तुमसे है हौंसला
ढलती हुई किसी शाम में
मेरे कांधे पर अपना सर रखे
बैठी हो तुम जब,
तुम्हारी पलकें आंसुओं से भीगी हों
और दुनिया धुंधली सी दिखती होगी,
मैं तुम्हारे कानों में यह कह सकूं
माना तुम्हारे सामने नज़र आ रही राह
जितनी दिख रही है, उससे भी ज़्यादा कठिन हो
मग़र, मैं तुम्हें अपनी बाहों में समेटकर
महफूज़ रखूंगा !!
मैं चलना चाहता हूं
अपनी हथेलियों में तुम्हारा हाथ थामे
और महसूस कर सकूं, तुम्हारा साथ
तुम्हारी ऊष्मा, तुम्हारी औरा अपने चारों तरफ़ !!
बता सकूं तुम्हें, कि मेरी डगर भी कुछ आसान नहीं
लेकिन, तुम्हारा होना, मुझे हिम्मत देता है
चुनौतियां का सामना करने और उन्हें हरा देने की !
और हिम्मत देता है तुमसे यह कह पाने की,
माना हमारी राह कठिन है, मग़र
हम साथ हैं एक दूसरे का हौंसला बनकर,
एक दूसरे की उम्मीद बनकर !!!
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| Veerendra Jain, Nagpur |
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