Stree | स्त्री पर कविता

स्त्री माँ , बहन,मित्र, प्रेमिका,सबमें मैंने देखी थोड़ी-थोड़ी स्त्री,किंतु विवाह के बाद पत्नी से मिल,मूड स्विंग जैसे नये टर्म सीखे,मैंने एक ही स्त्री में कई रूप देखे,पत्नी के साथ चौबीसों घंटे गुज़ार,मैंने स्त्री को सबसे ज़्यादा समझा, हम पुरुष तंज़ कसते रहे कि,स्त्रियों को ब्रह्म भी न समझ पायेंगे,तो यह सच हैं क्योंकि,ब्रह्मा भी पुरुष … Read more

माँ बूढ़ी हो रही है

माँ बूढ़ी हो रही है अबकी मिला हूँ माँ से,मैं वर्षों के अंतराल पर,ध्यान जाता है बूढ़ी माँ,और उसके सफ़ेद बाल पर, आज-कल की ढेरों बातें ,वह अक्सर भूल जाती है,मेरे बचपन की पुरानी बातें,वह कई दफा दुहराती है, थोड़ा झुक कर चलती है,थोड़ा सा लड़खड़ाती है,रात में देर तक जागती है,दिन में अक्सर सो … Read more

Munshi premchandra par kavita |प्रेमचंद

प्रेमचंद Munshi premchandra एक ख़्वाहिश है, कि कभी जो तुम एक दोस्त बनकर मिलो,तो कुल्हड़ में चाय लेकर,तुम्हारे साथ सुबह का कुछ वक़्त गुज़ारूँ, तुमसे बातें करते शायद देख पाऊँ , तुम्हारी आँखों में छुपे वो सारे राज़ , जो लाख कोशिशों के बावजूद, तुम्हारे अन्दाज़ में नहीं देख पाया  ये तुम्हारा समाज…… मसलन, छोटे … Read more