Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Jayshree_birmi, story

story-दिल्लगी(Dillagi)

 कहानी -दिल्लगी आज वैसे ही मैं चक्कर मरने निकला तो बस स्टॉप पर एक सुंदर कन्या को खड़े देख मैं …


 कहानी -दिल्लगी

story-दिल्लगी(Dillagi)आज वैसे ही मैं चक्कर मरने निकला तो बस स्टॉप पर एक सुंदर कन्या को खड़े देख मैं रुक सा गया,सुंदर बहुत थी साड़ी पहने लंबी सी छोटी वाली,बड़ी सुंदर आंखे सुतवां  नाक, छरहरा बदन बस देखता ही रह गया और एक बस आई और वह उसमें बैठ कर चली गई।मैं हक्का बक्का बस को जाते देखता रह गया। जट से अपने को संभाला और घड़ी देखी तो 11 बजे थे।वहां से चल तो दिया लेकिन दूसरे दिन इसी वक्त वहां पहुंचने के इरादे के साथ।

 वैसे भी पढ़ाई पूरी हो गई किंतु नौकरी या काम धंधा नहीं था तो इस कामिनी के साथ कुछ इश्क की पींगे ही चढ़ा ली जाएं।दूसरे दिन जरा बनठन कर बस स्टॉप पर पहुंचा तो वह भी बस में चढ़ने की कतार में खड़ी हुई थी।देख कर दिल बहुत जोर से धड़का जैसे गले से बाहर ही आ जायेगा।मैं भी कतार मैं खड़ा हो उसकी और देख उसके सौंदर्य का नजरों से ही पान करने लगा।कल जो सुंदरता देखी थी वह और भी ज्यादा दिखनी शुरू हो गई और खयालों की दुनियां में जाने से ज्यादा उसकी और देख उसके हुस्न का अवलोकन करना ज्यादा बेहतर समझा।बस आई तो हाथमे टिफिन ले वह बस में जा बैठी तो हम भी पीछे हो लिए।एक ही सीट खाली देख थोड़ी उदारता का प्रदर्शन करते हुए उसे बैठने दे पास में खड़ा हो कर आंखो से उसके सौंदर्य का हवाई अवलोकन करने लगा  जो सामने या पीछे से जो दिखता था उससे ज्यादा सुंदर था।

      अब वह भी थोड़ी बेतकलूफ सी हो बैठी , मेरी गतिविधियों से अवगत होते हुए भी नजरंदाज कर रही हो ऐसा लग रहा था।अब मेरी भी हिम्मत खुल गई और अब तो बेधड़क देखता रहा उसकी सुहानी मूरत को।बस एक ही बात का दुःख था कि जब से देखा हैं उसे,इतनी बार बस में मिला उसे लेकिन उसकी आवाज नहीं सुनी जो मेरे हिसाब से चांदी की घंटी सी मीठी होनी चाहिए थी।अब उसका स्टैंड आ गया था तो वह उतर गई पीछे पीछे मैं भी उतर गया और कुछ खुल के उसके सामने हस दिया और जवाब में उसके भी होंठ हलके से मुस्कुराए थे।

    दूसरे दिन मिलने की आशा के साथ मैं भी घर की और चल पड़ा।सुबह उठते ही उसीके खयालों में दिनचर्या शुरू की।और दस बजते ही बसस्टॉप पहुंच इंतजार में लग गया और सामने से होठों पर मुस्कान लिए आ गई और बस की लाइन में खड़ी हो गई तो मैं भी पीछे जा खड़ा।थोड़ी देर में बस आई और आगे वह और पीछे मैं बस में चढ़ गया।नसीब से आज एक सीट पूरी खाली थी मैंने भी नारी सम्मान को मान देते हुए उसे बैठ  जाने  के लिए इशारे से बोला और खिड़की के पास बैठ गई और मैं साथ में बैठ इतरा रहा था।

 टिकिट बाबू आया तो उसने अपने पर्स से पैसे निकाले तो कंडक्टर ने बिना पूछे ही टिकिट पकड़ा दी तो वह भी मुस्कुराकर रह गई ।मेरा उसकी आवाज सुन पाने का जो ख्वाब था वह टूट गया।

टिकिट के पैसे दे उसने पर्स हम दोनों के बीच में रख दिया तो अपनी भी हिम्मत बढ़ी और पर्स को छू कर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसके गर्म हाथों को छू लिया हो।अब हिम्मत इक्कठी की और जेब में से पेन निकाला और एक छोटी सी पर्ची पर लिखा और उसे दूसरे दिन बस स्टॉप के पास वाले बगीचे में मिलने बुला लिया। चिट्ठी उसके पर्स के बाहर वाले पॉकेट में डाला और उसके उतरने से पहले ही बस से उतर गया।

  सारी रात सो नहीं पाया दूसरे दिन के इंतजार में,और समय होते ही बगीचे की और चल दिया जहां वह पहले से बैठी थी,बहुत सुंदर साड़ी में, गजरा बालों में लगाएं और होठों पे हल्की सी लाली शायद कुदरती ही थी।मैं भी इधर उधर देख उसकी और चल दिया और जा कर उसके बगल में बेंच पर बैठ गया तो वह थोड़ी अदा से मुस्कुराई तो मैं ने भी जवाब में हंस  दिया।मैं अपनी और से पता नहीं क्या क्या पूछता रहा और बताता रहा उसने हंस कर सिर हलके हा या ना कहती रही तब मेरे सब्र ने जवाब दे दिया था।मैं  झुंझला कर बोल ही पड़ा,” आप जवाब क्यों नहीं दे रही हो,गूंगी हो क्या?”और उसने उंगली के  से मेरी जेब की और इशारा किया  जहां पेन लगा हुआ था,तो मैने भी दे दिया।उसने अपने बैग में से एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निकाल कुछ लिखा और मेरी और बढ़ा दिया।लिखा था,” मैं पूर्णतया सुन सकती हूं लेकिन बोल पाने में असमर्थ हूं,क्या आप मुझ से शादी करेंगे?”अपनी तो बैंड बज गई,सोचा वैसे भी बेकार हूं,दोस्त लोग ताना मारेंगे,’गूंगी ही मिली’ और घर वालें तो बस कूट ही देंगे काम का न काज का दो मण अनाज का तो था ही अब एक गूंगी मुसीबत ले आया।और एक जटके से उठ बिना पूछे बिना देखे चल पड़ा जैसे कुत्ता पीछे पड़ा हो। पेन भी लेने नहीं रुका तभी पीछे से एक मधुर चांदी की घंटी सी आवाज आई,” अपना पेन तो लेते जाएं जनाब।” और मुझे काटो तो भी खून न निकलें। पैन लेने की हिम्मत नहीं थी कैसे करता उसका सामना और अब तो मुट्ठियां बांध पहले धीरे धीरे और बाद में झड़प से दौड़ बगीचे से बाहर  भागा और बाहर आ के देखा तो कलेजा गले को आया हुआ था और पसीने से कपड़े गीले हुए पड़े थे।

About Author

जयश्री बिरमी सेवानिवृत शिक्षिका  अहमदाबाद

जयश्री बिरमी

सेवानिवृत शिक्षिका 
अहमदाबाद

Related Posts

लघुकथा-सजी हुई पुस्तकें

October 8, 2023

लघुकथा-सजी हुई पुस्तकें बाॅस के एयरकंडीशन आफिस में घुसते ही तिवारी के चेहरे पर पसीना आ गया। डेस्क पर पड़ी

कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan

September 21, 2023

कहानी –कलयुगी विभीषण | story – kalyugi vibhishan प्रेम बाबू का बड़ा बेटा हरिनाथ शहर में अफसर के पद पर

Laghukatha -Mobile | लघुकथा- मोबाइल

July 18, 2023

लघुकथा- मोबाइल  अगर कोई सुख का सही पता पूछे तो वह था गांव के अंत में बना जीवन का छोटा

लघुकथा:प्रेम | laghukatha -Prem

May 14, 2023

 लघुकथा:प्रेम पिछले एक घंटे से डा.श्वेता ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर विविध रंगों की शर्ट पसंद कर रही थीं। एक प्रखर

लघुकथा:नाराज मित्र | Short Story: Angry Friends

April 19, 2023

लघुकथा:नाराज मित्र राकेश सिन्हा बहुत कम बोलने वालों में थे। अंतर्मुखी स्वभाव के कारण वह लोगों से ज्यादा बातचीत नहीं

निरंकुश उन्मुक्तता को कैसे थामें

April 10, 2023

निरंकुश उन्मुक्तता को कैसे थामें धर्म और संस्कार की नींव पर खड़ा हिंदुस्तानी समाज एक तहजीब और संस्कारी,शिष्ट गिना जाता

PreviousNext

Leave a Comment