Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, lekh

18 वर्ष की उम्र @ हाई प्रोफाइल हत्या !

18 वर्ष की उम्र @ हाई प्रोफाइल हत्या ! नवज़वानों, बच्चों के ग़लत रास्ते पर जाने पर हर घर, हर …


18 वर्ष की उम्र @ हाई प्रोफाइल हत्या !

18 वर्ष की उम्र @ हाई प्रोफाइल हत्या !

नवज़वानों, बच्चों के ग़लत रास्ते पर जाने पर हर घर, हर समाज में चिंतन क़र हल निकालना समय की मांग

बच्चों की हिंसात्मक प्रवृत्ति को संज्ञान में लेकर, माता-पिता घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा तुरंत सुयोग्य उपचारात्मक कदम उठाना ज़रूरी – एडवोकेट किशन भावनानी

गोंदिया – वैश्विक स्तरपर मीडिया में आई जानकारी को संज्ञान में लेकर बात सामने आ रही है कि कुछ सालों से बच्चों युवकों की हिंसात्मक गतिविधियों में लिप्तता कुछ अधिक सुनाई दे रही है, जैसे विकसित देश अमेरिका में भी बच्चों द्वारा आपराधिक संलिप्तता वैसे ही भारत में भी बच्चों युवकों की अपराध में संलिप्तता के मामले अधिक सुनने में आ रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर देश भर में गिरफ्तारियों पर नजर डाली जाए तो बच्चों युवकों के मामले हमें अधिक दिखाई देंगे। अभी दिनांक 15 अप्रैल 2023 को देर रात्रि जिस तरह 18 से 25 वर्ष उम्र के तीन युवकों द्वारा एक हाईप्रोफाइल हत्या को टर्किश हथियार से अंजाम दिया गया जो भारत में बाधित है, उसे देख सुनकर भारत सहित पूरा विश्व हैरान रह गया है और 18 वर्षके एक बच्चे की संलिप्तता को से इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने पर कई सवालिया निशान खड़े हो गए हैं कि आखिर हमारे बच्चे युवा किस दिशा में जा रहे हैं। एक ओर भारत के बच्चे युवा उपलब्धियों के झंडे गाड़ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ हमारे बच्चे और युवाओं की ऐसे हाई प्रोफाइल हत्या के केसों में संलग्नता अति चिंतनीय है। सबसे बड़ी बात सामने आई है कि इनके ऊपर कई क्रिमिनल केस दर्ज हैं। यानें इसका मतलब यह बहुत मंझे हुए खिलाड़ी और प्रोफेशनल शूटर भी हैं। याने अपनी उम्र से कुछ वर्ष पूर्व ही अपराध की दुनियां में कदम रखे होंगे, जब वे बच्चों की श्रेणी में ही होंगे। जिनकी बात उनके घरवालों ने भी कबूली है जोकि रेखांकित करने वाली बात है। हालांकि इस संबंध में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2021 हमारे पास है। बच्चों से संबंधित अनेक अधिनियम जैसे बाल (श्रम की प्रतिज्ञा) अधिनियम,1933, बच्चों का रोजगार अधिनियम 1938, कारखाना अधिनियम 1948, खान अधिनियम 1952, बाल श्रम( निषेध और नियमन) अधिनियम 1986, शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 सहित अनेक बच्चों के अधिनियम हमारे पास हैं। चूंकि उपरोक्त हाई प्रोफाइल केस में 18-25 वर्ष के प्रोफेशनल शामिल है, जिसकी एनएचआरसी ने यूपी डीजीपी और प्रयागराज पुलिस कमिश्नर से 18 अप्रैल 2023 को नोटिस देकर एक रिपोर्ट तलब की है। वही यूपी सरकार ने18 अप्रैल 2023, को ही 61 माफियाओं की सूची जारी की है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी केसहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, 18 वर्ष की उम्र @ हाई प्रोफाइल हत्या।
साथियों बात अगर हम बच्चों की करें तो, पिछले कुछ सालों में हत्या,बलात्कार और इस तरह के बड़े अपराधों में किशोरवय बच्चों की संलिप्तता पर समाज के हर तबकों में चिंता व्यक्त की गई है। अपराध के आंकड़े भी ऐसे ही दशा दिखा रहे हैं। इसके मद्देनजर किशोर अधिनियम में बदलाव की भी मांग उठी और 2014 में संशोधित अधिनियम के अनुसार जघन्य अपराध में शामिलकिशोरों पर वयस्कों के जैसे मुकदमा चलाने की बात चली, लेकिन यह अधिकार का इस्तेमाल किशोर न्याय बोर्ड ही कर सकता है। अब भी कानूनन उम्र कैद या मौत की सजा नहीं हो सकती है। इस संशोधन से पहले नाबालिग को तीन साल तक सुधार गृह में रखने की अधिकतम सजा दी जा सकती थी। हालांकि अभी किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) संशोधन अधिनियम 2021 लागू है। सोचना तो यह चाहिए कि आखिर ये बड़े होते बच्चे और किशोर इतने हिंसक क्यों बन रहे हैं? पुलिस को यह भी रिकॉर्ड के आधार पर बताना चाहिए किस प्रकार के परिवेश में रहने वाले लोग ऐसे अपराध में अधिक लिप्त पाए जाते दिखते हैं ताकि दूरगामी रूप से हल निकालने की नीति बनाई जा सके। सामाजिक विज्ञान के अध्यताओं को भी इस दिशा में काम करने की जरूरत है।
साथियों यह सही है कि बच्चे यदि जल्दी बड़े होने लगे हैं और उन्हें खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई से इतर दुनिया ज्यादा आकर्षित करने लगी है तो इन्हें इसका खामियाजा भी भुगतने को तैयार रहना होगा, लेकिन इसके पहले दो बातों पर विचार करना चाहिए। एक तो क्या कोई भी व्यक्ति चाहे-बच्चा हो या बड़ा-अपराध करने से पहले यह सोचता होगा कि उसे कैसा अंजाम भुगतना होगा? सभी अपने को समझदार समझते हैं कि वे तो बच जाएंगे तो ऐसा बच्चे क्यों नहीं सोचेंगे? तब सख़्त सजा दूसरों को अपराध की दुनिया में कदम रखने से कैसे रोकेगा और दूसरा सवाल कि बच्चे बच्चों की तरह बड़े क्यों नहीं बन रहे हैं? सोचना चाहिए कि बच्चों में आपराधिक प्रवृत्ति कहां से आ रही है? यह एक बड़ा सवाल है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है।मीडिया तथा अन्य संचार माध्यमों पर तो लगातार विशेषज्ञों एवं जानकारों की राय आती रहती है कि कैसे आक्रमकता एवं यौनिक कुंठाएं पैदा हो रही हैं। पिछले दिनों एक अग्रणी अस्पताल ने बच्चों की हिंसात्मक प्रवृत्ति पर कराए गए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि हिंसात्मक फिल्में देखने के कारण बच्चों में हथियार रखने की परिपाटी बढ़ रही है। सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि 14 से 17 वर्ष के किशोर हिंसात्मक फिल्में देखने के शौकीन हो गए हैं। ध्यान रहे यह समस्या कुछ घटनाओं तक सीमित नहीं है और न ही जघन्य अपराधों तक जोकि अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं बल्कि लड़ाकू-झगड़ालू दूसरों को तंग करना, बुलिंग आदि की शिकायतें आए दिन स्कूल परिसरों की सरदर्दी बनती जा रही हैं। जिसपर स्कूलों पर ध्यान देने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम भारत में प्रमुख बाल मुद्दों और बच्चों के संबंध में सरकारी नीतियों की करें तो, भारत में प्रमुख बाल मुद्दे-बाल श्रम,बच्ची, कुपोषण,गरीबी, निरक्षरता, बाल विवाह, बच्चों का अवैध व्यापार, लिंग असमानता।बच्चों के संबंध में सरकार की नीतियां, भारत सरकार ने देश के बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को लेकर कई नीतियां बनाई हैं। सरकार ने बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर भी कई नीतियां बनाई हैं। बच्चों के संबंध में सरकार की कुछ महत्वपूर्ण नीतियां निम्नलिखित हैं- बच्चों के लिए राष्ट्रीय नीति, 1974,शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति,1986, बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति, 1987, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2002
साथियों बात अगर हम बच्चों को भारत में ईश्वर अल्लाह के रूप में मानने की करें तो, यों हमारे देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है और कुछ धर्मों में तो बच्चों की पूजा तक की जाती है। वैसे भी बच्चे देश का भविष्य और अनमोल राष्ट्रीय संपत्ति होते हैं और आने वाले समय में उनके मजबूत कंधों पर देश औरपरिवार के भविष्य की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसलिए सरकार, समाज, माता-पिता, अभिभावक के रूप में हम सभी का एक नैतिक कर्तव्य है कि हम बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें स्वस्थ्य सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में बड़ा होने का अवसर प्रदान करें। ताकि वे बड़े होकर देश के जिम्मेदार नागरिक के रूप में शरीर से हृष्ट-पुष्ट, मानसिक रूप से विद्वान और नैतिक रूप से सदाचारी बन कर अपनी जिम्मेदारी का सही ढंग से निर्वाह कर सकें। माता-पिता औरसरकार का कर्तव्य है कि वे बच्चों के विकास के लिए समान अच्छे अवसर प्रदान करें। इसके साथ ही सरकार का दायित्व है कि समाज में व्याप्त असमानता को कम करने के लिए सभी बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। हमारे देश में बच्चों से आज्ञाकारी बनने, बड़ों का आदर-सम्मान करने वाला और अपने अंदर अच्छे गुणों को धारण करने वाले होने की अपेक्षा की जाती है और अधिकतर बच्चे इस पर अमल भी करते हैं। ग्यारह से सोलह वर्ष की किशोरावस्था की उम्र बेहद महत्त्वपूर्ण होती है। उसी दौरान उनके व्यक्तित्व निर्माण और सर्वांगीण विकास की ठोस नींव रखी जाती है। ऐसे में उनका किशोर उम्र में विशेष ध्यान देना बेहद जरूरी हो जाता है। क्योंकि यही वह समय है, जब बच्चे के गलत रास्ते पर चलने की आशंका सबसे अधिक होती है। अधिकतर बच्चे अपने परिवार, समाज और सरकार के बनाए नियमों को मानते हैं, लेकिन कुछ बच्चे अनुशासन और नियमों को नहीं मानते हैं। इनमें से ही कुछ बच्चे धीरे-धीरे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं, जिसके चलते उन्हें समाज में बाल अपराधी या किशोर अपराधी के रूप में जाना जाता है।
अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर उसकाविश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 18 वर्ष की उम्र @ हाई प्रोफाइल हत्या!नवज़वानों, बच्चों के ग़लत रास्ते पर जाने पर हर घर, हर समाज में चिंतन क़र हल निकालना समय की मांग। बच्चों की हिंसात्मक प्रवृत्ति को संज्ञान में लेकर, माता-पिता घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा तुरंत सुयोग्य उपचारात्मक कदम उठाना ज़रूरी है।

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Related Posts

Lekh aa ab laut chalen by gaytri bajpayi shukla

June 22, 2021

 आ अब लौट चलें बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी

Badalta parivesh, paryavaran aur uska mahatav

June 12, 2021

बदलता परिवेश पर्यावरण एवं उसका महत्व हमारा परिवेश बढ़ती जनसंख्या और हो रहे विकास के कारण हमारे आसपास के परिवेश

lekh jab jago tab sawera by gaytri shukla

June 7, 2021

जब जागो तब सवेरा उगते सूरज का देश कहलाने वाला छोटा सा, बहुत सफल और बहुत कम समय में विकास

Lekh- aao ghar ghar oxygen lagayen by gaytri bajpayi

June 6, 2021

आओ घर – घर ऑक्सीजन लगाएँ .. आज चारों ओर अफरा-तफरी है , ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत का

Awaz uthana kitna jaruri hai?

Awaz uthana kitna jaruri hai?

December 20, 2020

Awaz uthana kitna jaruri hai?(आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ?) आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ये बस वही समझ सकता

azadi aur hm-lekh

November 30, 2020

azadi aur hm-lekh आज मौजूदा देश की हालात देखते हुए यह लिखना पड़ रहा है की ग्राम प्रधान से लेकर

Previous

Leave a Comment