Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Madhubala ki ‘Madhubala’| मधुबाला की ‘मधुबाला’

 सुपरहिट: मधुबाला की ‘मधुबाला’ निर्देशक रामगोपाल वर्मा का हिंदी सिनेमा में सितारा चमक रहा था, तब 2003 में उन्होंने अंतरा …


 सुपरहिट: मधुबाला की ‘मधुबाला’

Madhubala ki 'Madhubala'| मधुबाला की 'मधुबाला'
निर्देशक रामगोपाल वर्मा का हिंदी सिनेमा में सितारा चमक रहा था, तब 2003 में उन्होंने अंतरा माली नाम की युवा ऐक्ट्रेस को लेकर ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ नाम की फिल्म बनाई थी। उस समय माधुरी दीक्षित इतनी बड़ी स्टार थीं कि भारत के गांवों की तमाम लड़कियां उनकी दीवानी थीं और उनकी देखादेखी स्टार बनने का सपना लेकर मुंबई आती थीं। वर्मा ने स्टारडम को अंजलि देने के लिए माधुरी के नाम पर फिल्म बनाई थी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। हिंदी सिनेमा में समय-समय पर बड़ी ऐक्ट्रेस के नाम पर फिल्में बनाने के अनेक उदाहरण हैं। जैसे कि 1977 में प्रमोद चक्रवर्ती ने फिल्मी मैगजीनों में ड्रीमगर्ल के रूप में ख्यातिप्राप्त सुपरस्टार हेमा मालिनी लेकर इसी टाइटिल से फिल्म बनाई थी।
अपने ही नाम पर फिल्म बनी हो, इसकी शुरुआत नरगिस से हुई थी। 1946 में डीडी कश्यप नाम के निर्देशक ने उस समय एक बड़ी स्टार के रूप में स्थापित हो चुकी नरगिस के नाम का उपयोग कर के ‘नरगिस’ नाम की फिल्म बनाई थी। डेविड अब्राहम और रहमान के साथ बनी यह फिल्म कहानी की दृष्टि से तो याद रखने जैसी नहीं थी, पर नरगिस का सिक्का बाक्सआफिस पर किस तरह खनकता था, यह इसने साबित कर दिया था।
चार साल बाद ऐसी ही एक दूसरी फिल्म आई। इस बार उस समय नरगिस की ही समकालीन और प्रतियोगी मधुबाला का नंबर था। रणजीत मूवीटोन फिल्म स्टूडियो के बैनर के अंतर्गत प्रह्लाद दत्त नाम के निर्देशक ने उस समय की स्टार मधुबाला के नाम को बाक्सआफिस पर भुनाने के लिए ‘मधुबाला’ नाम की फिल्म बनाई थी। यह फिल्म एकदम बेकार थी। इसने मधुबाला के कैरियर को लाभ पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचाया था। देव आनंद के साथ मधुबाला की यह दूसरी फिल्म थी। तीन महीले पहले ही दोनों की ‘निराला’ नाम की फिल्म आई थी। इस के बाद दोनों ने अन्य छह फिल्मों में काम किया था।
‘मधुबाला’ को याद रखने की एक वजह यह है कि यह फिल्म उन्होंने रणजीत मूवीटोन के मालिक चंदूलाल शाह के भतीजे रतिभाई सेठ का एहसान उतारने के लिए की थी। यह एहसान की कहानी भी दिलचस्प है। मधुबाला अत्यंत गरीब परिवार से आई थी। मुमताज जहां बेगम देहलवी के रूप में पांचवें नंबर पर जन्मी (इसके बाद उसके छह भाई-बहन हुए थे) मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान की नौकरी छूट गई थी, इसलिए उनका परिवार मुंबई आ गया था। यहां आठ साल की मुमताज ने बालकलाकार के रूप में फिल्मों में काम शुरू किया था। इसके बाद तो पूरी जिंदगी एकमात्र कमाऊ बेटे के रूप में अपने विशाल परिवार को संभालना था।
बाॅम्बे टाॅकीज के जनरल मैनेजर राय बहादुर चुन्नीलाल की दया से बेबी मधुबाला को 1942 में आई ‘बसंत’ फिल्म में डेढ़ सौ रुपए वेतन पर काम मिला था। यह फिल्म सफल रही और बेबी मधुबाला सब की नजरों में आ गई। पर बाद में काम नहीं मिला तो यह परिवार दिल्ली वापस लौट गया। 1944 में बाॅम्बे टाॅकीज की मालकिन देविका रानी ने खान को कहलवा भेजा कि उन्हें दिलीप कुमार की फिल्म ‘ज्वार भाटा’ में मधुबाला की जरूरत है। यह फिल्म भी हाथ से निकल गई। पर उस समय खान परिवार ने यह तय किया कि अब मुंबई में ही रह कर चप्पल घिसना है।
इसमें रणजीत मूवीटोन के चंदूलाल शाह ने तीन सौ रुपए महीने के वेतन पर नौकरी दे दी। चंदूलाल शाह मूलरूप से जामनगर के रहने वाले थे और मुंबई के सिडनहाम कालेज में पढ़ाई की थी। उनके एक भाई जेडी शाह धार्मिक फिल्में लिखते थे। चंदूलाल ढंग की नौकरी खोज रहे थे, तभी समय व्यतीत करने के लिए भाई की मदद करते थे। इसी से वह फिल्मों की ओर आकर्षित हुए और धीरे-धीरे इस तरह आगे बढ़े कि 1929 में खुद का रणजीत स्टूडियो खड़ा कर लिया। यह स्टूडियो साल में छह फिल्में बनाता था और इसमें तीन सौ लोग काम करते थे। 
रणजीत मूवीटोन की सभी फिल्मों में मधुबाला ने बेबी मुमताज के नाम से काम किया था। इतनी कम उम्र में वह घर की ‘कमाऊ बेटा’ थी। मधुबाला तेरह साल की थी, तब 1946 में उसकी मां आयशा बेगम गर्भवती थी। वह गंभीर रूप से बीमार हुई तो उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। डाक्टर ने सर्जरी की सलाह दी, पर समस्या पैसों की थी। मधुबाला का वेतन तीन सौ रुपए था और सर्जरी का खर्च दो हजार रुपए था। 
पिता और पुत्री रणजीत स्टूडियो के मालिक चंदूलाल के भतीजे रतिभाई सेठ के पास गए और मदद मांगी। उन्होंने ताबड़तोड़ दो हजार रुपए की व्यवस्था कर दी। मधुबाला ने इस बात को याद कर के सालों बाद कहा था, 

“उन्होंने मुझे थैंकयू कहने का भी समय नहीं दिया था। पैसा देकर तुरंत अस्पताल जाने के लिए कहा था।”

मधुबाला का वह चढ़ता सितारा था और कुछ ही सालों में वह स्टार बन गई थी। उन सालों में उनकी तीन बड़ी फिल्में आई थीं। 1947 में राज कपूर के साथ ‘नील कमल’ और ‘दिल की रानी’ और 1949 में अशोक कुमार के साथ ‘महल’। उस समय उनकी फीस एक लाख रुपए थी। दूसरी ओर चंदूलाल शाह की रणजीत स्टूडियो के दिन खराब चलने लगे थे। तब उसे लाइन पर लाने के लिए रतिभाई सेठ ने मधुबाला से संपर्क करने का निश्चय किया कि शायद उनका नाम इस डूबते जहाज को बचा ले।
मधुबाला ने इस बात को याद कर के कहा था, “उनका निवेदन आया तो मुझे कुछ बड़ी फिल्में छोड़नी पड़ीं और कुछ का तो पैसा वापस करना पड़ा था। मेरे तकलीफ के समय में उन्होंने मेरी मदद की थी, अब मेरी बारी थी। मैं ने उन्हें अपने नाम का भी उपयोग करने दिया।”
रणजीत स्टूडियो ने मधुबाला के स्टारपावर का उपयोग कर के ‘मधुबाला’ नाम से फिल्म बनाने का निश्चय किया। मधुबाला ने पूर्व के एहसान की वजह से यह फिल्म की थी। उस समय देव आनंद का सितारा चढ़ रहा था। उनकी लगातार दो फिल्में ‘जिद्दी’और ‘विद्या’ हिट साबित हुई थीं। उन्हें जब मधुबाला के साथ रणजीत स्टूडियो की फिल्म करने का ऑफर मिला तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया।
दुर्भाग्य से ‘मधुबाला’ थिएटरों में पिट गई। इससे मधुबाला और देव आनंद का तो खास नुकसान नहीं हुआ, पर चंदूलाल के स्टूडियो के पतन की गति बढ़ गई। कुछ समय बाद स्टूडियो खत्म हो गया। जुआ और रेसिंग की लत लगा चुके चंदूलाल बेस्ट की बसों में घूमते दिखाई देने लगे। 
‘मधुबाला’ की समीक्षा में उस समय के तेजाबी पत्रकार बाबूराव पटेल ने अपने ‘फिल्म इंडिया’ सामयिक में लिखा था, ‘रणजीत ने अकेले जितने स्टार्स का कत्ल किया है, उतना छह स्टूडियो ने मिल कर नहीं किया। उस समय उसने भारत की वीनस (शुक्र) कही जाने वाली मधुबाला का कत्ल किया है। निर्देशक प्रह्लाद दत्त पर फिल्में बनाने के लिए प्रतिबंध लगा देना चाहिए।”
फिल्म एक ऐसी लड़की की थी, जिसे पिता की अपार संपत्ति और हृदय की बीमारी वारिस में मिली है। वह हवा बदलने के लिए गांव जाती है, जहां अशोक (देव) नाम के युवक से प्यार हो जाता है। दोनों शहर वापस आते हैं, तब कालीचरण (जीवन) मधु की दौलत के लिए खेल रचता है।
संयोग से मधुबाला को असल जीवन में भी जन्म से ही, जिसे हृदय में छेद कहते हैं, वह वेंट्रिक्युलर सेप्टल डिफेक्ट नाम की बीमारी थी और इसी में उनकी मौत हुई। आज का कोई फिल्म निर्माता 1950 की फिल्म मधुबाला में सुधार कर के रीमेक बनानी चाहिए।

About author 

वीरेन्द्र बहादुर सिंह जेड-436ए सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उ0प्र0) मो-8368681336

वीरेन्द्र बहादुर सिंह
जेड-436ए सेक्टर-12,
नोएडा-201301 (उ0प्र0)


Related Posts

मंगलसूत्र : महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा देने वाला वैवाहिक बंधन | Mangalsutra

मंगलसूत्र : महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा देने वाला वैवाहिक बंधन | Mangalsutra

May 26, 2024

मंगलसूत्र : महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा देने वाला वैवाहिक बंधन ‘मंगल यानी शुभ और सूत्र यानी बंधन। मंगलसूत्र यानी शुभबंधन।’

LaghuKatha Adla badli

LaghuKatha Adla badli

May 26, 2024

लघुकथा अदला-बदली सरिता जब भी श्रेया को देखती, उसके ईर्ष्या भरे मन में सवाल उठता, एक इसका नसीब है और

नाभि बताती है वृत्ति, प्रकृति और व्यक्तित्व

नाभि बताती है वृत्ति, प्रकृति और व्यक्तित्व

May 26, 2024

नाभि बताती है वृत्ति, प्रकृति और व्यक्तित्व सामुद्रिकशास्त्र में शरीर के विभिन्न अंगों के बारे में वर्णन किया गया है।

महा शिवरात्रि और शिवजी का प्रसाद भांग| maha Shivratri

March 8, 2024

महा शिवरात्रि और शिवजी का प्रसाद भांग ‘खइ के पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला…’ चार दशक

लघुकथा -बेड टाइम स्टोरी | bad time story

लघुकथा -बेड टाइम स्टोरी | bad time story

December 30, 2023

लघुकथा -बेड टाइम स्टोरी “मैं पूरे दिन नौकरी और घर को कुशलता से संभाल सकती हूं तो क्या अपने बच्चे

तापमान भले शून्य हो पर सहनशक्ति शून्य नहीं होनी चाहिए

December 30, 2023

तापमान भले शून्य हो पर सहनशक्ति शून्य नहीं होनी चाहिए  समाज में जो भी दंपति, परिवार, नौकरी और धंधा टिका

Next

Leave a Comment