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फ़िल्म समीक्षा ‘जय भीम’- अरविन्द कालमा

फ़िल्म समीक्षा :- आदिवासी क्रांति का बेबाक स्वर तमिल फिल्म ‘जय भीम’ तमिल फ़िल्म इंडस्ट्रीज की हाल ही में रिलीज …


फ़िल्म समीक्षा :- आदिवासी क्रांति का बेबाक स्वर तमिल फिल्म ‘जय भीम’

फ़िल्म समीक्षा 'जय भीम'- अरविन्द कालमा

तमिल फ़िल्म इंडस्ट्रीज की हाल ही में रिलीज हुई मूवी ‘जय भीम’।नाम से लोग सोचते होंगे ये सिर्फ पब्लिसिटी के लिए बनाई गयी एक एंटरटेंमेंट मूवी है पर असल में इस मूवी को देखने के बाद ही दृष्टिकोण में बदलाव आ सकता है।यूँ ही कई फ़िल्में बनी है कई फ्लॉप भी हुई है कई हिट भी हुई है।ऐसी कम ही फिल्में बनती है जो किसी पिछड़े समुदाय पर फिल्माई गई हो,जिसमें काला,असुरन,कर्णन,सरपट्टा और अब जय भीम प्रमुख है।समानता की लड़ाई में बराबरी के हक के लिये फ़िल्मी क्रांति उतनी ही जरूरी है जितना धरातलीय आंदोलन करके बदलाव लाना।

‘जय भीम’ मूवी आदिवासियों के हक के लिए बेहतरीन मूवी है और सबसे बड़ी बात इसमें जय भीम शब्द एक बार भी नहीं बोला गया।यही सबसे बड़ा सन्देश है कि हमें जय भीम जय भीम… चिल्लाने की बजाय इस पर काम करना है।पंक्ति के अंतिम में खड़े व्यक्ति की मदद करनी है।डायरेक्टर ने इस फ़िल्म में ट्राइबल लोगों को उनकी मासूमियत और सच्चाई को बेहतर तरीके से दिखाया है। फिल्म में सभी करेक्टर्स ब्लैक और व्हाइट में हैं फिल्म रियल लाइफ से जुड़ी हुई है।साउथ एक्टर सूर्या ने एक वकील का रोल किया है जो आदिवासियों के हक में केस लड़ता है। मनिकंदन और लिजो मोल जोस ने ट्राइबल कपल के तौर पर काबिले तारीफ़ काम किया है जिन्होंने इस मूवी में राजाकानू(मनिकन्दन) और सिंघनी(लिजो मोल जोस) का रोल अदा किया है।

फ़िल्म की कहानी की बात करें तो कहानी अंदर तक झकझोर देने वाली है। फ़िल्म के शुरुआत में ही पता लग जाता है किस प्रकार बे-कुसूर आदिवासियों को झूठे केस में फंसा दिया जाता है और उन्हें पुलिस वेन में बिठाकर जेल भेज दिया जाता है। फ़िल्म तब नया मोड़ लेती है जब तीन आदिवासी पुरुषों को चोरी के झूठे इल्जाम में फंसा दिया जाता है और थाने ले जाकर पुलिस द्वारा अमानवीयता की सारी हदें पार की जाती है उनके साथ साथ उनके परिवार की दो महिलाओं को भी जेल में बुरी तरह पीटा जाता है उनके साथ बदसलूकी की जाती है उन्हें टॉर्चर किया जाता है कि जुर्म कबूल करे।आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार के सीन्स में अगर आप उतरेंगे तो उनकी वेदना फील करेंगे।महिलाओं को अंततः छोड़ दिया जाता है पर तीन पुरुषों को इतनी बुरी तरह पीटा जाता है कि उनमें से(सिंघनी के पति राजाकानू) की मौत हो जाती है।बाद में उसकी पत्नी एक जाने-माने एडवोकेट चन्द्रू(फ़िल्म का नायक)(सूर्या) से केस लड़वाती है।एडवोकेट चंद्रु ह्यूमन राइट्स के केसों को खास तवज्जो देता है।वह चोरी के झूठे केस में फंसा कर मारे गए बे-कुसूर लोगों को इंसाफ दिलाने का काम करता है और सिंघनी का केस हाथ में आते ही पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करता है।स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रही सिंघनी उसका पूरा साथ देती है।कई विकट परिस्थितियों के बाद एडवोकेट चन्द्रू केस के तह तक पहुंच जाता है और अपराधी पुलिस वालों को सजा दिलवाने के साथ साथ आदिवासी सिंघनी को इंसाफ दिलवाता है।

फ़िल्म में पुलिस प्रशासन के काले सच को दिखाया जाता है कि किस प्रकार तीन पुलिस वाले अपनी वर्दी की आड़ में अमानवीयता की सारी हदें पार कर देते हैं।सूर्या के काम को देखकर आप अपनी नजरें नहीं हटा पाएंगे।उन्हें देखकर आपको लगेगा कि वह रियल में एक वकील ही हैं।उनके पावरफुल सीन्स को देखकर दर्शकों में जोश भर जाएगा।कहीं इमोशनल सीन्स देखकर आप भी इमोशनल हो जाएंगे।कहीं पुलिस की करतूतों से आपका खून खोल उठेगा।फ़िल्म का हर सीन सोचने पर मजबूर कर देता है।आदिवासियों की मासुमियता,पुलिस की दरिंदगी,एडवोकेट चन्द्रू का केस लड़ना और आई. जी. पेरुमलस्वामी का ईमानदारी से केस के तह तक पहुंचना दर्शकों को बांधे रखता है। पुलिस प्रशासन और कानून व्यवस्था के कारनामों के परे आई. जी. पेरुमलस्वामी(एक सच्चा ईमानदार किरदार)(प्रकाश राज) और एडवोकेट चन्द्रू की ईमानदारी को नहीं भुलाया जा सकता।फ़िल्म के सभी केरेक्टर का रोल बेहद संजीदा रहा है।

फ़िल्म ‘जय भीम’ का सम्पूर्ण सारांश एक कविता में मिलता है जो अंत में दिखाई जाती है। चूँकि ज्यादातर लोगों में मन में ये सवाल उठता है कि फ़िल्म का टाइटल ‘जय भीम’ रखा है और फ़िल्म इस टाइटल से मेल कम खाती है।फ़िल्म के द एन्ड से पहले एक कविता दिखाई जाती है जिसका शीर्षक है ‘जय भीम’, वो कुछ इस प्रकार लिखी गयी है-
“जय भीम मतलब रोशनी
जय भीम मतलब प्यार
जय भीम मतलब अंधेरे से रोशनी की यात्रा
जय भीम मतलब करोड़ों लोगों के आंसू”
साफ़ शब्दों में कहें तो यह फ़िल्म एक ऐसा सच है जो सदियों से हमारे बीच पल रहा है।कुछ इससे वाकिफ है तो कुछ ने इसे सहूलियत से उसकी तरफ से आंखें फेर ली हैं।जरूरत है हमें पंक्ति के सबसे अंतिम व्यक्ति को मदद करने की जो हमेशा पीछे ही रहा है। जरूरत है हमें ऐसे समाज की जो सबके साथ समानता का व्यवहार करे।अन्याय,अत्याचार और असमानता के विरुद्ध वो लड़ाई जारी रखनी होगी जो डॉ.भीमराव अम्बेडकर,फूले और बुद्ध जैसे महापुरुषों ने लड़ी थी तभी जाकर हम सशक्त नागरिक कहलायेंगे।यही इस फ़िल्म का सन्देश है।

स्वरचित एवं मौलिक आलेख
©® अरविन्द कालमा
पता:-,
गांव- भादरुणा, पोस्ट- भादरुणा
तहसील- साँचोर
जिला- जालोर (राजस्थान)
पिन कोड नंबर:- 343041
मोबाइल नंबर:- 8003289671
ईमेल पता:- arvindkalma1997@gmail.com


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