Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, satyawan_saurabh

बड़वा में हैं अंग्रेजों के जमाने की शानदार चीजें।

बड़वा में हैं अंग्रेजों के जमाने की शानदार चीजें। “गगनचुंबी हवेलियां, मनमोहक चित्रकारी, कुंड रुपी जलाशय, हाथीखाने, खजाना गृह, कवच …


बड़वा में हैं अंग्रेजों के जमाने की शानदार चीजें।

बड़वा में हैं अंग्रेजों के जमाने की शानदार चीजें।

“गगनचुंबी हवेलियां, मनमोहक चित्रकारी, कुंड रुपी जलाशय, हाथीखाने, खजाना गृह, कवच रुपी मुख्य ठोस द्वार और न जाने क्या-क्या”
— डॉo सत्यवान सौरभ,

दक्षिण-पश्चिम हरियाणा में शुष्क ग्रामीण इलाकों का विशाल विस्तार है, जो उत्तरी राजस्थान के रेतीले क्षेत्रों से सटे हुए है, यहाँ बड़वा नामक एक समृद्ध गांव स्थित है। यह राजगढ़-बीकानेर राज्य राजमार्ग पर हिसार से 25 किमी दक्षिण में है।
गढ़ बड़वा जिसे गाँव में ठाकुरों की गढ़ी (एक किला) कहा जाता है। ठाकुर बाग सिंह तंवर के पूर्वज, जो कि बृजभूषण सिंह के दादा थे, ने 600 साल पहले राजपुताना के जीतपुरा गाँव से आकर अपने और अपने संबंधों के लिए इस गाँव की संपत्ति की नक्काशी की थी। संयोग से, राजपूतों की तंवर शाखा ने भिवानी शहर के आसपास के कई गाँवों में खुद को मजबूती से स्थापित किया था। नतीजतन, भिवानी तंवर खाप का प्रधान बन गया यानी गाँवों का एक समूह। मध्ययुगीन काल में, तंवर राजपूतों ने उस समय की राजनीतिक उथल-पुथल से उखाड़ फेंका जब मुस्लिम आक्रमणकारी इस भूमि पर कब्जा करने और अपना वर्चस्व स्थापित करने की प्रक्रिया में थे, हरियाणा और पहाड़ी क्षेत्रों से हिमाचल प्रदेश में चले गए। हालांकि, मुगल काल में, तंवर राजपूत शांतिपूर्वक भिवानी के आसपास अपने गाँव में व्यापार करते थे। लगभग 15,000 की आबादी वाला बड़वा का गाँव, अब भिवानी जिले का एक हिस्सा है।
बाग सिंह तंवर के पूर्वजों, जिन्होंने बारिश के पानी से भरे एक बड़े प्राकृतिक तालाब के आसपास झोपड़ियों में बसे थे, ने गाँव में 14,000 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था। नतीजतन, बहुत सारी जमीन गांव में उनके वंशजों और अन्य समुदायों को हस्तांतरित कर दी गई थी। मौजूदा गढ़ी, एक मध्ययुगीन शैली का एक विशाल स्मारक, जिसे ब्रांसा भवन भी कहा जाता है, रामसर नामक एक बड़े तालाब के किनारे गाँव के उत्तर-पश्चिम में स्थित है, जिसे 1938 में बनाया गया था, जो गाँव के पुराने लोगों के अनुसार था एक साल मानसून की विफलता के कारण, फसलों को उस वर्ष नहीं उगाया नहीं जा सका। इसलिए, बाग सिंह ने गढ़ी के निर्माण में अपने रिश्तेदारों को शामिल करने के बारे में सोचा और उपयोगी रोजगार पाया। रेतीले टीले पर पारंपरिक स्थापत्य शैली में निर्मित गढ़ी में आज भी लोहे की प्लेट और लकड़ी का एक बड़ा और मजबूत गेट है। आवास और सार्वजनिक उपस्थिति के लिए कई विशाल कमरे, पुआल और अनाज के भंडारण के लिए कई तिमाहियों की एक पंक्ति बिल्डरों द्वारा प्रदान किए गए थे।
गगनचुंबी हवेलियां, मनमोहक चित्रकारी, सूक्ष्म नमूनों से सजे कपाट, कुंड रुपी जलाश्य, हाथीखाने, खजाना गृह की मजबूत दीवार, कवच रुपी मुख्य ठोस द्वार और न जाने क्या क्या। मन में गहरी जिज्ञासा पैदा करती हैं, ये हवेलियां। इन्हें बनाने वालों ने उम्र ही यहां बिता दी। इनकी कब्रें मृत्युपरांत यहीं बनाई गईं। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित उपमंडल का गांव बड़वा की।

पनघट पर आई थी ‘चंद्रो’

दक्षिण में स्थित कुएं का निर्माण यहां के दूसरे सेठों ताराचंद तथा हनुमान ने करवाया था। सेठ हनुमान व ताराचंद के पुत्रों ने गांव के रूसहड़ा जोहड़ पर चार स्तंभों वाला आकर्षक कुआं बनवाया। इसी के इर्द-गिर्द प्रसिद्ध हरियाणवी फिल्म चंद्रावल और बैरी के कुछ दृश्यों को फिल्माया गया। अंग्रेजों के जमाने की गाड़ी और रथ आज भी हवेलियों में मौजूद हैं। यहां विद्यमान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक-धरोहरें गांव के अतीत के इतिहास को बयां कर रही है। हवेलियों की आयु का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है लेकिन यह सच है कि ये द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व की है।

अंग्रेजों के जमाने की गाड़ी और रथ

बड़वा में एक दर्जन हवेलियां हैं। इनमें सेठ परशुराम की हवेलियां खासी प्रसिद्ध हैं। इन्हें बनवाने के लिए पिलानी से कारीगर बुलाए थे। अंग्रेजों के जमाने की गाड़ी और रथ आज भी हवेलियों में मौजूद है। हवेलियों से भी बढ़कर रोचक इतिहास यहां के कुओं तथा तालाबों का भी है। प्राचीन समय में इस स्थान पर एक छोटा सा कच्चा तालाब था। अक्सर सेठ परशुराम की बहन केसर यहां गोबर चुगती थी जो उनके लिए अशोभनीय था। लोगों के ताने सुनकर उन्होंने कच्चे तालाब की जगह एक ऐतिहासिक तालाब का निर्माण करवाया जिसकी पहचान अब केसर जोहड़ के रूप में होती है। इसी के इर्द-गिर्द प्रसिद्ध हरियाणवी फिल्म चंद्रावल और बैरी के कुछ दृश्यों को फिल्माया गया। प्राचीन समय में इस स्थान पर एक छोटा सा कच्चा तालाब था। भिवानी जिले के बड़वा गांव की सेठो की बड़ी-बड़ी हवेलियों के अलावा, तालाब, कुँवें, हवेलियां, नोहरा, धर्म शालाएं, छतरियां आदि में, अनेकों ऐसे चित्रण मिले हैं। इन चित्रों में राजस्थान के चित्रों जैसी विशेषताएं पाई गई।

सेठ परशुराम द्वारा निर्मित केसर तालाब-

यह तालाब सेठ परशुराम ने अपनी बहन की यादगार में बनवाया, कहा जाता है कि सेठ परशुराम ने यहाँ पर केसर तालाब का निर्माण करवाया जोकि यात्रियो का प्रमुख आकर्षण केंद्र रहा है। ऐसा कहा जाता है परशुराम की बहन गोबर चुगती थी। यह सेठ परिवार के लिए शर्म की बात थी और लोग अक्सर ऐसा छोटे कार्य के प्रति ताने मारते थे तब सेठ ने यहां पर मौजूद तालाब को पक्का करवाया और उसका नाम केसर तालाब रखा। इस तालाब का प्रयोग दैनिक क्रियाकलापों के लिए इस्तेमाल होता था। इसके पास एक गहरा जल कुंड है जिसमें दुखी महिलाऐं कूदकर अपनी जान दे ती थी, इसलिए इसको मुक्ति धाम भी कहा जाता है। यहां के लोग इसे आगौर भी कहते हैं। इस तालाब के किनारे के ऊपर की छत पर गुंबद/छतरियां बने हुए हैं जिनमें राधा कृष्ण की रासलीला को चित्रों के माध्यम से प्रमुखता से दर्शाया गया है । इनमें राधा कृष्ण एक दूसरे का हाथ पकड़े घेरे में नृत्य कर रहे हैं और इनके पीछे वाद्य-यंत्रों की आकृतियां चित्रित की गई है जैसे ढोलक, नगाड़े, बाँसुरी, हारमोनियम, शहनाई आदि। और यह शायद किसी समारोह को चित्रित कर रहा है । चित्रों में गतिशीलता और लय है। लाल भूरे रंग उपयोग किया गया है।
श्रीकृष्ण को नीले रंग में दिखाया गया है जबकि राधा का रंग गोरा दिखाया गया है। इन आकृतियों के पीछे पशु पक्षियो को दिखाया गया है, जिनमें मोर, तोता, चिड़ियां आदि है। इसमें लाल, पीले, नीले रंग का इस्तेमाल किया गया है। गुंबद के केंद्र में वृत्ताकार ज्यामितीय अलंकरण किया गया है । गुंबंदों की आकृतियों को गतिशील और समान अनुपात में दिखाया गया है। इनका छोटा कद व चेहरा गोल है। समय के अनुसार आज इनके रंग धूमिल पड़ गए हैं परन्तु केंद्र में फूल आज भी अपने अतीत को समाए हुए हैं।

सेठ हुकुम चंद लाला सोहन लाल की हवेली-

यह हवेली लगभग आज से डेढ़ सौ साल पुरानी है, जिसके प्रमुख द्वार पर एक हष्ट-पुष्ट हाथी को सुसज्जित एवं गतिशील अवस्था में दिखाया गया है। इस हाथी की पीठ एक चतुर्भज ज्यामीतिय डिजाइन का कपड़ा एवं उस पर लकड़ी की काठी को सुसज्जित किया गया है, जिसमें राजा-रानी आमने-सामने और सेवक पीछे चंवर ढूला रहा है। इसमें राजा रानी को फूल देता हुआ अपने प्यार का इजहार कर रहा है। हाथी केसर पर भी चकोर ज्यमीतिय आकार की टोपी रखी गई है जो उसकी शोभा बढ़ा रही है । इसके अलावा यहां दीवार पर धार्मिक चित्र मौजूद है जैसे विष्णु जी लक्ष्मी के साथ अपनी सवारी पर विराजित हैं तथा दूसरे चित्र में शेरावाली माता अपनी सवारी पर विराजित है। इसके अलावा चित्र यहाँ राधा रानी के प्रेम मिलाप को दर्शा रहा है। हाथी का चित्रण कोटा शैली में अधिक किया गया है ।

सेठ लक्ष्मीचंद का कटहरा-

बड़वा में लक्ष्मी चंद के कटहरा के अंदर छत पर राजाओं-महाराजाओं व देवी-देवताओं को एक साथ चित्रित किया गया है । इस चित्र में बाएं ओर से राधा रानी की सवारी को दिखाया गया है जो रथ पर सवार है तथा कुछ महिलाएं रथ के पीछे चल रही है जोकि उनकी सेविकाएं प्रतीत होती हैं । एक घुड़सवार एक हाथ में राज्य का निशान लिए चल रहा है तथा अन्य घुड़सवार पीछे पीछे चल रहे हैजो कि महाराज के अंगरक्षक हैं और सुरक्षा को सुनिश्चित कर रहे हैं। कृष्ण राधा की चोटी बनाते हुए -इस चित्र में श्री कृष्ण जी कुर्सी पर विराजे हैं और राधा मुड्ढे पर बैठी हैं। श्री कृष्णजी राधा की चोटी गूंथ रहे हैं और राधिका हाथ में शीशा पकड़े बैठी हैं। शीशे में राधा का चेहरा स्पष्ट दिर्खाइ दे रहा है। इस चित्र में दिखाए गए कुर्सी व मुड्ढे से इस चित्र पर स्थानीय प्रभाव नजर आता है तथा पहनावे से राजस्थानी प्रभाव नजर आता है।
इस प्रकार चित्रकार के चित्र में तत्कालीन प्रभाव नजर आते हैजो उस समय उसने देखा और चित्रित किया। इस चित्र में आंखें मछली के आकार जैसी , कंलगी व मुकुट से चित्रण में मुग़ल प्रभाव नजर आता है। पृष्ठभूमि हल्के पीले रंग की है तथा शरीर को पतला एवं लंबा दिखाया गया है जबकि बालों की लंबाई शरीर का अनुपात में कम है। दूसरी ओर दाएं से बाएं की ओर देवी देवताओं की सवारी आ रही है जिसमे सभी देवता अपने -अपने वाहन पर बैठे हैं तथा ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसा कि राजा रानी अपने रथ पर सवार होकर देवी देवताओं के स्वागत के लिए पधार रहे हैं। इन चित्रों में हाथी घोड़े आदि को बहुत अच्छे से सुसज्जित किया गया है। इनकी पृष्ठभूमि पीले रंग की है तथा चित्रों में नीला, पीला, हरा, भूरा, आदि रंगो का प्रयोग किया गया है। चित्रो के वस्त्र व आभूषणों को देख इन पर मुगली तथा राजस्थानी प्रभाव प्रतीत होता है।

लाला लायकराम फूलचंद की हवेली-

यह हवेली लगभग 160 साल पुरानी है, इस हवेली की बरामदे की दीवार के ऊपरी भाग में सिपाही का चित्रण किया गया है। इसमें एक व्यक्ति घोड़े पर सवार है तथा तीन सिपाही आगे पीछे एक कतार में तथा पांच सिपाही समानांतर चल रहे हैं। इसकी पृष्ठभूमि पीली है। यह सिपाही पूरे जोश में दिर्खाइ पड़ रहे है।
तुलाराम लाला डूंगरमल की हवेली-
यह हवेली आज से लगभग 100 साल पहले की बनी हुई है। इसकी बाहरी दीवार पर रेल का इंजन डिब्बों सहित दिखाया गया है। इंजन का रंग काला एवं डिब्बों को नीले रंग से चित्रित किया गया है। रेल की खिड़की के ऊपर के भाग में जाली बनाई गई है जिसमें यात्रियों को दिखाया गया है एवं इंजन से धुआं निकल रहा है। रेलों के पीछे प्राकृतिक दृश्य भी दिखा रखा है । दूसरी ओर लक्ष्मीचंद का कटहरा में चालक रेलगाड़ी चला रहा है जोकि बहुत ही आकर्षक एवं सुंदर हैं इसमें 13 डिब्बे और एक इंजन को दर्शाया गया है। इस गाड़ी में यात्रियों को भी चित्रित किया गया है एवं
बाहर इसके सामने एक व्यक्ति हाथ में झंडी लिए खड़ा है जो गाड़ी के लिए एक संकेतक का कार्य कर रहा है ।
इसे देखकर यह लगता है यह चित्र हिंदुस्तान में अंग्रेजों द्वारा 19वी सदी में चलाई गई पहली रेल का चित्रित किया गया है। यह चित्र उस समय की जीवंत व्यवस्था की व्याख्या कर रहा है। डाकिये का चित्र-यहां एक दीवार पर डाकिए का चित्र चित्रित हैं प्रतीत होता है तथा अंग्रेजी भाषा में इन पर कुछ लिखा होना जोकि इस शैली के प्रभाव इसकी आंखें मीनाकृतपान के पत्ते के समान हैं जिसे देख ऐसा प्रतीत होता है कि इस पर स्थानीय कलाकार का प्रभाव रहा है। कपड़े जूतें आदि देखकर इन पर कंपनी शैली का प्रभाव को और सुदृढ़ करता है।

यशोदा कृष्ण का चित्र-

इस चित्र में यशोदा मैया ने श्री कृष्ण को गोद में उठा रखा है तथा यह मातृत्व भाव को दर्शा रहा है। इस चित्र में चेहरा छोटा जबकि शरीर हष्ट पुष्ट बना है, आँखें बादाम जैसी तथा चेहरा गोल है और भोही मोटी-मोटी है। सिर पर कंलगी लगी हुई है जोकि मुग़ल प्रभाव को दर्शाती है। अगर कपड़ों की तरफ देखें तो कपड़ों से राजस्थानी प्रभाव नजर आता है।

कृष्ण व कालिया नाग का चित्र-

चित्र में श्री कृष्ण को नाग पर अपनी लीलाएं करते हुए दिखाया गया है।
श्री कृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं तथा उनके दोनों और नाग देवियां विशेष मुद्रा में खड़ी हैं जिनका नीचे का हिस्सा सर्प अवस्था में और ऊपर से नाग देवी के रूप में दिखाया गया है । अर्थात अर्ध नागेश्वरी के रूप में उपस्थित हैं जो कि श्री कृष्ण की तरफ मुख करके हाथ जोड़कर विनती अवस्था में खड़ी है । इस चित्र में एक चश्म चेहरों की आकृति में दर्शाया गया है। आंखें मीन जैसी हैं जोकि जयपुर शैली के अंतरगत ।
पूरे चित्र पर नाथद्वारा शैली का प्रभाव प्रमुखता से दिखाया गया है।

सरस्वती देवी का हंस पर विराजित चित्र-

इस चित्र में सरस्वती देवी हंस पर विराजित हैं तथा हंस के मुख में माला है, यहां एक चश्म चेहरा चित्रित अवस्था में दिखाया गया हैं। सरस्वती मां के एक बाल की लटा कान के पास से चेहरे पर पड़ी है। सरस्वती माँ के एक हाथ में पुस्तक और दूसरे हाथ में फूल हैं जिन्हें हरे रंग से चित्रित किया है। इस चित्र में पीछे महिला चंवर झुला जैसे प्रतीत होती हैं। इसमें दोनों राजस्थानी व मुग़ल प्रभाव का मिश्रण प्रतीत होता है।
चित्रकार ने अपनी अपनी समझ के अनुसार छवियों के अंदर भेद किया है । हिंदू मिथक के अनुसार देवी सरस्वती को विद्या और संस्कृति की देवी माना गया है। ऋग्वेद में सरस्वती की ख्याति एक पवित्र सरिता के रूप में है। सरस्वती को हंस रूप दिखाया गया है। हरियाणा के अनेक हिंदू आस्था स्थलों पर बनाए गए भवनों और आवासीय भवनों में देवी सरस्वती की छवियों का अंकन हमें भित्ति चित्रों के रूप में उपलब्ध है।

हवेलियों का निर्माण

भित्ति चित्रों में कलात्मकता भिवानी जिले के अन्तरगत आने वाले गांवों में अनेक पुरानी हवेलियों पर भित्ती चित्र पाए गए, इन हवेलियों का निर्माण लगभग 100-150 वर्ष पूर्व माना गया है। इन हवेलियों का निर्माण कुम्हार जाति के राज मिस्त्रिओं के द्वारा लाखोरी ईटों से किया गया है। भित्ति अलंकरण के लिए चूने का प्रयोग किया गया। इन हवेलियों पर हजारो की संख्या में भित्ति चित्र मिले। इन चित्रो में पौराणिक विषय, महाभारत, रामायण, राधा कृष्ण लीला, पशु पक्षी, सामाजिक क्रिया कलाप एवं अन्य पौराणिक कथाओं से सम्बंधित घटनाओं को प्रमुख रूप से दर्शा या गया है। इसके अलावा उस दौर के राजा महाराजाओं के गौरव गाथाओं का सुंदर चित्रण किया गया। इनके द्वारा महत्वपूर्ण न घटनाओं, प्रसंगों , पात्रों, लीलाओ के आदि पात्रो को चित्र के माध्यम से दर्शाया गया। उन्होंने राधा कृष्ण को अधिक मात्रा में और गणेश जी को रिद्धि सिद्धि के साथ
दरवाजे के प्रवेश द्वार पर या हवेलियों के बाहर टोडो के बीच में चित्रित किया गया। पटना एवं कम्पनी शैली के प्रमुख विषयों में व्यक्ति चित्र,पशु-पक्षी एंव साधारण लोगों के व्यक्ति चित्र थे पशुओं में प्रमुखतः हाथी एंव घोंडों या उनकि सवारियों का अंकन किया गया।

शैलियों का प्रभाव

इन चित्रों में शेखावटी शैली का प्रभाव दिखाई पड़ता है और यह मुग़ल शैली से भी अछूते नहीं रहे हैं क्योंकि दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में मुग़ल शैली का प्रभाव रहा हैं , उसका विस्तार आसपास के क्षेत्रों में खूब हुआ। लेकिन इसके बावजूद यहां की परम्परागत शैली का भी बोलबाला रहा है। इन चित्रों में कहीं-कहीं दक्षता का बोलबाला और तो कहीं अभाव प्रतीत होता है। लेकिन फिर भी यह अपने भावों को प्रकट करने में सक्षम रही है। इनकी गुणवत्ता व विषय प्रभावशाली रहे है। आज देखरेख के अभाव में देखभाल के अभाव में और इनका ठीक से प्रयोग न करने पर बहुत से चित्र इन हवेलियों से नष्ट हो गए हैं या धुएँ की परत जम चुकी है और इसके कारण यह चित्र रंगों का चटकपन खो चुके हैं लेकिन भीतरी दीवारों पर मौजूद चित्र धूप और बारिश से बचे होने के कारण अपने मूल अवस्था को आज भी संजोए हुए हैं।

किन्होंने बसाया बड़वा गाँव

बड़वा गांव को बसाने वाले ठाकुर बाघ सिंह तंवर राजपूत वंश से संबंध रखते थे, शायद इसलिए इस गांव की हवेलियों में चित्रांकन करने वाले चितेरे राजपूत क्षेत्र से आए हो । इन चित्रों पर राजपूताना परम्पराओं और उनकी जीवनशैली का प्रभाव दिखाई पड़ रहा है। हवेलियों के चित्रों पर राजपूत व राजसी परिधान का प्रभाव दिखाई पड़ता है। राजसी लोग पशु पक्षी जैसे तोता, हाथी, घोड़ा, ऊंट, आदि पशुओं को पालतू बनाकर रखते थे और शायद इसी कारण उन्हें ही भित्ति-चित्रों के प्रारूप में चित्रित करते थे।अजन्ता की गुफाओं में मनुष्य और महान आत्मा के अन्तर को व्यक्त करने के लिए ये नृत्य मुद्राएं अति उपयुक्त थी पैर की मुद्राओं का भी अजन्ता के चित्रों में विशेष स्थान हैं।
कई सेठ लोगों ने अपने-अपने वैभव, सामाजिक प्रतिष्ठा को दर्शाने लिए हवेलियों का निर्माण करवाया और उन हवेलियों पर चित्रण कराए गए जोकि वहां मौजूद परपरागत आकृतियों एव चित्रों से कुछ भिन्न प्रतीत होते हैं । बड़वा गांव में ठाकुर की हवेली का निर्माण (गाँव का गढ़) लगभग 1910 ईसवी के आसपास मुस्लिम कारीगरों द्वारा निर्मित की गई थी इसलिए शायद यहां के चित्रों पर मुगल शैली का प्रभाव दिखाई पड़ता है।उस दौरानलोक शैली में शरीर के विभिन्न अवयव और परिदृश्य के अनुपात आदि का ध्यान नहीं रखा जाता था चित्रों में प्रतीकात्मक भी बनाया गया है तथा चित्रों में प्राकृतिक दृश्य दिखाए गए हैं।

विरासत सहेजने के प्रयास

गाँव के युवा दोहाकार सत्यवान सौरभ ने बताया कि हवेलियों के रखरखाव के लिए वे कई बार सरकार को लिख चुके हैं। पिछले दो दशकों से वो लगातार गाँव की बहुमूल्य सांस्कृतिक विरासत पर लेख लिक रहे है अभी तक न तो सरकार ने और न ही इन हवेलियों के पुश्तैनी मालिकों ने इनके रख-रखाव के लिए कोई सकारात्मक कदम लिया है सत्यवान सौरभ ने ये भी बताया की कुरुक्षेत्र विश्विधालय के धरोहर विभाग के अधिकारी लगातार उनके संपर्क में है कि कब इनके पुश्तैनी मालिक इनको सहेजने की हामी भरे ताकि सरकारी तौर पर इनको संग्रहालय में रखवाया जा सके ताकि आने वाली पीढ़ियां इनके दीदार कर सके !

About author

Satyawan saurabh
 
– डॉo सत्यवान ‘सौरभ’
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
facebook – https://www.facebook.com/saty.verma333

twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh


Related Posts

Lekh aa ab laut chalen by gaytri bajpayi shukla

June 22, 2021

 आ अब लौट चलें बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी

Badalta parivesh, paryavaran aur uska mahatav

June 12, 2021

बदलता परिवेश पर्यावरण एवं उसका महत्व हमारा परिवेश बढ़ती जनसंख्या और हो रहे विकास के कारण हमारे आसपास के परिवेश

lekh jab jago tab sawera by gaytri shukla

June 7, 2021

जब जागो तब सवेरा उगते सूरज का देश कहलाने वाला छोटा सा, बहुत सफल और बहुत कम समय में विकास

Lekh- aao ghar ghar oxygen lagayen by gaytri bajpayi

June 6, 2021

आओ घर – घर ऑक्सीजन लगाएँ .. आज चारों ओर अफरा-तफरी है , ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत का

Awaz uthana kitna jaruri hai?

Awaz uthana kitna jaruri hai?

December 20, 2020

Awaz uthana kitna jaruri hai?(आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ?) आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ये बस वही समझ सकता

azadi aur hm-lekh

November 30, 2020

azadi aur hm-lekh आज मौजूदा देश की हालात देखते हुए यह लिखना पड़ रहा है की ग्राम प्रधान से लेकर

Previous

Leave a Comment