Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

laghukatha, story, Vikash Bishnoi

कहानी –जड़

कहानी –जड़ Pic credit -freepik.com ये हर रोज की कीच कीच मैं आज जड़ से ही खत्म कर देता हूं। …


कहानी –जड़

Family
Pic credit -freepik.com

ये हर रोज की कीच कीच मैं आज जड़ से ही खत्म कर देता हूं। ये ना मां बाप घर में रहेंगे, ना कोई क्लेश होगा। रमेश ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा।
दो चार दिन निकलते ही रमेश ने दोनों का सामान समेटा और मां बाप को घर से निकाल दिया। बूढ़े मां बाप बेटे से घर में रहने की दुहाई देते हुए कह रहे थे, बेटा, इस उम्र में हम कहां जायेंगे। हमें घर से मत निकाल, हम आगे से तुम्हें और बिटिया सुनीता को कुछ नहीं कहेंगे। पर रमेश ने दोनों की एक नहीं सुनी और उन्हें घर से निकाल दिया। ये सब उनका 6 साल का बेटा उत्कर्ष देख रहा था और दादा दादी के साथ रहने के लिए बस रोए जा रहा था। सुनीता ने उसे थप्पड़ लगाया और हाथ पकड़ अंदर ले गई।
थोड़े दिन गुजरे ही थे कि रमेश की बाइक का किसी गाड़ी से टकराने की वजह से एक्सीडेंट हो गया। सड़क से कुछ लोगों ने नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया और फोन से नंबर ढूंढकर उसके पिता और पत्नी को फोन कर दिया। माता पिता, पत्नी और उसका बेटा तुरंत अस्पताल पहुंच गए। पत्नी सुनीता बेटे को लिए एक तरफ खड़ी थी, तो माता पिता दूसरी तरफ। वहां आने पर पता लगा कि रमेश के एक हाथ में फ्रैक्चर हो गया और काफी खून बह गया है। सभी बेहद चिंतित हो गए थे।
पिता के हाथ में फ्रैक्चर देख बेटे उत्कर्ष ने अपनी मां से पूछा, ये क्या हुआ है पापा के हाथ में और ये पट्टी क्यों बांधी है?
मां ने बेटे को रोते हुए बताया कि, ‘आपके पापा के हाथ में चोट लगी है। इसलिए ये पट्टी बांधी हुई है।
फिर पापा को दर्द भी बहुत हो रहा होगा ना मां, उत्कर्ष ने पूछा।
हां बेटा, मां ने धीमी आवाज में कहा।
मां फिर पापा का एक पूरा हाथ काट के अलग ही कर दो ना, दर्द जड़ से खत्म हो जाएगा ना, जैसे दादा दादी को घर से निकालकर लड़ाई को जड़ से खत्म कर दिया था।
उत्कर्ष की बात सुन कमरे में अब सन्नाटा पसर गया था।
इतने में डॉक्टर ने नर्स को भेजकर परिवार को संदेश पहुंचाया कि रमेश को खून की सख्त जरूरत है और अस्पताल में इस वक्त खून उपलब्ध नहीं है।
सुनकर जहां सुनीता ओर जोर से रोने लगी, वहीं रमेश के पिता को याद आया कि उनका और रमेश का ब्लड ग्रुप एक ही है। उन्होंने तुरंत खून देने की बात कही।
डॉक्टर ने रमेश के पिता को देख कहा कि, ‘आप पुनः एक बार सोच लीजिए, इस उम्र में आपका खून देना आपके लिए भी सही नहीं है।’
रमेश के मां बाप दोनों ने डॉक्टर को हाथ जोड़ कहा, साहब, हमारे बेटे से ज्यादा जरूरी नहीं है हमारी जान की कीमत। आप जल्दी खून ले लीजिए, बस हमारे बच्चे को बचा लीजिए। कागजी कार्यवाही पूरी करवाने के बाद पिता के खून देने से रमेश की जान अब बच चुकी थी।
रमेश और सुनीता अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। दोनों ने माता पिता के सामने रोते हुए हाथ जोड़ उनसे माफी मांगी। पिता ने बेटे और मां ने सुनीता को गले लगा लिया।

About author 

Vikash Bishnoi
विकास बिश्नोई
युवा लेखक एवं कहानीकार
हिसार, हरियाणा

Related Posts

laghukatha-eklavya-ka-angutha

July 31, 2023

लघुकथा-एकलव्य का अंगूठा laghukatha-eklavya-ka-angutha  स्कूल यूनीफॉर्म का मोजा पहनते ही पांच में से तीन अंगुलियां बाहर आ गईं। विधवा मां

Laghukatha -Mobile | लघुकथा- मोबाइल

July 18, 2023

लघुकथा- मोबाइल  अगर कोई सुख का सही पता पूछे तो वह था गांव के अंत में बना जीवन का छोटा

पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर

पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर

July 2, 2023

पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर’ जीवन में उत्तम मार्ग पर चलने का आह्वान करती पुस्तक ‘आओ चलें उन

लघुकथा -मर्यादा |short story maryada

June 29, 2023

लघुकथा -मर्यादा | Short story maryada “उठो! लो फोन आया है।” “इतनी सुबह 5 बजे किसका फोन है यार?” नींद

लघुकथा पिज्जा | Short story pizza

June 29, 2023

लघुकथा पिज्जा | Short story pizza पिज्जा डिलिवरी ब्वाय की नौकरी करने वाले रघु को उसके अगल-बगल की झुग्गियों में

लघुकथा -संपर्क और कनेक्शन

May 28, 2023

लघुकथा-संपर्क और कनेक्शन एक दिन आफिस में आया साइकोलाॅजिस्ट यानी मनोवैज्ञानिक पारिवारिक बातें कर रहा था, तभी एक साफ्टवेयर इंजीनियर

PreviousNext

Leave a Comment