Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

poem

kavita vo phir kabhi nhi lauta by mahesh keshari

 कविता.. वो, फिर कभी नहीं लौटा..  सालों पहले, एक  आदमी, हमारे भीतर  से निकला और,  फिर, कभी नहीं लौटा… !!  सुना …


 कविता.. 
वो, फिर कभी नहीं लौटा.. 

सालों पहले, एक 
आदमी, हमारे भीतर 
से निकला और, 
फिर, कभी नहीं लौटा… !! 
सुना है, वो कहीं शहर  , में
जाकर खो गया… !! 
वो, घर, की जरुरतों
को निपटाने
निकला था…
 निपटाते- निपटाते
वो पहले तारीख, बना 
फिर.. कैलेंडर… और, फिर, एक
मशीन बनकर रह गया….. ! ! 
और  , जब मशीन बना तो 
बहुत ही असंवेदनशील और, 
चिड़चिड़ा , हो गया..!! 
हमेशा, हंसता- खिलखिलाता
रहने वाला, वाला आदमी
फिर, कभी नहीं मुस्कुराया..!! 
और, हमेशा, बेवजह 
शोर, करने लगा…
मशीन की तरह…!! 
अब, वो चीजों को केवल 
छू- भर सकता था… !! 
उसने चीजों को महसूसना
बंद कर दिया था.. !!
उसके पास, पैसा था 
और, भूख भी
लेकिन, खाने के लिए 
समय नहीं था… !! 
 
उसके, पास, फल था.. 
लेकिन, उसमें मिठास 
नहीं थी..!! 
उसके पास  , फूल, थें 
लेकिन, उसमें खूशबू 
नहीं थी..!! 
उसकी ग्रंथियाँ, काम के बोझ
से सूख गई थीं… !! 
प्रेम, उसके लिए, 
सबसे  बडा़
बनावटी शब्द बनकर 
रह गया… !!! 
वो, पैसे, बहुत कमा रहा 
था.. !! 
लेकिन,  खुश 
नहीं था…!! 
या, यों कहलें की 
वो पैसे,  से 
खुशियाँ, खरीदना
चाह रहा था… !!! 
बहुत दिन हुए 
उसे, अपने आप से बातें 
किये..!! 
शीशे, को देखकर 
इत्मिनान
से कंघी किये..!! 
या, चौक पर  बैठकर
घंटों अखबार पढ़े और  
चाय, पिये हुए.. 
या, गांव जाकर, महीनों
समय बिताये…!! 
पहले वो आदमी गांव 
के तालाब, में  मछलियाँ 
पकडता था… 
संगी – साथियों के साथ 
घंटों बतकही करता था… !! 
पहले, उसे बतकही करते
हुए… और 
मछली पकड़ते
हुए.. बडा़… आनंद आता.. 
था… !! 
लेकिन, अब, ये, सब  , उसे
बकवास के सिवा
कुछ नहीं लगता… ! ! 
फिर, वो, आदमी दवाईयों
पर, जिंदा रहने लगा…!! 
आखिर, 
कब और कैसे बदल 
गया… हमारे भीतर का  वो..
आदमी..?? 
कभी कोई, शहर जाना 
तो शहर से उस आदमी के 
बारे में जरूर पूछना…!! 
सर्वाधिकार सुरक्षित
महेश कुमार केशरी 
C/ O- मेघदूत मार्केट फुसरो 

Related Posts

kavita purane panne by Anita sharma

May 31, 2021

पुराने पन्ने चलो पुराने पन्नों को पलटाये,फिर उन पन्नों को सी लेते हैं।उसमें दबे अरमानो में से ही,कुछ अरमान जीवन्त

kavita shahar by Ajay jha

May 31, 2021

शहर. मैं शहर हूँ बस्तियों की परिधि में बसा मजबूर मजलूम पलायित नि:सरित श्रम स्वेद निर्मित अभिलाषा लिए अतीत का

kavita meri kavitaon mein jitendra kabir

May 31, 2021

मेरी कविताओं में… मेरी कविताओं में है… तुमसे जो मिली थी पहली नजर और उसके बाद निहार पाया तुम्हें जितना

Gazal – kya karu by kaleem Raza

May 31, 2021

ग़ज़ल – क्या  करू मै  तुम कहो तो अश्क आंखो से गिराऊं क्या बैठकर मै पास हाले दिल सुनाऊं क्या

kavita Dhairya na khona tum. samunder singh

May 31, 2021

कविता – धैर्य न खोना तुम आँसू से मुँह न धोना तुम। जीवन में धैर्य न खोना तुम।हर दिन सपने

kavita samay mansa wacha up.

May 31, 2021

  कविता – समय बुरे समय में साथ छोड़ने का बहाना ढूंढने वाले और साथ निभाने का बहाना ढूंढने वाले

Leave a Comment