Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Bhawna_thaker, story

Story- अकेलापन (akelapan)

 “अकेलापन” वृंदा के दिमाग़ की नसें फट रही थी जिनको वो अपने कह रही थी उन्होंने आज जता दिया की …


 “अकेलापन”

Story- अकेलापन (akelapan)

वृंदा के दिमाग़ की नसें फट रही थी जिनको वो अपने कह रही थी उन्होंने आज जता दिया की ये ज़माना बदल गया है, वो पुरानी हो गयी है। आज की नयी पीढ़ी खुद को मानसिक तौर पर कुछ ज़्यादा ही समझदार समझ रही है उनको लगता है माँ बाप पुराने ज़माने के है।

एक उम्र के बाद इनको कुछ काम शोभा नहीं देते उनको अपने शौक़ मार देने चाहिए, ये नहीं करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए, माँ का अकेलापन नहीं दिखता, अकेलापन दूर करने के तरीके खटक रहे है। जिसे मैंने सबकुछ सीखाय आज वो मुझे सीखाने निकले है।

वृंदा के धर में कदम रखते ही दो बेटे और दो बहुओं के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए, जैसे वृंदा कोई गलत काम करके लौटी हो, वृंदा ने किसीको नोटिस नहीं किया तो उनकी अकुलाहट और बढ़ने लगी, वृंदा ने टीवी ऑन किया और नये गानें सुनने लगी, तो बड़े बेटे के दिमाग का पारा चढ़ गया। टीवी बंद करके वृंदा के सामने बैठ गया मोम ये सब क्या है?

आप आज-कल कुछ ज़्यादा ही बिज़ी रहने लगी हो, घंटो मोबाइल में व्यस्त..! इतने सारे फ्रेन्डस, कभी कोई घर पर आ जाते है, कभी आप चली जाती हो और ये कपड़े, कुर्ती लेगइन तो कभी जीन्स टाॅप, ये क्या नये-नये शौक़ पाल रखे है ?

उम्र का तो खयाल किजीए।

और ये लिखना विखना आपके बस की बात नहीं फालतू में टाइम पास मत कीजिए, आपकी बहूएँ भी शिकायत कर रही है की सासु माँ सठीया गई है भजन कीर्तन की उम्र में अब हम से बराबरी कर रही है। आज भी आप सुबह से गायब थी, ना कुछ बताकर गई ना फोन उठा रही थी, आख़िर ये सब क्यूँ कर रही हो।

घर पर बैठकर दो टाइम खाना खाओ और आराम से भजन कीर्तन करो। 

बहूएँ इतरा रही थी की देखो कैसे डांट पड़ी इस उम्र में चली थी खुद का ग्रुमींग करने।

वृंदा ने गुस्से को कंट्रोल किया और इनविटेशन कार्ड आगे धर दिया और बोला आज मैं यहाँ गई थी, ये कार्ड मैंने सबको दिखाकर चार दिन पहले बोला था की मेरी सोश्यल एक्टिविटी के सन्मान में हमारे राज्य के सी एम के हाथों मेरा सन्मान होने वाला है, हम सबको विद फैमिली जाना है।

पर आप सबको मैं एक पुराने फर्निचर सी बेकार चीज़ ही लगती हूँ तो किसीने नोटिस तक नहीं किया, आप सबके लिये ये मामूली बात थी पर मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि आज भी तुम सबके चेहरे की खुशी से ज़्यादा मेरे लिए ओर कुछ नहीं, पर आज आप में से कोई मेरी खुशी का हिस्सा बनना नहीं चाहते थे तो आज किसको बताकर जाती, और क्यूँ बताती? और बहुओं की तरफ देखे बिना ही वृंदा ने बोल दिया मुझे लगता है कुछ लोग तो 50 साल के होते ही सन्यास ही ले लेंगे।

क्या कुछ उम्र के बाद इंसान इंसान नहीं रहता, दिल दिल नहीं रहता, मन मन नहीं रहता, शौक़ और इच्छाएं मर जाते है?

एक दिन तुम सबको इस उम्र का सामना करना है तो क्या तुम दो वक्त खाना खाकर सिर्फ़ भजन करोगे ?

देखो बेटा पहले तो मुझे ये बताओ की इस उम्र में मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं ये बताने वाले तुम होते कौन हो, और कौन से ग्रंथ ने उम्र की सीमा तय की है की उम्र के एक पड़ाव पर कुछ काम नहीं करने चाहिए? 

रही बात मेरे मोबाइल में व्यस्त रहने की, तो ये बात तुम्हें सोचनी चाहिए की क्यूँ आप सबके रहते मुझे आभासी लोगों का सहारा लेकर ज़िंदगी के लम्हें काटने पड़ रहे है, अरे तुमसे तो वो सब दोस्त अच्छे है जो दिन में दस बार हाल पुछते है, दो दिन ना दिखूँ तो फिक्र करते है मेरी की दीदी कहाँ हो ? कैसी हो, ठीक तो हो। मेरी लिखी हुई रचना जैसी भी हो तारिफ़ करते है। मेरे अकेलेपन के साथी है सब।

दोस्त बनाने की कोई उम्र नहीं होती, कुछ सीखने की कोई उम्र नहीं होती, ज़िंदगी जीने की कोई उम्र नहीं होती। 

तुम्हारे पापा के जाने के बाद मैंने कुछ दिन कैसे काटे मेरा मन जानता है, किसीने कभी पास बैठकर नहीं पूछा की मोम आप कैसी हो, कभी मेरे साथ बैठकर खाना नहीं खाया, हंमेशा उपेक्षित रही। मोबाइल जैसे छोटे से मशीन से जो अपनापन मिला वो अगर आप सबसे मिलता तो आज तुम्हे येे सब पूछने की नोबत ना आती।

ज़िंदगी की आख़री साँस तक इंसान इंसान ही रहता है, और एक मासूम बच्चा हर इंसान के भीतर ताउम्र जीता है, हर किसीको अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीनेका पूरा हक है। तुम इतने भी बड़े नहीं हो गये की अपनी माँ को सिखाओ की उसे कैसे जीना चाहिये।

वृंदा ने सबकी ओर देखकर बोल दिया अगर मेरा अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जीना किसीको पसंद नहीं तो कल से अपना इंतज़ाम कहीं ओर कर लो,

ये घर मेरे पति का है, ये ज़िंदगी मेरी खुद की है, पति के पैन्शन में गुजारा हो जाएगा।।

जब हाथ पैर नहीं चलेंगे तो वृद्धाश्रम चली जाऊंगी पर अब इस उम्र में अपने ही बच्चों की मोहताज होकर नहीं जीना।

माँ-बाप अगर नयी जनरेशन से कदम मिलाकर ना चले तो गँवार और पुराने ख़यालात के कहलाएँगे और अपनी मर्जी से जवाँ कदमों से ताल मिलाते है तो शोभा नहीं देता। इससे अच्छा है बेटा तुम लोग अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीओ मुझे अपने तरीके से जीने दो। अपनों बीच भी अकेली ही हूँ तो अकेलेपन की आदी हो चुकी हूँ, रह लूँगी।

बाज़ी उल्टी पड़ रही देख बहूएँ काम पर लग गई और बेटे अपनी गलती पर नतमस्तक। आज वृंदा ने एक खिड़की खोल दी थी, जहाँ से धूप का एक टुकड़ा उसकी जिंदगी को रोशन करता झाँक रहा था।।

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर


Related Posts

Achhi soch aur paropkar by Anita Sharma

October 23, 2021

 “अच्छी सोच और परोपकार” आभा श्रीवास्तव इन्दौर में अपनी बेटी सृष्टि के साथ किराये के मकान में रहती है।बेटी सृष्टि

Amisha laghukatha by Anita Sharma

October 22, 2021

 अमीषा अमीषा आज बहुत खुश है, हो भी क्यों न उसके बेटे की सगाई जो हुई है।सुन्दर सी पढ़ी लिखी

Ravan ka phone (lghukatha ) by Sudhir Srivastava

October 22, 2021

 लघुकथा रावण का फोन ट्रिंग.. ट्रिंग… हैलो जी, आप कौन? मैंनें फोन रिसीव करके पूछा मैं रावण बोल रहा हूँ। उधर

Aabha laghukatha by Anita Sharma

October 22, 2021

 “आभा” आज आभा कोलिज की दोस्त अनिता से बात करते हुए अतीत में खो गयी।वही पुरानी यादें और बातें।सागर यूनिवर्सिटी

Aabha kahani by Anita Sharma

October 12, 2021

 “आभा” आज आभा कोलिज की दोस्त अनिता से बात करते हुए अतीत में खो गयी।वही पुरानी यादें और बातें।सागर यूनिवर्सिटी

Totke story by Jayshree birmi

October 7, 2021

 टोटके जैसे ही परिवार में लड़की बड़ी होते ही रिश्तों की तलाश होनी शुरू हो जाती हैं वैसे ही मीरा

Leave a Comment