Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, satyawan_saurabh

वाहनों पर जातिगत-धार्मिक स्टिकर, अशांति के स्पीकर-तनाव के ट्रीगर

वाहनों पर जातिगत-धार्मिक स्टिकर, अशांति के स्पीकर-तनाव के ट्रीगर वाहनों पर ‘जाति और धार्मिक स्टिकर’ की कानूनी जांच व्यक्तिगत अभिव्यक्तियों, …


वाहनों पर जातिगत-धार्मिक स्टिकर, अशांति के स्पीकर-तनाव के ट्रीगर

वाहनों पर जातिगत-धार्मिक स्टिकर, अशांति के स्पीकर-तनाव के ट्रीगर

वाहनों पर ‘जाति और धार्मिक स्टिकर’ की कानूनी जांच व्यक्तिगत अभिव्यक्तियों, सांस्कृतिक प्रथाओं और कानूनी नियमों के बीच तनाव को रेखांकित करती है। जातिगत पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति दूसरों के बीच ईर्ष्या और कड़वी प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है और हमारे समाज में बढ़ते जातिगत तनाव को प्रतिबिंबित कर सकती है। सामाजिक रूप से कहें तो, यह अपनी जातिगत पहचान के साथ संपन्नता या नव अर्जित धन का प्रदर्शन है। अगर कोई इस तरह के कृत्यों का गहराई से अध्ययन करता है तो पता चलता है कि यह एक तरह से नव-अमीर सामाजिक वर्गों द्वारा अपनी सफलता का जश्न मनाने और इन सफलताओं के लिए अपनी जातियों को श्रेय देने का प्रयास है।

-डॉ सत्यवान सौरभ

जातिगत पहचानें लगातार नए अवतार लेती रहती हैं और हमारे सामाजिक जीवन में फिर से प्रकट होती हैं। वे वायरस की तरह उत्परिवर्तित होते हैं और विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक सामाजिक जुड़ाव को नुकसान पहुंचाते हैं। मोटर वाहन अधिनियम के तहत, कार या दोपहिया वाहन पर पंजीकरण प्लेट सहित कहीं भी चिपकाए गए स्टिकर या संदेश या कुछ भी नहीं लिखा जा सकता है। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 179 (1) वाहनों पर जाति और धर्म-विशिष्ट स्टिकर और लेखन के उपयोग पर रोक लगाती है। उत्तरप्रदेश पुलिस द्वारा वाहनों पर ‘जाति और धार्मिक स्टिकर’ प्रदर्शित करने के लिए चालान जारी करने की हालिया कार्रवाई ने ऐसे स्टिकर की वैधता के बारे में बहस छेड़ दी है। यह कदम, एक विशेष अभियान का हिस्सा, वाहन नियमों, सामाजिक मानदंडों और कानूनी प्रतिबंधों के अंतर्संबंध पर सवाल उठाता है।

इस कदम ने राज्य और अन्य स्थानों पर सार्वजनिक बहस छेड़ दी कि क्या इससे हमारे समाज में जातिगत मान्यता कमजोर होगी। क्या यह भारत में जाति व्यवस्था को कमजोर करने में योगदान देगा? जाति और धार्मिक स्टिकरस्टिकर की वैधता का आकलन मोटर वाहन अधिनियम और मोटर वाहन नियमों के आधार पर किया जाता है। उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्य सरकारों ने वाहनों पर, यहां तक कि वाहन की बॉडी पर भी जाति और धर्म को सूचित करने वाले स्टिकर चिपकाने के खिलाफ आदेश जारी किए हैं। पंजीकरण नंबर प्लेट मोटर वाहन नियम पंजीकरण नंबर प्लेट पर स्टिकर लगाने से सख्ती से मना करते हैं। चुनौतीपूर्ण स्टिकर और कानून प्रवर्तन वाहनों पर ऐसे स्टिकर लगाने पर जुर्माना 1,000 रुपये निर्धारित किया गया है, जबकि पंजीकरण नंबर प्लेट पर स्टिकर लगाने पर यह बढ़कर 5,000 रुपये हो जाता है।

हमने देखा है कि हमारे समाज में पश्चिम के सभी आधुनिक प्रभावों, बढ़ते शहरीकरण, गहरे होते लोकतंत्र और बढ़ते वैश्वीकरण के बावजूद, भारत में जाति व्यवस्था की नींव पर्याप्त रूप से कमजोर नहीं हुई है। चुनावी लोकतांत्रिक राजनीति ने एक ऐसा माहौल तैयार किया जिसमें जाति व्यवस्था को लगातार ऑक्सीजन मिलती रही और हर चुनाव में एक नया जीवन मिलता रहा। मुझे लगता है कि यह सरकार का सराहनीय फैसला है, क्या इससे भारत में गहरी जड़ें जमा चुकी जाति व्यवस्था को कमजोर करने में कोई खास योगदान मिलने वाला है। यह निश्चित रूप से सार्वजनिक स्थान पर जातिगत पहचान के आक्रामक दावे पर रोक लगाने जा रहा है।

वास्तव में, यह प्रवृत्ति पहली बार पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में देखी गई थी, जहां नव-अमीर, स्थानीय रूप से प्रभावशाली समूहों ने दावे के रूप में वाहनों की विंडस्क्रीन और नंबर प्लेटों पर अपनी जाति के नाम दिखाना शुरू कर दिया था। प्रतिक्रिया स्वरूप, इन क्षेत्रों में दलितों के नव-धनाढ्य वर्गों ने भी वाहनों पर अपनी जाति के नाम प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। इससे इन क्षेत्रों में सीमित अर्थों में सामाजिक तनाव पैदा हो गया। सामाजिक रूप से कहें तो, यह अपनी जातिगत पहचान के साथ संपन्नता या नव अर्जित धन का प्रदर्शन है। अगर कोई इस तरह के कृत्यों का गहराई से अध्ययन करता है तो पता चलता है कि यह एक तरह से नव-अमीर सामाजिक वर्गों द्वारा अपनी सफलता का जश्न मनाने और इन सफलताओं के लिए अपनी जातियों को श्रेय देने का प्रयास है।

जातिगत पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की प्रवृत्ति दूसरों के बीच ईर्ष्या और कड़वी प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है और हमारे समाज में बढ़ते जातिगत तनाव को प्रतिबिंबित कर सकती है। हमने देखा है कि पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातिगत पहचान के इस प्रतिस्पर्धी प्रदर्शन के कारण विभिन्न स्थानों पर छोटे-मोटे झगड़े, सामाजिक तनाव और हिंसा होती रहती है। धीरे-धीरे यह चलन उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी देखने को मिल रहा है। अन्य हिन्दी राज्यों में भी इस प्रवृत्ति का संक्रामक प्रसार देखा जा सकता है।

वाहनों पर ‘जाति और धार्मिक स्टिकर’ की कानूनी जांच व्यक्तिगत अभिव्यक्तियों, सांस्कृतिक प्रथाओं और कानूनी नियमों के बीच तनाव को रेखांकित करती है। जैसे-जैसे कानूनी ढाँचा विकसित हो रहा है और समाज अपनी जटिल गतिशीलता को पार कर रहा है, व्यक्तिगत अधिकारों और सामाजिक सद्भाव के बीच संतुलन बनाना एक सतत चुनौती बनी हुई है।

About author

Satyawan Saurabh

डॉo सत्यवान ‘सौरभ’
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
facebook – https://www.facebook.com/saty.verma333
twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh


Related Posts

Dekhein pahle deshhit by Jayshree birmi

September 29, 2021

 देखें पहले देशहित हम किसी भी संस्था या किसी से भी अपनी मांगे मनवाना चाहते हैं, तब विरोध कर अपनी

Saari the great by Jay shree birmi

September 25, 2021

 साड़ी द ग्रेट  कुछ दिनों से सोशल मीडिया में एक वीडियो खूब वायरल हो रहा हैं।दिल्ली के एक रेस्टोरेंट में

Dard a twacha by Jayshree birmi

September 24, 2021

 दर्द–ए–त्वचा जैसे सभी के कद अलग अलग होते हैं,कोई लंबा तो कोई छोटा,कोई पतला तो कोई मोटा वैसे भी त्वचा

Sagarbha stree ke aahar Bihar by Jay shree birmi

September 23, 2021

 सगर्भा स्त्री के आहार विहार दुनियां के सभी देशों में गर्भवती महिलाओं का विशेष ख्याल रखा जाता हैं। जाहेर वाहनों

Mahilaon ke liye surakshit va anukul mahole

September 22, 2021

 महिलाओं के लिए सुरक्षित व अनुकूल माहौल तैयार करना ज़रूरी –  भारतीय संस्कृति हमेशा ही महिलाओं को देवी के प्रतीक

Bhav rishto ke by Jay shree birmi

September 22, 2021

 बहाव रिश्तों का रिश्ते नाजुक बड़े ही होते हैं किंतु कोमल नहीं होते।कभी कभी रिश्ते दर्द बन के रह जाते

Leave a Comment