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Gadbi ki dhundhali diwali laghukatha by Jayshree birmi

 गडबी की धुंधली दिवाली   साल  में कई त्योहार आते हैं और हम भी खुशी खुशी मनातें हैं।लेकिन दिवाली तो …


 गडबी की धुंधली दिवाली

Gadbi ki dhundhali diwali laghukatha by Jayshree birmi

  साल  में कई त्योहार आते हैं और हम भी खुशी खुशी मनातें हैं।लेकिन दिवाली तो सब से महत्व का त्यौहार हैं।उजाले का त्यौहार हैं,अंधेरे पर उजाले की जीत का पर्व हैं दिवाली।अच्छे कपड़े ,अच्छा खाना और मिठाईयां ही बच्चों की ख्वाहिश की सूची में होते हैं।उनके लिए पटाखे चलाना एक साहसी कार्य होता हैं।दिवाली बड़ों के लिए अलग मायने लेके आती हैं किंतु बच्चों का अपना ही खयाल हैं दिवाली के बारे में।

 लेकिन गड़बी(गीता) के लिए दिवाली कुछ भी ले कर नहीं आई थी। गड्बी को पता ही नहीं चला वह कब और कैसे गीता से गडबी बन गई।कुछ तो उसकी मां,कुछ तो उसके पड़ोसी और कुछ हद तक वह खुद जिम्मेवार थी अपने नाम को अपभ्रंश करने में।घर में दो समय का खाना उपलब्ध नहीं होता था तो त्यौहार मनाने की तो सोच भी नहीं आ सकती थी।उसने अपनी मां के साथ काम करना शुरू कर दिया था। ऑन  लाइन नौवीं कक्षा की  पढ़ाई करने के लिए उसके पास न तो मोबाइल था और न ही वाई फाई था।पढ़ाई छोड़, उसने सेठानीजी के घर  उसकी मां के काम में  हाथ बटाना  शुरू कर दिया था।सेठानी का घर भरा पड़ा था अच्छी चीजों से लेकिन कभी उसकी या उसकी मां की इच्छा नहीं होती थी कि कुछ उठा ले,चोरी करें।ईमानदार थी दोनों ही,गरीब थी लेकिन चोर नहीं थी वे।दिन रात काम कर दोनों को मुश्किल दो वक्त की रोटी का जुगाड हो उतना ही मिल पाता था।

और अब तो दिवाली भी आ रही थी किंतु उन्हें न तो अपनी जोपडीनुमा घर की सफाई करनी थी और न ही मिठाई बनानी या लानी थी।सेठजी के घर दिवाली की सफाई कर थक के चूर हो जाती थी दोनों,घर आके वही रूखी सूखी खा सो जाती थी दोनों,छोटे भाई को समझना मुश्किल तो था किंतु उसे भी समझा ही लेती थी दोनों।सेठानीजी के घर से काम करके निकली दोनों तो सेठानी ने उन्हें कुछ रूपिए बोनस में दिए और थोड़ी सी मिठाई भी दी।घर जाते हुए किसी का अधजला दिया रास्ते में पड़ा था तो गड़बी ने उठा लिया ।कुछ बिनफुटे पटाखे चुनके उसका भाई लाया था तो बस हो गया दिवाली का जुगाड।

 दूसरे दिन बड़ी दिवाली थी तो सुबह सुबह उठ सेठजी के घर काम करके जल्दी घर आ गई दोनों।शाम को जो लक्ष्मी जी की एक फोटो थी उनके जीर्ण मंदिर में उनकी पूजा कर प्रसाद में सेठजी ने दी हुई मिठाई का प्रसाद चढ़ाया,बाहर जो अधजला दिया था उसे पुन: जलाया  जिसे जलाना तो नहीं कह  सकते,सिर्फ टिमटिमा रहा था। उससे ही उसके भाई ने वो पटाखे चलाने की कोशिश की।कुछ तो फूटे ही नहीं और कुछ जरा सी आवाज कर बूझ गए।फिर भी उन गरीबों के चेहरे पर खुशी ही थी।चाहे दिवाली का दिया धुंधला ही सही लेकिन उनकी दिवाली की खुशी ज्यादा ही थी।

जयश्री बिरमी

अहमदाबाद


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