श्राद्ध
श्रद्धा सनातन धर्म का हार्द हैं,श्रद्धा से जहां सर जुकाया वहीं पे साक्षात्कार की भावना रहती हैं।यात्रा के समय नदियों को पार करते शीश जूक ही जाता हैं, जहां विदेशों में नदी के मायने एक भौगोलिक परिस्थिति ही हैं।सिर्फ बोटोनिकल पहचान वाले पेड़ पौधों की हम पूजा करते हैं।जैसे तुलसी,पीपल,वटवृक्ष आदि अनेक।हवन में आम के पेड़ की लकड़ी के उपयोग के कई कारण हैं और अब ये सब दुनियां जान गई हैं और उन पर संशोधन कर सही साबित हो रहा हैं।
वैसे ही श्राद्ध हैं,जिसमे अपने अस्तित्व के मुख्य कारण,जिनकी वजह से आज हम इस संसार में आए हैं उनके लिए अपनी श्रद्धा प्रस्तुति के उपलक्ष में हम श्राद्ध द्वारा अपनी सात पुश्तों को याद कर श्रद्धा जाहेर करते हैं।जिन को हम मिले हैं,देखा हैं समझा हैं उनको दिल से याद करते हैं और नहीं देखा हैं सिर्फ सुना हैं जिनके बारे में कल्पना कर उन्हे भी याद करते हैं।
इन संस्कारों का फायदा यह हैं कि अपने बच्चों में बड़ों के प्रति आदर भावना आती हैं,उनको कौटुंबिक मूल्यों के बारे में शिक्षा मिलती हैं।और वे भी अपने बुजुर्गो का मन रखना सीखते हैं उन्हे सम्मान देना सिखतें हैं।पहले के जमाने में कौटुंबिक मूल्यों के होते वृद्धाश्रम कहां होते थे।बड़े परिवार में आबालवृद्ध सभी को स्थान मिलता था,सब की अपनी अपनी जिम्मेवारी और हक्क भी होते थे।बीमार भी पल जाता था,बच्चे भी सभी के सहकार से पल जाते थे। बच्चें जो देखते हैं वही सीखते हैं।जोअभी अपने परिवार में दो या तीन सभ्यों से सीखतें हैं वहीं परिवार के ज्यादा सभ्यों से सिख बहुप्रतिशाली बनते थे।उनमें हरेक मुश्किल का सामना करने का सामर्थ्य होने की वजह से हताशा नाम की बीमारी से कोसों दूर रहते थे।
यही श्राद्ध हैं अपने समाज में पारिवारिक मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिए एक अवसर ही हैं।
वैसे भी भादों के महीने में आम्लवात का प्रकोप होने से खीर का सेवन उत्तम होता हैं।और गाय,कौवे और कुत्ते को भी भोजन मिल जाता हैं।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद


