माँ , बहन,मित्र, प्रेमिका, सबमें मैंने देखी थोड़ी-थोड़ी स्त्री, किंतु विवाह के बाद पत्नी से मिल, मूड स्विंग जैसे नये टर्म सीखे, मैंने एक ही स्त्री में कई रूप देखे, पत्नी के साथ चौबीसों घंटे गुज़ार, मैंने स्त्री को सबसे ज़्यादा समझा,
हम पुरुष तंज़ कसते रहे कि, स्त्रियों को ब्रह्म भी न समझ पायेंगे, तो यह सच हैं क्योंकि, ब्रह्मा भी पुरुष ही ठहरे, नहीं ले आ पाए इतना निश्छल मन, कि समझ लें स्त्री को आसानी से,
हर चीज़ में नफ़ा-नुक़सान ढूँढता पुरुष, नहीं बचा पाया इतनी संवेदना, कि समझ सके कैसे कोई स्त्री, टीवी सीरियल में हो रही विदाई देख, सारी स्त्रियों के भाग्य का नीर बहा लेती है,
श्रेष्ठता की तलाश में निकला पुरुष, नहीं जुटा पाया इतनी निःस्वार्थ पात्रता, कि समझ सके कैसे कोई स्त्री, परिवार के लिए अब तक का कमाया, सारा करियर बिनकहे दाव पर लगा देती है,
हासिल करने की दौड़ में शामिल पुरुष, नहीं बचा पाया इतना सौंदर्यबोध, कि समझ सके कैसे कोई स्त्री, आधे घंटे की पार्टी के लिए, एक घंटे सजने में गुज़ार देती है,
नहीं समझ में आएगा पुरुष को कि कैसे, श्रेष्ठता की होड़ वाली संवेदनहीन दुनिया में, जीते हुए भी अछूती रही स्त्रियाँ, और बहती रही भावनाओं की नदी में, और गुणा गणित की कच्ची स्त्रियों को, पुरुष भावनाओं के ख़रीद फ़रोख़्त में लूटता रहा,
एक बुढ़िया को सड़क पार कराता सिपाही, उससे बची खुची उम्र का आशीष ले लेता, माँ के हाथ के खाने की ज़रा तारीफ़ कर, बेटा रसोई की आँच में घंटों खड़ा कर देता, सात जन्मों के साथ के महज़ वादे पर, पति स्त्री को पूरे दिन प्यासा रख लेता,
निःस्वार्थ स्त्रियों ने पुरुषों को जन्म देकर, दुनिया चलाने का अधिकार भी दे दिया, और ऐसा नहीं कि इंसानी दोष स्त्रियों में न थे, किंतु अगर स्त्रियाँ चलाती दुनिया, तो समस्यायें जरा छोटी होती,
कभी ख़ुद की उम्र घटाकर बताती, किसी की पीठ पीछे शिकायत करती, छोटी-छोटी बात का पहाड़ बनाती, कभी बहू पर दहेज का तंज कसती,
पर कही विश्वयुद्ध न होते, धर्म के नाम पर नरसंहार न होता, क्यूँकि स्त्रियों ने श्रेष्ठता से सदा ऊपर रखा है, मानवता और संवेदना को,
माँ , बहन, प्रेमिका, पत्नी, बेटी, मैं शुक्रगुज़ार हूँ जीवन में आयी सारी स्त्रियों का, जिन्होंने इस कठक़रेज़ दुनिया को, जीने लायक़ बनाया, गुणा-गणित में डूबे मेरी क़लम से, भावपूर्ण कविता लिखवाया,
जब तुम प्रकांड पंडित ब्राह्म नहीं, बल्कि कृष्ण या शिव बनकर आओगे, इतना भी मुश्किल नहीं होगा समझना , राधा या सती में हर स्त्री को समझ पाओगे,
About author
Author-Vinod Dubey
भदोही जिले के एक गावँ में जन्मे विनोद दूबे, पेशे से जहाज़ी और दिल से लेखक हैं |
गदहिया गोल (आजकल का KG ) से १२वीं तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल से करने के
बाद मर्चेंट नेवी के पैसों की खुशबू इन्हे समुन्दर में कुदा गयी।
पेशेवर क्षेत्र :
आईआईटी – जेईई की रैंक के ज़रिये इन्हे भारत सरकार के इकलौते प्रशिक्षण पोत "टी. एस.
चाणक्य" से मर्चेंट नेवी की ट्रेनिंग पूरी करने का अवसर मिला। ट्रेनिंग में " ऑल राउंड बेस्ट
कैडेट" का खिताब मिला और नॉटिकल साइंस में स्नातक की डिग्री मिली। उसके बाद जहाज
की नौकरी में ये एक्सोनमोबिल जैसी फार्च्यून ५०० में स्थान प्राप्त मल्टीनेशनल कंपनियों में
काम करते रहे। कैडेट से कैप्टेन बनने तक के १२ सालों के ख़ानाबदोश जहाजी सफर ( सभी
महाद्वीपों में भ्रमण) ने इनके अनुभव के दायरे को विदेशों तक खींचा । कैप्टेन बनने के बाद ये
फिलहाल सिंगापुर की एक शिपिंग कंपनी में प्रबंधक के पद पर नियुक्त हैं और इनका
पारिवारिक घोंसला भी सिंगापुर की डाल पर है । सिंगापुर में रहते इन्होने कार्डिफ
मेट्रोपोलिटन यूनिवर्सिटी ( यू.के. ) से MBA में गोल्ड मैडल हासिल किया और इंस्टिट्यूट
ऑफ़ चार्टर्ड शिपब्रोकर की मेम्बरशिप भी हासिल की। पढ़ाई -लिखाई का सिलसिला जारी
है।
लेखकीय क्षेत्र :
पहला हिंदी उपन्यास इंडियापा हिन्दयुग्म (ब्लू) द्वारा प्रकशित हुआ। उपन्यास “इंडियापा“
पाठकों में विशेष चर्चित रहा और अमेज़न पर कई दिनों तक बेस्ट सेलर बना रहा। इसकी
सफलता से प्रभावित हिन्दयुग्म प्रकाशन ने अगले संस्करण में इसे हिन्दयुग्म (ब्लू) से
हिन्दयुग्म (रेड) में तब्दील किया। ऑडिबल पर इंडियापा का ऑडियो वर्जन और इसका
अंगेज़ी अनुवाद भी आ चुका है ।
कविता लेखन और वाचन में भी इनकी रूचि है और “वीकेंड वाली कविता” नामक यूटूब
चैनल इनके कविताओं की गुल्लक है। वीकेंड वाली कविता और जहाज़ी फ्लाईड्रीम प्रकाशन
के जरिये किताब की शक्ल में भी लोगों तक पहुँच चुकी है । इस किताब को भारत और
सिंगापुर में काफी पसंद किया जा रहा है।
लेखकीय उपलब्धियां :
सिंगापुर में हिंदी के योगदान को लेकर HEP ( highly enriched personality)
का पुरस्कार
कविता के लिये सिंगापुर भारतीय उच्चायोग द्वारा पुरस्कृत किया गया है।
संगम सिंगापुर पत्रिका के हर अंक में कवितायेँ और यात्रा वृत्तांत छपते हैं।
देश विदेश के लगभग १०० से अधिक कवि सम्मेलनों में हिस्सा लिया, जिसमे अशोक
चक्रधर, लाक्षिकान्त वाजपेयी, इत्यादि मानिंद शामिल रहे ।
अनेक संस्थाओं से जुड़ाव और कवितायेँ प्रस्तुत की : सिंगापुर ( संगम, कविताई ) ,
नेदरलॅंड्स ( साँझा संसार ) , यू. के. ( वातायन )
नेदरलॅंड्स की प्रवासी पत्रिका में यात्रा वृत्तांत छप चुका है।
मीराबाई चानू पर इनकी लिखी कविता इंडियन हाई कमीशन