शीर्षक: पवित्र रिश्ता
सुनो दिकु…
दुख अब अकेले नहीं सहा जा रहा
तुम आज होती तो लिपटकर रो लेता
मेरी आँखें सुख गयी जागकर इतनी रातों में
तुम आज होती तो गोद में सर रखकर सो लेता
तुम गंगा-सी पवित्र, में भटकता मुसाफ़िर
तुम्हारे प्रेमरूपी निर्मल जल से
काश, में अपने पापों को धो लेता
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए
About author
प्रेम ठक्कर
सूरत ,गुजरात
ऐमेज़ॉन में मैनेजर के पद पर कार्यरत