गजल
लगता है गरीब के घर ही जलते हैं ।।
कुछ लोग तो रोटी को तरसते हैं यहाँ ।
देश में अब तो हराम ही यहाँ पलते हैं ।।
चोर-उचकौं की चारों तरफअब चाँदी है ।
भले लोग सहमे से यहाँ हरदम डरते हैं ।।
पानी के संकट का डर अब सबको है ।
फिर भी लोग गंगा माँ को दूषित करते हैं ।।
राज की खातिर ये विषधर विष घोलते हैं ।
अब तो नेता जी झूठ के सहारे ही चलते हैं ।।
देश में अब आपसी सद्भाव की जरुरत है ।
क्यों की अब अमन को भी खतरे लगते हैं।।
“नाचीज”अब मिल जुल सद्भाव कायम करो।
लगता है कुछ अब तो अनर्थ होते से लगते हैं ।।
