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Rishton ki dhundh story by Jayshree birmi

 रिश्तों की धुंध जब नियति को पता चला कि आज उसका पति कोई और स्त्री के साथ देखा गया हैं …


 रिश्तों की धुंध

Rishton ki dhundh story by Jayshree birmi

जब नियति को पता चला कि आज उसका पति कोई और स्त्री के साथ देखा गया हैं तो उसे बहुत बुरा लगा।थोड़ी चिंता भी हुई क्योंकि निवेश को कभी भी कोई लड़की के बारे में बात करते भी नहीं सुना था लेकिन आज वह अपनी सहेलियों से तीन से चार बार सुन चुकी थी,जिससे वह चिंतित हो गई थी।निवेश को पा कर नियति बहुत खुश थी क्योंकि जिंदगी में शायद पहला सुख उसे निवेश को पा कर ही मिला था।एक भयानक अकस्मात में माता– पिता के साथ भाई के घायल होना और बाद में तीनों का दुनियां से एक साथ ही चल बसना उसके लिए बहुत ही बड़ा सदमा था ।पांच साल की उम्र में भी वह समझ रही थी कि बहुत ही दुखद हादसा हुआ हैं उसके साथ।ये जो खोया था ऊसने वह कभी भी पा नहीं पाएगी।सभी रिश्ते दार आए सभी धार्मिक प्रक्रियाएं जो उसकी समझ से बाहर थी उसे उसी के हाथ से करवाई गई।और धीरे धीरे सभी अपने अपने घर चले गए और वह दादा दादी के साथ अकेली रह गई।दादा दादी खूब प्यार करते थे किंतु उम्र का तकाजा था कि उन्हे नियति की दैनिक जरूरतों को पूरा  करने में तकलीफ होती थी।

  अपनी जिंदगी की कहानी उसकी आंखो के सामने से गुजर गए जब दादा जी की मृत्यु के रूप में एक और धक्का लगा दादी जो थोड़ी बहुत भी बेटे ,बहु और पोते की मृत्यु के बाद मजबूत दिखती थी ,बिखर के रह गई ,जब भी देखो पथराई आंखों से शून्य में ताकती रहती थी।और वह दादा जी के विरह में ज्यादा टिक नहीं पाई और एक रात सोई तो सुबह उठी ही नहीं।और सात साल की नियति के लिए एक और युग की शुरुआत हुई,वह था चाची युग।

चाचा – चाची आए सारे धार्मिक कार्यों के पश्चात उसे ले के चले गए मुबाई।

छोटे छोटे दो कमरे वाला घर जिसमे चाचा चाची अपने दोनों लड़कों के साथ रहते थे।चाचाजी एक खानगी पीढ़ी में काम करते थे और अपनी सीमित आय में जो चार लोगों को पालते थे वहां अब पांच लोगो की जिम्मेवारी आ पड़ी।वह कोशिश करते थे कि अपनी भतजी को खुश रखे लेकिन रहना तो उसे आलसी और नकचढ़ी चाची के साथ सारा दिन। दिनों चचेरे भाई को तो लड़ने और छोटे मोटे हुकम करने के लिए एक खिलौना मिल गया। जब वो दोनों सोते रहते वह चाची को घर के सारे कामों में मदद करती और फिर स्कूल जाती थी ,कब छोटे छोटे काम से घर की सारी जिम्मेवारियां उसके सिर आ गई उसे खुद पता न चला। १०वी क्लास में आते आते वह सारी गृहस्थी का भार नियति की नियति बन के रह गया।

 दसवीं की परीक्षा में कोई ज्यादा अच्छा नहीं कर पाई थी वह ,किंतु बारहवीं में जरूर अच्छा करने की ठान वह घर काम और अभ्यास के बीच पिसती रही।दिन में तो काम रहता था किन्तु रात रात भर जाग उसने बारहवीं में उसने अच्छे अंक प्राप्त किए और विज्ञान प्रवाह में दाखिला ले कॉलेज जाने लगी थी।

चाची जो अपने पुत्रों को महान मानती थी,उन्हे इंजीनियर बनाना चाहती थी वे दोनों बारहवीं में ही अटक गए और कई बार अनुत्तरणीय हो छोटी मोटी खानगी दफ्तरों में मामूली तनख्वाह पर काम करने लगे।चाची को अब ज्यादा तालीफें होने लगी जब वह कॉलेज जाने लगी और उसके बच्चों को वह कॉलेज जाते नहीं देख पाई।

 और कॉलेज के दिनों में ही निवेश से हुई थी उसकी मुलाकात,नियति का पहला दिन था कॉलेज का और वाचनालय ढूंढ रही थी।थोड़ा इधर उधर भटकने के बाद भी नहीं ढूंढ पाई तो सामने खड़े निवेश से पूछ ही लिया।तो बड़ी ही तहजीब से उसे रास्ता बताया और अपना परिचय देते हुए बताया की वह विज्ञान के तीसरे साल में उसी कॉलेज में पढ़ रहा था, और हाथ हिला चला गया।

धीरे धीरे रोज ही सामना होता रहा दोनों का,निवेश के विनयपूर्वक किया गया वर्तन उसे अच्छा लगने लगा था,जब भी मिलता तो वह भीतर से खुश होती थी और कुछ महीने बाद वह समझ गई कि निवेश को वह पसंद करने लगी थी और एक दिन दोनों का सामना हुआ और इकरार भी हो गया तब निवेश ने भी कुबूल किया कि वह भी नियति को पसंद करता था।उसकी सादगी और सिधापन उसे बहुत पसंद आया था।जब तक नियति ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की निवेश अपना पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुका था और एक बड़ी कंपनी में मैनेजर लग चुका था।

 और एक दिन दोनों ने सदा के लिए एक होने के लिए विवाह बंधन में बंध जाने का निश्चय किया।निवेश आया चाचा चाची से मिला और  बताया कि वह नियति को अपनी सहधर्मचारिणी बनाना चाहता था और दोनों विवाह बंधन में बंधना चाहते थे। चाचाजी तो खुश हुए किंतु चाची की नाराजगी की कोई सीमा नहीं थी।ये नाराजगी उस मां की थी जिसके बेटे न ही पढ़े और न ही आगे बढ़े और न ही उनके लिए कोई लड़की मिली कि उनका घर बस जाएं।

लेकिन हो ही गई निवेश से नियति का विवाह,सादे तरीके से १०–१५ लोग निवेश के परिवार वाले और उतने ही नियति की और से लोग आएं और हो गया विवाह कार्य संपन्न ।और विदा हो निवेश के घर पहुंची नियति अपने आप को खुश नसीब समझ रही थी।दो बेड रूम वाला सुंदर घर था जिसमे अपने माता पिता के साथ रहता था निवेश।निवेश के जैसा पति पा वह भी बहुत खुश थी।प्यार के साथ साथ जो परवाह करता था नियति की वह उसके लिए नई बात थी,हमेशा चाची के उलाहना सुनने वाली नियति आज बड़े मान और इज्जत से जीने लगी थी।सास ससुर का प्यार भी उसे बहुत ही भावुक बना देता था।घर के कामों में निष्णांत नियति रसोई में भी खूब निपूर्ण थी,रोज ही नए नए पकवान बना सास ससुर और पति को खुश रखना उसका जीवन का उद्देश्य बन गया था ऐसे में कब ५ साल बीत  गए उन दोनों को पता ही नहीं चला।

 जब दरवाजे की घंटी बजी तो वह चौक के वर्तमान में आई और मुंह पर हाथ फेरा तो आंखो से निकला  अश्रु प्रवाह गले तक पहुंच चुका था,उसने बाथरूम में जा मुंह धोया और हाथ में तौलिया लिए ही मुंह पोंछते पूछते दरवाजा खोलने गई और देखा तो निवेश खड़ा था, हंसते हुए उसके सामने।वह भी हल्का सा मुस्कुराई और रसोई में चली गई।निवेश की मुस्कुराहट में उसे एक फरेब नजर आया किंतु कुछ भी बोले बिना ही उसे चाय का कप पकड़ाया और बाथरूम में चली गई,अब वह निवेश से कटी कटी रहने लगी थी।एक असुरक्षा की भावना से ग्रसित होने लगी थी।अगर जो सुना था वह सच हुआ तो कहां जायेगी वह,मुश्किल से चाची के तीखे वचनों और तानों और उलाहनो को याद कर सिहर जाती ।ऐसी ही बोझिल परिस्थितियों में दिन बीतते गए,निवेश भी उसकी बेरुखी से हैरान था किंतु स्वभाववश वह चुप हो सब देख रहा था,समझने की कोशिश कर रहा था और कुछ हैरान भी था।

अब नियति कुछ जासूसी करने की सोच उसके फोन और उस पर आए मैसेज को देखने लगी,जैसे ही नहाना जाता था वह तो नियति फोन ले पूरा देख लेती थी कि कहीं कुछ निर्देश मिले उसके संबध के ,लेकिन नहीं ढूंढ पाई कुछ तो उसके दफ्तर जाने की सोच एक दिन पहुंच ही गई।उसके केबिन में जा देखा तो वह अपने काम में व्यस्त था।अपने कार्यालय के सभी सभ्यों को मिलाया जिसमे कुमारी व्याख्या भी थी।सुंदर छरहरी काया ,सुंदर लंबे बाल और सौम्य आकर्षक चेहरा, सभी लड़कियों से अलग ही दिखती थी। किंतु वह ईर्षा वश उसकी सौम्य हसीं का ठीक से जवाब नही दे पाई।और अब उसके दिमाग में उसकी तस्वीर अपनी हरीफ के रूप में अंकित हो गई और हर वक्त निवेश को ले उसके साथ अजीब सी बातें सोचना ही उसकी दिनचर्या हो गई।

कुछ दिन बाद ही निवेश ने उसकी हालत देख पूछ ही लिया कि क्या बात थी।वह कुछ न बोल सोने का ढोंग कर लेटी रही।

अब उसकी समस्या बढ़ने लगी और वह निवेश का पीछा करने लगी।जब भी निवेश के दफ्तर से निकलने का समय होता उससे  वह उसके दफ्तर के पास आए छोटे से फूड ज्वाइंट में जा उस पर नजर रखने लगी।और जब निवेश घर पहुंचता उसके बाद घर आती।जब कभी देर से घर आता तो आशंकित हो सवाल पर सवाल करती रहती और उसके  और व्याख्या के दरम्यान रिश्ते को ख्याली रूप से साक्षात हो जाती और दुःख पाती रहती थी जिसका उसके स्वास्थ्य पर भी असर दिखने लगा था।अब घरवाले भी उसके स्वास्थ्य की चिंता करने लगे और उसे डॉक्टरी जांच करवाने की सोच ने लगे किंतु वह तैयार नहीं थी।और एकदीन निवेश ने जबरन डॉक्टर के पास ले गया,पूरी जांच के बाद भी कोई बीमारी या शारीरिक तकलीफ नहीं देख डॉक्टर ने बताया कि जरूर उसके मन में कुछ होगा।

    एक दिन जब फूड ज्वाइंट में बैठ निवेश की जासूसी कर रही थी कि निवेश  और व्याख्या बाहर आए और एक टैक्सी में बैठ चले गए और अपनी शंका को सच पा कर उसे चक्कर आएं और वह कुर्सी से गिर पड़ी।सब इक्कठे हुए उसे पानी दिया और एक महिला बोली वह कहा रहती थी और उसे उसके घर पहुंचा गई और नियति की सास को उसका चक्कर खा गिरने वाली बात भी बताई और चली गई।

अब घर में सब चिंता करने लगे और जब निवेश घर आया तो वह भी चिंतित हो उठा।उसने नियति से साफ साफ बात करने की ठान ली और उसके स्वस्थ होने का इंतजार करने लगा।तीन दिन बीत गए और थोड़ी स्वस्थ लग रही पत्नी के पास जा बैठा और उसकी चिंता का कारण ही पूछ लिया तो वह फुट पड़ी और रोते रोते  पूछ ही लिया कि व्याख्या से क्या रिश्ता था उसका ।और उसकी जासूसी के किस्से भी सुना दिए तो दुःख भरी हसीं के साथ बोला कि अच्छा होता वह ये पहले पूछ लेती।

फिर बताया कि व्याख्या के साथ वह एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था और काम के सिलसिले में दोनों कभी अभी अपने क्लाइंट से मिलने जाते थे और कुछ नही था उनके बीच।वह उसके अलावा किसी से भी कोई ऐसी भावना नहीं रखता था ,यह विश्वास दिलाया तो दोनों के रिश्ते की धुंध छट गई और दोनों के बुश के तनाव का अंत आ गया और नियति ने निवेश के कंधे पर सिर रख उसके मजबूर कंधो को अपना सहारा मान अपने  को उसके प्यार के विश्वास का एहसास दिलाया।

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद 


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