संवर जाती है
तो मजदूरों के पसीने में ढल जाती है।
ठंड जब कभी हद गुजर से जाती है
झोपड़ीयोंं में जाकर ठिठुर जाती है ।
बारिश जब आग बबुला हो जाती है
कई गांवों औ कस्बों में ठहर जाती है।
अरे मौसम की मार झेलने में माहिरों
तुम्हारे कारण तिजोरियां भर जाती है ।
कुदरत का कानून भी कमाल है यारों
वक्त के साथ ये ज़िंदगी संवर जाती है
-अजय प्रसाद




