Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

poem

Vivekananda by dr indu kumari

 स्वामी विवेकानन्द हिला दिया शिकागो थे दार्शनिक अध्यात्मिक गुरू वेदांत के दिखा दिया दिया दुनिया को शोध व सिद्धांत के छोटा …


 स्वामी विवेकानन्द
 हिला दिया शिकागो

Vivekananda by dr indu kumari

थे दार्शनिक अध्यात्मिक गुरू वेदांत के

दिखा दिया दिया दुनिया को शोध व सिद्धांत के

छोटा नरेन्द्र दत्त विवेकानन्द बन दिखा दिया

शिकागो शहर मे तिरंगा का शान लहरा रहा

सनातन धर्म हीं नींव है विश्व को बता गया

प्रतिनिधित्व कर भारत का धर्म का पाठ पढ़़ा गया

देख पहले अमेरिकावासी जिसे समझा पागल

भाषण सुन शिकागो की दुनिया हुई थी कायल

जिसने दुनिया को सहिष्णुता सार्वभौमिकता सिखाया

दुनिया के शरणार्थियों को जिसने शरण लगाया

उस देश का मैं वासी हूं विवेकानन्द ने बताया

धन्य है रामकृष्ण परमहंस जी ऐसा शिष्य पाया

भारतीय संस्कृति को खुबसूरती से निखारा

वाक़् पटुताऔर यथार्थ से अपना पैर पसारा

आज भी गूंज रही कानों में भाषण इनकी

ह्रदय हर्ष से भर जाता है प्रशंसा

सुनकर ही ।

             जयहिंद

डॉ.इन्दु कुमारी

हिन्दी विभाग

मधेपुरा बिहार


Related Posts

कविता-जो अब भी साथ हैं

कविता-जो अब भी साथ हैं

July 13, 2025

परिवार के अन्य सदस्य या तो ‘बड़े आदमी’ बन गए हैं या फिर बन बैठे हैं स्वार्थ के पुजारी। तभी

कविता-सूखी लकड़ी की पुकार

कविता-सूखी लकड़ी की पुकार

July 10, 2025

मैं दर्द से तड़प रहा था — मेरे दोनों पैर कट चुके थे। तभी सूखी लकड़ी चीख पड़ी — इस

बुआ -भतीजी |kavita -bua bhatiji

बुआ -भतीजी |kavita -bua bhatiji

May 26, 2024

बुआ -भतीजी बात भले फर्ज़ी लगे, लेकिन इस में सच्चाई है। बुआ होती है भतीजी का आने वाला कल, और

श्रमिक | kavita -shramik

श्रमिक | kavita -shramik

May 26, 2024

एक मई को जाना जाता,श्रमिक दिवस के नाम से श्रमिक अपना अधिकारसुरक्षित करना चाहते हैं ,इस दिन की पहचान से।कितनी मांगे रखते श्रमिक,अपनी- अपनी सरकार से।

सुंदर सी फुलवारी| Sundar si phulwari

सुंदर सी फुलवारी| Sundar si phulwari

May 26, 2024

सुंदर सी फुलवारी मां -पिता की दुनिया बच्चे हैं,बच्चों की दुनिया मात- पिता ।रिश्ते बदलें पल- पल में ,मां -पिता

बचपन| kavita-Bachpan

बचपन| kavita-Bachpan

May 26, 2024

बचपन हंसता खिलखिलाता बचपन,कितना मन को भाता है। पीछे मुड़कर देखूं और सोचूं, बचपन पंख लगा उड़ जाता है। बड़ी

Leave a Comment