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पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर

पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर

पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर’ जीवन में उत्तम मार्ग पर चलने का आह्वान करती पुस्तक ‘आओ चलें उन …


पुस्तक समीक्षा: आओ चलें उन राहों पर’

जीवन में उत्तम मार्ग पर चलने का आह्वान करती पुस्तक ‘आओ चलें उन राहों पर’

पुस्तक का नाम : आओ चलें उन राहों पर
लेखक : विकास बिश्नोई (7015184834)
विधा : बाल कहानी संग्रह।
संस्करण : प्रथम (2022), मूल्य : 300 रुपये।
प्रकाशक : शब्दाहुति प्रकाशन, फरीदाबाद (हरियाणा)।

युवा लेखक विकास बिश्नोई का बाल कहानी संग्रह “आओ चलें उन राहों पर” बच्चों और युवाओं को ऐसी राह पर चलने के लिए आह्वान करता है, जो उन्हें देश का एक आदर्श नागरिक बनने की प्रेरणा देता है। इस पुस्तक की कहानियों को पढ़ने से हमें ऐसा आभास होता हैं कि यह सब कुछ हमारी, हमारे परिवार, आस-पड़ोस के जीवन की वास्तविक घटनाएं हैं, जिनका हमें अक्सर कभी ना कभी सामना करना पड़ता है।
‘नानी से बचत की सीख’ कहानी के माध्यम से बच्चों में बचपन से ही पैसों की बचत की भावना पैदा हो सकती है, को बखूबी दर्शाया गया है। इस प्रकार की भावनाएं आगे चलकर जीवन और परिवार को सुनियोजित रूप से चलाने के लिए लाभकारी सिद्ध होती है।
वहीं दूसरी ओर वर्तमान में अनेक इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स ने व्यक्ति, परिवार औऱ समुदाय को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। इसको समझते हुए प्रस्तुत कहानी संग्रह की “मोबाइल है ना” कहानी में जब सचिन अपनी माताजी को मोबाईल की असीमित विशेषता बताने से नहीं अघाता, वह कहता है कि मां, आजकल सब ऑनलाइन मोबाइल से हो जाता है, कहीं आने-जाने की जरूरत नहीं होती। तब उसकी मां मोबाईल से दुनियादारी, संस्कार, मित्रता वगैरह सबको निभा सकने का सवाल करती है। तब सचिन के पास उसका कोई जवाब नहीं होता और वह अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करने लगता है।
रक्तदान न केवल दान का एक रूप है, बल्कि अनेक जिंदगियों को बचाने में भी सहायक होता है। “रक्तदान का महत्व” कहानी में बच्चों को सहजता से रक्तदान के महत्व के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई गई है। पुस्तक में आगे बढ़ते हैं तो समाज की एक आम समस्या “लड़का औऱ लड़की में फर्क” औऱ माता पिता का जीवन में अमूल्य स्थान को अलग अलग कहानियों में दर्शाया गया है। जहाँ “बेटियां” कहानी में बेटी को बेटे के समान दर्जा दिया गया है, वहीं जब रमेश अपनी पत्नी के कहने पर मां-बाप को घर से बाहर निकाल देता हैं, तब उनका बेटा किस प्रकार से अपने मां-बाप की आंखें खोल अपने दादा-दादी को पुन: अपने परिवार में वापस लाने में सफल होता है, इसे “जड़” कहानी में बहुत ही सुन्दर रूप में बताया गया है।
इसी तरह प्रस्तुत कहानी संग्रह में तीन दर्जन कहानियां हैं। प्रत्येक कहानी किसी न किसी रूप में देशभक्ति, सामाजिक, पारिवारिक व पर्यावरणीय सीख प्रदान करती हैं। मेरा मानना है कि कहानी संग्रह को पढ़कर पाठकों को ऐसा कहीं भी नहीं लगेगा कि उन्हें जबरदस्ती से सीख दी जा रही है, बल्कि वे सहजता से इसे ग्रहण करेंगे। विशेष बात यह है कि कहानियों को आकर्षित बनाने हेतु सुंदर रेखाचित्रों का सार्थक सहारा लिया गया है, जो पुस्तक में चार चाँद लगाने का कार्य करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस बाल कहानी संग्रह से बच्चों को सही राह पर चलने की प्रेरणा अवश्य मिलेगी। मेरा विश्वास है कि बाल वर्ग में ज्ञान एवं जागरूकता बढ़ाने के लिए यह कहानी संग्रह एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगी, जिसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं।

– राकेश शर्मा “निशीथ”
एक्सप्रैस ग्रीन्स, डी.जी.001,
सेक्टर-1, वैशाली, उत्तरप्रदेश – 201010

कहानी संग्रह के लेखक ‘विकास बिश्नोई’।
Vikas bishnoi

 


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