poem, Siddharth_Gorakhpuri

गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले

गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकालेजो टूट मैं गया तो …


गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले

गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले
जो टूट मैं गया तो रखना थोड़ा सम्भाले

आंसुओं की बारिश हो रही मुसलसल
सैलाब आ रहा है अब तो मुझे बचा ले

मैं तेरा हूँ! ये हरदम कहता था तूँ मुझी से
तो.. ले मैं कर रहा हूँ खुदको तेरे हवाले

रौशनी मैं दे रहा था ढलते ही शाम जिनको
वो दे रहें हैं दिन में अक्सर मुझे उजाले

औरों की बात तुमसे कहना नहीं मुनासिब
अब जिसकी जितनी मर्जी उतना मुझे सता ले

तेरे वायदे का क्या है जो तुमने कर दिया था
क्या वायदी लफ्जों को जेहन से हम हटा लें

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-सिद्धार्थ गोरखपुरी

-सिद्धार्थ गोरखपुरी


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