माँ तेरे इस प्यार को
तेरे आँचल में छुपा, कैसा ये अहसास ।
सोता हूँ माँ चैन से, जब होती हो पास ।।
माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान ।
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान ।।
माँ ही लय, माँ ताल है, जीवन की झंकार ।।
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत ।।
मुझमें-तुझमें बस रहा, माँ का ही तो रूप ।।
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम ।।
–सत्यवान ‘सौरभ’
(दोहा संग्रह तितली है खामोश से )
— सत्यवान ‘सौरभ’,
रिसर्च स्कॉलर, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045






