Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel
कहानी: दुपट्टे की गाँठ

story

कहानी: दुपट्टे की गाँठ

कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे बड़े सबक किसी स्कूल या किताब से नहीं, बल्कि एक साधारण से घर में, एक सादी-सी …


कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे बड़े सबक किसी स्कूल या किताब से नहीं, बल्कि एक साधारण से घर में, एक सादी-सी औरत के मुँह से मिलते हैं। सुधा के साथ ऐसा ही हुआ था। उसे क्या पता था कि उस दिन का एक छोटा-सा लम्हा, उसकी सोच और जीवन के प्रति रवैये को हमेशा के लिए बदल देगा।

हर सुबह जब मोहल्ले में सूरज की पहली किरण घरों की दीवारों से टकराती, उसी समय सुधा अपनी झोपड़ी के बाहर बाल्टी, झाड़ू और पोछे का झोला लेकर तैयार खड़ी होती। दिनभर चार-चार घरों में काम करती थी वह—झाड़ू, बर्तन, कपड़े और कभी-कभी खाना भी। दो बच्चों की माँ, एक शराबी पति की पत्नी और अपने छोटे से घर की अकेली उम्मीद।

पर इन सबके बावजूद सुधा की हँसी कभी थमती नहीं थी। उसका सधा हुआ हाथ और मुस्कुराता चेहरा उसे हर घर में अलग बना देता था। वह साफ-सुथरा रहती थी, दुपट्टा हमेशा कांधे से उतारकर काम में जुट जाती थी—उसे लगता था कि दुपट्टा बाँधने से हाथ रुकते हैं, मेहनत में बाधा आती है।

पिछले हफ्ते ही सुधा ने एक नया घर पकड़ा था—तीन मंजिला पक्का मकान, जहां सिर्फ चार लोग रहते थे—अंकल, आँटी और उनके दो जवान बेटे। घर साफ-सुथरा था और आँटी भी पढ़ी-लिखी लगती थीं। काम ज़्यादा नहीं होता था, पर समय पर पहुँचना ज़रूरी था।

यह सुधा का दिन का आख़िरी घर था। वह अपने सभी काम निपटाकर दोपहर के बाद वहाँ जाती, थोड़ा काम और फिर आँटी के साथ चाय पर थोड़ी बातचीत। यही उसका आराम का समय होता। आँटी से उसे एक अलग अपनापन महसूस होता था।

उस दिन भी ऐसा ही दिन था। सुधा फर्श पर झुकी पोंछा लगा रही थी और आँटी पास की कुर्सी पर बैठी चाय पी रही थीं। बातों का सिलसिला चल रहा था—कभी बच्चों की पढ़ाई की बात, कभी सब्ज़ी के दामों की।

“सुधा, एक बात पूछूँ? तू बुरा तो नहीं मानेगी?”

“नहीं आँटी जी, आप तो मेरी बड़ी हैं, जो चाहे पूछिए।”

“तू हर घर में ऐसे ही दुपट्टा उतार देती है?”

सुधा हँस पड़ी। “हाँजी, दुपट्टा लेकर काम बिल्कुल नहीं होता मुझसे। फँसता है, खिंचता है।”

आँटी एक पल को चुप रहीं, फिर धीरे से बोलीं, “बुरा मत मानना बेटा, पर ज़रा अपने कुर्ते की ओर देख तो।”

सुधा ने गर्दन घुमा कर अपनी ओर देखा, तो वह एकदम झेंप गई। कुर्ते का गला थोड़ा खुला था और झुकने से अंदर का कुछ हिस्सा दिख रहा था—थोड़ी-सी शमीज़ तक। वह एकदम सीधी हो गई।

आँटी ने प्यार से कहा, “देखा बेटा, मैं औरत होकर देख पा रही हूँ, तो सोच तेरे आते-जाते उन दो लड़कों या अंकल की नज़र कहीं ग़लती से भी पड़ जाए, तो तू ही कहेगी कि घर के मर्द बिगड़े हुए हैं। पर जब सामने कुछ दिख रहा हो, तो नज़र तो जाएगी ही न? कोई आँख बंद करके तो नहीं चलेगा।”

सुधा की आँखों में पानी आ गया था, पर वह कोई विरोध नहीं कर सकी। पहली बार किसी ने उसे इस नज़रिया से कुछ बताया था। आँटी ने मुस्कराते हुए कहा, “देख, मैं तुझे कुछ दिखाती हूँ, ऐसे करना चाहिए।” उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू से गले को ढका और फिर कमर में ठीक से कसकर बाँधा।

सुधा ने सिर हिलाया, और चुपचाप अपना दुपट्टा उठाया, उसे सामने से गले तक ढका और कमर में बाँध लिया।

सुधा को उस पल अपनी माँ की याद आ गई। वह बहुत छोटी थी जब माँ चल बसी थीं। तब वह आठ साल की थी। माँ की गोदी, उसकी डाँट, उसका प्यार—सब कहीं धुंधला सा था। लेकिन आज आँटी की वो बात, वो नसीहत, वो सिखाने का तरीका—सब कुछ उसे उसकी माँ की याद दिला गया था।

उसके गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी। आँटी ने प्यार से पूछा, “ऐसे क्या देख रही है?”

सुधा की आँखें भर आईं। “आपने जो कहा, बिलकुल सही है। पर आज तक किसी ने इस तरह कुछ बताया नहीं, शायद इसीलिए कभी ध्यान नहीं गया। आप मेरी माँ जैसी हैं।”

उस दिन के बाद सुधा ने अपना तरीका बदल लिया। अब वह हर घर में दुपट्टा सही तरीके से बाँध कर ही काम करती। कई जगह लोगों ने सराहा भी। कुछ औरतों ने कहा, “अरे, अब तो तू बड़ी सलीके से दिखती है।”

सुधा के भीतर कुछ बदल गया था। एक आत्म-सम्मान, एक समझ, एक चेतना। उसे यह एहसास हुआ कि समाज में जीने के कुछ अनकहे कायदे होते हैं, जो हमें खुद ही समझने होते हैं। और कभी-कभी, कोई अपना हमें वो कायदे सिखा देता है—बिना जजमेंट, बिना अपमान के।

इस पूरी घटना ने सुधा को एक और बात सिखाई—औरतें अगर एक-दूसरी को जज करने की बजाय समझाएं, साथ खड़ी हों, तो बहुत कुछ बदल सकता है। आँटी ने सुधा को ताना नहीं मारा, उसे शर्मिंदा नहीं किया, बस एक माँ की तरह समझाया।

और यही बात सुधा ने अब अपनी बेटी में भी डालनी शुरू की। वह अपनी बारह साल की बेटी को धीरे-धीरे सजग बनाना सीख रही थी—कपड़े, भाषा, व्यवहार और आत्म-सम्मान के स्तर पर।

कुछ महीनों बाद आँटी का बेटा दिल्ली ट्रांसफर हो गया और वे लोग घर बेचकर चले गए। आँटी के जाने पर सुधा बहुत रोई। आँटी ने जाते समय एक छोटी सी पोटली में एक सुंदर सूती दुपट्टा देकर कहा था, “ये रख, जब भी पहने, मुझे याद कर लेना।”

सुधा ने वह दुपट्टा संभाल कर रखा। कभी पहनती तो आँटी की बातें कानों में गूंजने लगतीं।

अब सुधा खुद कई औरतों को, नई कामवालियों को सिखाती है। वह उन्हें बताती है, “काम करो मेहनत से, लेकिन सलीके से भी। लोग क्या सोचते हैं, यह हमारे हाथ में नहीं; लेकिन हम खुद को कैसे पेश करते हैं, यह हमारे बस में है।”

उसे लोग अब ‘सुधा दीदी’ कहते हैं। वह मोहल्ले की औरतों के लिए अब सलाहकार बन गई है। उसका आत्मविश्वास और भाषा बदल चुकी है। और यह सब शुरू हुआ था, उस एक दिन की उस एक सच्ची बात से—जो आँटी ने कही थी।

हम में से बहुतों को ज़िंदगी में ऐसे लोग नहीं मिलते जो हमें समय पर टोक दें, रोक दें या सही रास्ता दिखा दें। और कभी-कभी, जब ऐसे लोग मिलते भी हैं, तो हम उन्हें सुनना नहीं चाहते।

लेकिन अगर हम थोड़ा रुकें, थोड़ा सोचें, और अपने भीतर झाँकें, तो शायद ज़िंदगी की असली समझ उन चुपचाप बोलने वाली बातों में ही छुपी होती है।

दुपट्टा कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, पर उस दिन वो सुधा के लिए पहचान, सुरक्षा और आत्मसम्मान का प्रतीक बन गया।

सच में, कुछ गाँठें खोलने के लिए पहले उन्हें बाँधना पड़ता है—और उस दिन सुधा ने दुपट्टे की गाँठ के साथ अपनी सोच की भी गाँठ बाँध ली थी।

प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)


Related Posts

Story- aatmbal | आत्मबल

December 28, 2023

आत्मबल  विभीषण को लंका का राजपाठ सँभाले दो दिन हो गए थे , और वह लंका के बहुत से मानचित्र

Story- yuddh | युद्ध

December 28, 2023

युद्ध  लक्ष्मण की नींद एक तेज हवा के झोंके के साथ खुल गई, उन्होंने देखा भाई अपने स्थान पर नहीं

Story – vanvas ki antim ratri | वनवास की अंतिम रात्रि

December 28, 2023

वनवास की अंतिम रात्रि  राम, सीता, लक्ष्मण समुद्र तट पर एक शिला पर बैठे, वनवास की अंतिम रात्रि के समाप्त

Story – ram ne kaha | राम ने कहा

December 28, 2023

राम ने कहा “ राम , राम “ बाहर से आवाज आई , लक्ष्मण ने बाहर आकर देखा , तो

Story- Ram ki mantripaarishad| राम की मंत्री परिषद

December 28, 2023

राम की मंत्री परिषद -7 राम कुटिया से बाहर चहलक़दमी कर रहे थे, युद्ध उनके जीवन का पर्याय बनता जा

Kahani: van gaman | वन गमन

November 26, 2023

वन गमन इससे पहले कि राम कैकेयी के कक्ष से बाहर निकलते , समाचार हर ओर फैल गया, दशरथ पिता

Leave a Comment