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काॅलेज रोमांस : सभी युवा इतनी गालियां क्यों देते हैं | college romance webseries

काॅलेज रोमांस : सभी युवा इतनी गालियां क्यों देते हैं काॅलेज रोमांस सिरीज का एक सीन है, जिसके एक एपीसोड …


काॅलेज रोमांस : सभी युवा इतनी गालियां क्यों देते हैं

काॅलेज रोमांस : सभी युवा इतनी गालियां क्यों देते हैं | college romance webseries

काॅलेज रोमांस सिरीज का एक सीन है, जिसके एक एपीसोड में एक गर्लफ्रेंड अपने ब्वॉयफ्रेंड से कहती है कि अगर तुम गालियां बोलना बंद नहीं करोगे तो न तो तुम्हें किश मिलेगी और सेक्स के बारे में तो भूल ही जाइए। इसी एपीसोड के अंत में वही लड़की खूब गंदी-गंदी गालियां बोलती है। वेलकम टू द रियल वर्ल्ड आफ यूथ आफ इंडिया। सीयाचीन या जापान तो पता नहीं, पर भारत के युवाधन की यही वास्तविकता है। जिसमें हर लड़का या लड़की शामिल होगी। खूब प्रगति करेगी, देश का नाम भी रोशन करेगी, काॅलेज लाइफ भी एन्जॉय करेगी, पर गालिया तो बोलेगी ही। जब कोई अपवाद गालियां न बोले तो उसके कानों में अविरत मेघवर्षा चालू रहेगी ही।
सच में मजे की बात यह है कि दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने कहा है कि सीरीज-सीरियल-फिल्मों में आने वाले पात्र गालियां बोलें या खराब भाषा का प्रयोग करें, यह उचित नहीं कहा जा सकता, एफआईआर होनी चाहिए। इस बात पर हंसी आती है, क्योंकि ये जज दिल्ली के हैं। गालियों के लिए तीन शहर प्रख्यात हैं, गुजरात में सूरत और देश की राजधानी दिल्ली, इसके अवाला वाराणसी। यहां गालियां कल्चर हैं, रोजाना का एक हिस्सा हैं, विचारप्रक्रिया का स्तंभ हैं, बोलचाल की रीति और रस्म हैं। भारत के किसी भी बड़े काॅलेज या यूनिवर्सिटी के काॅरिडोर में एक चक्कर मारो या कैंटीन में बैठो, गालियां कान में न पड़े तो कहिए। गालियों के लिए अब लड़की या लड़के के बीच कोई अंतर नहीं रहा। गालियां बहुत सहज हैं। अपने इमोशंस को अच्छी तरह पहुंचाने के लिए गालियां ही श्रेष्ठ शस्त्र हैं यह लगभग सभी मानने लगे हैं। इसलिए इस पर विवाद करने का कोई मतलब नहीं है। हिमालय को चादर से नहीं ढ़का जा सकता।
काॅलेज रोमांस नार्मल काॅलेज सीरीज है। काॅलेज में पढ़ने वाले युवा तीन सालों में किसमें गुजरते हैं? सभी के क्या इशू होते हैं? प्रेमप्रकरण, सेक्स की इच्छा, पढ़ने की इच्छा नहीं, सीनियर-जूनियर के बीच तफावत, कैरियर बनाने का प्रेशर, लव और लफड़ा, ब्रेकअप और प्रणयत्रिकोण, लांग डिस्टेंस रिलेशनशिप आदि। इसके ऊपर यह छाप पड़े कि भारत का युवाधन तो मेहनत करता ही नहीं है। नहीं, ऐसा तो नहीं है। एक वर्ग ऐसे युवाओं का है, जो खूब मेहनत करता है, खूब पढ़ता है और कैरियर में शिखर पर बैठता है। पर जवानी के जोश में आने वाले आवेग और हार्मोन के उछाल को बहुत कम लोग कंट्रोल कर पाते हैं। इसलिए बहक जाने के चांस अधिक होते हैं। टीवीएफ- द वायरल फीवर की काॅलेज रोमांस सीरीज में ऐसे ही बहक चुके युवाओं की बात है।
यहां गालियों की सराहना नहीं हो रही है। इस लिखने वाला भी बोली जाने वाली गालियों से असहमत है। लगभग सभी गालियों में स्त्रियों का ही अपमान होता है और मानवशरीर के अंग-उपअंग को विकृत रूप से पेश किया जाता है। गालियां बिलकुल नहीं होनी चाहिए। पर यह आदर्शवाद घर में ही चल सकता है, बाहर की दुनिया अलग है। एक-एक जन को नहीं समझाया जा सकता। दुनिया नहीं बदली जा सकती। गालियों का आदी बनना होगा। भारतीय गाली बोलते हुए ही बड़े होते हैं। पश्चिमी देशों में बहुत पहले से ही गालियों के मामले में रुचि नहीं थी। यह अच्छी बात है, पर यह कहने का कोई अर्थ नहीं है । काॅलेज सीरीज मजा दिलाए ऐसी टाइम पास सीरीज है।

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वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336

वीरेन्द्र बहादुर सिंह
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