूल्यों की मर्यादा का पालन करते हुए सम्पन्न करना आपेक्षित होता है। इसलिए विवाह को सोलह संस्कारों में स्थान मिला है। आज अगर कुछ युवा समाज को राह दिखा रहे हैं तो इसकी सराहना करनी चाहिए। लेकिन चाहे कोई कितना विरोध करे, वह तब तक सार्थक नहीं हो सकता जब तक समाज के बहुसंख्यक लोगों की सहमति न हो। आज के इस दिखावे के युग में यह कब होगा, समय बताएगा।
-डॉ सत्यवान सौरभ

हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की। सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हैं, शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल में शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है! अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियां होने लगी है। शादियों के आयोजन के लिए बड़े नामी-गिरामी सैवन स्टार होटल बुक करने की भी परिपाटी बनती जा रही है। इन होटलों में लाखों रुपए खर्च कर शादी का सैट खड़ा किया जाने लगा है। शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता ह। आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं। इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि सिर्फ कार वाले मेहमान ही रिसेप्शन हॉल में आये। और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है।

ऐसी शादियों को देखकर मध्यम व निम्न वर्ग भी शादियों में पैसे को पानी की तरह बहाने से जरा भी नहीं हिचकिचा रहे। यहां तक कि लोग शादी में अपना स्तर, रुतबा और झूठी शानो-शौकत का प्रदर्शन करने के लिए कर्ज लेकर भी महंगी शादियां आयोजित कर रहे हैं। एक मजेदार चीज और है। जो शादी ड्रीम वैडिंग कही जाती थी, उसे टूटने में दो पल नहीं लगते। कल तक जहां तलाक इक्का-दुक्का सुनाई देते थे, वे आज सैंकड़ों गुना बढ़ गए हैं। किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है !किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है। किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है। और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है। इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है। सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है। भौतिकता की पराकाष्ठा के समय में जिसमें प्रत्येक कार्य व रिश्तों को धन की बुनियाद पर खड़ा किया जाने लगा है और वो सम्पूर्ण मानव जाति के लिये घातक कदम साबित हो रहा हैं सम्प्रति विवाहों में धन का प्रदर्शन किन—किन तरीकों से होने लगा है सब कल्पनातीत है, आज इंसान को अपने धन की बाहुलता को सिद्ध करने का अवसर विवाह ही नजर आता है और वो ऐसा मान बैठा की विवाह से अच्छा कोई अवसर नहीं है जहाँ धनखर्च किया जाए ?

जबकि विवाह एक संस्कार है जिसमें मानवीय व सामाजिक मूल्यों की मर्यादा का पालन करते हुए सम्पन्न करना आपेक्षित होता है। इसलिए विवाह को सोलह संस्कारों में स्थान मिला है। इस संस्कार में रिश्तेदारों का मिलना जुलना शुभ माना जाता है मगर आजकल की शादियों में प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है। क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए है। मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है। रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं। सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते है। और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है। कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता। वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं। आज सब कुछ विपरीत हो रहा है ना तो परवाह है रीति रिवाजों की ना सामाजिक मूल्यों की बस यदि है तो मीनू के कितने प्रकार के व्यंजन है, पेय पदार्थ कितने हैं, बाहरी साज सज्जा कैसी है यदि इसमें कोई कमी रह जाती है तो सगे सम्बन्धी, मित्रगण अपनी प्रतिकूल टिप्पणी करने में देरी नहीं करते जबकि विवाह सामाजिक समरसता को उर्वर बनाने का माध्यम है।

और इन सबकी आलोचना से बचने के लिए इंसान जिसके पास धन की कमी है वो किसी वित्तीय संस्था या साहुकार से कर्ज लेकर उनकी आलोचना से बचने का प्रयास करता है। इस झूठी संस्कृति ने निम्न वर्ग को उच्च वर्ग की नकल करने के लिए, अपना शोषण करवाने को मजबूर कर दिया अब विवाहों में नैसर्गिक खुशियों का स्थान कृत्रिम साधनों के द्वारा अर्जित खुशियों ने ले लिया है। जिसमें मानसिक संतुष्टी के स्थान पर मानसिक अवसाद पनपने लगता है। हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है। शादीसमारोह में रस्म से ज्यादा दिखावा हो रहा है। पूजा-पाठ, मंत्रोच्चारण और सात फेरे से ज्यादा लोग नृत्य-गीत में लोग मशगूल हो रहते हैं। इससे किसी को क्या दिक्कत हो रही है, इसे कोई नहीं सोचता। अब थीम शादी का प्रचलन बढ़ा है। इससे समाज में गलत और आडंबर शुरू हो रहा है। विवाह समारोह के मुख्य स्वागत द्वार पर नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें, हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं। अंदर एंट्री गेट पर आदम कद स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं।

आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते हैं पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर। पास में लगा मंच जहां नव दंपत्ति लाइव गल – बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं। बन्धुओं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । हम एक दूसरे के जीवन के सेतू बने यही मानवीय धर्म है। यदि हमारे पास धन की प्रचुरता है तो अपना प्रारब्ध समझे और साथ में इसके अविवेकपूर्ण अपव्यय पर लगाम लगाएं, और इसे साधर्मी बन्धुओं के उत्थान के कार्यों में जो आज आर्थिक विपन्नता के शिकार हैं उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़े उनका सहारा बनने का प्रयास करें। आपका पैसा है,आपने कमाया है,आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,पर किसी दूसरे की देखा देखी नही। कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा। जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करियेगा। 4 – 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है।

और आप कितना ही बेहतर करें लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे। और लिफाफा दे कर आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे। अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें। दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए। विवाह की नहीं आप वास्तव में दिखावे की तैयारी कर रहे हो। अगर लोन या कर्जाले लेकर दिखावा कर रहे हो। हमारे ऋषियों ने कहा है कि जो जरूरी काम है वह करो। ठीक है समय के साथ रीति रिवाज बदल गए हैं। मगर दिखावे से बचना चाहिए।

About author

Satyawan Saurabh

डॉo सत्यवान ‘सौरभ’
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
facebook – https://www.facebook.com/saty.verma333
twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh


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