Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, satyawan_saurabh

सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !! Mother’s day special

सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !! हम मदर्स डे की औपचारिकता अवश्य निभाते है मगर वास्तविकता …


सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !!

सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !! Mother's day special

हम मदर्स डे की औपचारिकता अवश्य निभाते है मगर वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जब तक
माँ के हाथ पैरों में जान है और गांठ में पैसे है हम माँ को प्यार करते है मगर जैसे ही ये दोनों चीजे माँ से दूर चली जाती है हमारे प्यार का पैमाना भी बदल जाता है विशेषकर माँ के वृद्धावस्था के दिनों में। उस समय हम अपने बीबी बच्चों में घुलमिल जाते है और माँ को बेसहारा छोड़ देते है।

-डॉ. सत्यवान सौरभ

मां शब्द का विश्लेषण शायद कोई कभी नहीं कर पाऐगा, यह दो शब्द इतना विशालता अपने अंदर समेटे हुए है जिसका व्याख्या करना संभव नहीं है। बच्चा पैदा लेने के बाद सबसे पहले जो शब्द बोलता है वह है माँ। माँ वो है जो हमें जीना सिखाती है, दुनिया में वो पहला इन्सान जिसे हम मात्र स्पर्श से जान जाते है वो होती है माँ’। 9 महीने तक अपने पेट में रखने के बाद, इतनी परेशानियों के बाद वो हमें जन्म देती है। वो होती है ‘माँ’ छोटे हो या बड़े माँ को हर वक्त अपने बच्चे की चिंता होती है।

माँ का प्यार अँधा होता है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। भारत की संस्कृति में माता को पूजनीय माना जाता है। मां को खुशिया और मान सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मातृ दिवस मनाया जाता है। स्नेह, त्याग, उदारता और सहनशीलता के कितने प्रतिमान गढ़ती है माँ, इसे कौन देखता है। उसका वात्सल्य अपने बच्चों के लिए कितनी बार आंसू बहता है। यह वह दिन है जब हम अपनी मां के आभारी होते है जिसने हमें इतना कुछ दिया है और अभी भी हमारे लिये बहुत कुछ कर रही है।

माँ को परिभाषित करने के लिए शब्द कम पड़ जायेंगें लेकिन उसे हम कुछ शब्दों में परिभाषित नहीं कर पायेंगें।

माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान !
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान !!

माँ कविता के बोल-सी,कहानी की जुबान !
दोहो के रस में घुली, लगे छंद की जान !!

माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार !
माँ ही लय, माँ ताल है,जीवन की झंकार !!

माँ ही गीता, वेद है, माँ ही सच्ची प्रीत !
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत !!

माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप !
मुझमे तुझमे बस रहा, माँ का ही तो रूप !!

कोई भी चोट पहले माँ को लगती है फिर बच्चे को। मां के प्यार का कर्ज चुकाया नहीं जा सकता। बच्चा चाहें कितना भी बड़ा हो जाऐ माँ का आँचल उसे सबसे सुरक्षित महसूस होता है। तो उस ‘माँ’ के लिए भी एक दिन उसका अपना होना आवश्यक हो जाता है। इसे लोकप्रिय बनाई अमेरिका की ऐना ने। जी हां,लाखों लोग इस दिन को ‘मर्दस डे’ एक सुअवसर के रूप में मनाते है और अपनी माँ को उनकेबलिदान, समर्थन, प्रयास के लिए दिल से धन्यवाद करते है। यही वजह है कि हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जाता है। साल का एक दिन सिर्फ मां के नाम होता है, जिसे मदर्स डे के नाम से हम जानते है। मां को सम्मान देने वाले इस दिन को कई देशों में अलग-अलग तारीख पर सेलिब्रेट किया जाता है। लेकिन भारत समेत ज्यादातर देशों में मई के दूसरे रविवार को ही मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है।

अगर आप अपनी माँ के साथ रहते है तो उन्हें गले लगा कर विश करें, आप अपनी माँ के साथ
साथ दुनिया की हर माँ का सम्मान करें, आदर करें, तो इससे बड़ा तोहफा दुनिया में कुछ और हो हीनहीं सकता और माँ का आर्शिवाद सदा कवच बनकर आपको हर कष्ट से मुक्ति दिलाती है।

हम मदर्स डे की औपचारिकता अवश्य निभाते है मगर वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जब तक
माँ के हाथ पैरों में जान है और गांठ में पैसे है हम माँ को प्यार करते है मगर जैसे ही ये दोनों चीजे माँ से दूर चली जाती है हमारे प्यार का पैमाना भी बदल जाता है विशेषकर माँ के वृद्धावस्था के दिनों में। उस समय हम अपने बीबी बच्चों में घुलमिल जाते है और माँ को बेसहारा छोड़ देते है।

बुढ़ापा बहुत बुरा होता है। यह वही समय है जब माँ को सबसे ज्यादा प्यार की जरुरत होती है और हम माँ को दुत्कार देतेहै। यह समय किसी भी माँ के लिए बहुत दुखभरा है। वह अपने बच्चों को अपना सब कुछ लुटा कर बड़ा करती है और यही बच्चा बड़ा होकर सबसे पहले अपनी माँ को ही अलग थलग कर देता है। भारत के अधिकांश घरों की यही कहानी है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। आश्चर्य की बात है की आज की पढ़ी लिखी युवा पीढ़ी अपने वृद्ध मातापिता का सम्मान नही करती है। वृद्ध हो जाने पर संताने अपनी संतानों को तो बहुत प्यार दुलार करती है, पर वृद्ध माता-पिता अपेक्षित महसूस
करते है।

’’ ‘मां’ को देवी सम्मान दिलाना वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता में से एक है। मां प्राण है, मां शक्ति है, मां ऊर्जा है, मां प्रेम, करुणा और ममता का पर्याय है। मां केवल जन्मदात्री ही नहीं जीवन निर्मात्री भी है। मां धरती पर जीवन के विकास का आधार है। मां ने ही अपने हाथों से इस दुनिया का ताना-बाना बुना है। सभ्यता के विकास क्रम में आदिमकाल से लेकर आधुनिककाल तक इंसानों के आकार-प्रकार में, रहन-सहन में, सोच-विचार, मस्तिष्क में लगातार बदलाव हुए। लेकिन मातृत्व के भाव में बदलाव नहीं आया। उस आदिमयुग में भी मां, मां ही थी। तब भी वह अपने बच्चों को जन्म देकर उनका पालन-पोषण करती थीं। उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा करना सिखाती थी। आज के इस आधुनिक युग में भी मां वैसी ही है। मां नहीं बदली। विक्टर ह्यूगो ने मां की महिमा इन शब्दों में व्यक्त की है कि एक मां की गोद कोमलता से बनी रहती है और बच्चे उसमें आराम से सोते हैं।

तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास !
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास !!

माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम !
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम !!

मां को धरती पर विधाता की प्रतिनिधि कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सच तो यह है कि मां विधाता से कहीं कम नहीं है। क्योंकि मां ने ही इस दुनिया को सिरजा और पाला-पोशा है। कण-कण में व्याप्त परमात्मा किसी को नजर आये न आए मां हर किसी को हर जगह नजर आती है। कहीं अण्डे सेती, तो कहीं अपने शावक को, छोने को, बछड़े को, बच्चे को दुलारती हुई नजर आती है। मां एक भाव है मातृत्व का, प्रेम और वात्सल्य का, त्याग का और यही भाव उसे विधाता बनाता है।

मां विधाता की रची इस दुनिया को फिर से, अपने ढंग से रचने वाली विधाता है। मां सपने बुनती है और यह दुनिया उसी के सपनों को जीती है और भोगती है। मां जीना सिखाती है। पहली किलकारी से लेकर आखिरी सांस तक मां अपनी संतान का साथ नहीं छोड़ती। मां पास रहे या न रहे मां का प्यार दुलार, मां के दिये संस्कार जीवन भर साथ रहते हैं। मां ही अपनी संतानों के भविष्य का निर्माण करती हैं। इसीलिए मां को प्रथम गुरु कहा गया है। स्टीव वंडर ने सही कहा है कि मेरी माँ मेरी सबसे बड़ी अध्यापक थी, करुणा, प्रेम, निर्भयता की एक शिक्षक। अगर प्यार एक फूल के जितना मीठा है, तो मेरी माँ प्यार का मीठा फूल है।

अब हमारी बारी है की हम अपनी माँ को सम्मान दे और प्यार दे जिससे वह अपनी बची जिंदगी हंसी खुशी से व्यतीत कर सके।

About author

डॉo सत्यवान ‘सौरभ’
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045
facebook – https://www.facebook.com/saty.verma333
twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh


Related Posts

umra aur zindagi ka fark by bhavnani gondiya

July 18, 2021

उम्र और जिंदगी का फर्क – जो अपनों के साथ बीती वो जिंदगी, जो अपनों के बिना बीती वो उम्र

mata pita aur bujurgo ki seva by bhavnani gondiya

July 18, 2021

माता-पिता और बुजुर्गों की सेवा के तुल्य ब्रह्मांड में कोई सेवा नहीं – एड किशन भावनानी गोंदिया  वैश्विक रूप से

Hindi kavita me aam aadmi

July 18, 2021

हिंदी कविता में आम आदमी हिंदी कविता ने बहुधर्मिता की विसात पर हमेशा ही अपनी ज़मीन इख्तियार की है। इस

Aakhir bahan bhi ma hoti hai by Ashvini kumar

July 11, 2021

आखिर बहन भी माँ होती है ।  बात तब की है जब पिता जी का अंटिफिसर का आपरेशन हुआ था।बी.एच.यू.के

Lekh ek pal by shudhir Shrivastava

July 11, 2021

 लेख *एक पल*         समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है।इसी समय का सबसे

zindagi aur samay duniya ke sarvshresth shikshak

July 11, 2021

 जिंदगी और समय ,दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक जिंदगी, समय का सदा सदुपयोग और समय, जिंदगी की कीमत सिखाता है  जिंदगी

Leave a Comment