गज़ल
नजर मिलते ही यूं तुम्हारा ठिठक जाना क्यों है?
तीर-ए-इश्क दिल में अगर चुभाया नहीं है तो
मेरे इंतजार में घायल पंछी सा फड़फड़ाना क्यों है?
यूं तो बड़ी ही बेबाकी से मिलते हो हर एक से तो
बस हमारे ही करीब आकर तुम्हारा शरमाना क्यों है?
राहगीर निकलते हैं रोज हजारों इस रास्ते से तो
हमसे ही रोज तुम्हारा इस तरह से टकराना क्यों है?
बात जो हो हमारी किसी मोहतरमा से कभी तो
हंसमुख से तुम्हारे चेहरे पर जलन का आना क्यों है?
जानते हैं सब तुम्हें एलर्जी है इत्र की खुशबू से तो
कमरे में मेरे आते ही तुम्हारा यूं महक जाना क्यों है?
सरोकार नहीं है शराब से तुम्हारा दूर-दूर तक तो
हमारे करीब आकर तुम्हारा यूं बहक जाना क्यों है?
रहते हो महफिलों में भी उदासी से भरे- भरे तो
बस हमसे ही तुम्हारा यूं हंसना-खिलखिलाना क्यों है?