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Mirza Ghalib, Quotes, Shayari

101+मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर| Mirza Ghalib sher| shayari

101+मिर्ज़ा ग़ालिब के  शेर| Mirza Ghalib sher| shayari  मिर्ज़ा ग़ालिब (1797-1869) भारत में मुगल युग के दौरान एक प्रसिद्ध उर्दू …


101+मिर्ज़ा ग़ालिब के  शेर| Mirza Ghalib sher| shayari 

101+मिर्ज़ा ग़ालिब के  शेर| Mirza Ghalib sher| shayari

मिर्ज़ा ग़ालिब (1797-1869) भारत में मुगल युग के दौरान एक प्रसिद्ध उर्दू और फ़ारसी कवि थे। उन्हें उर्दू भाषा के सबसे महान कवियों में से एक माना जाता है और अक्सर उन्हें “पूर्व का कवि” और “उर्दू का शेक्सपियर” कहा जाता है।

ग़ालिब की शायरी अपनी जटिल भाषा, विचार की गहराई और दार्शनिक विषयों के लिए जानी जाती है। उन्होंने प्रेम, आध्यात्मिकता, दर्शन और मानवीय स्थिति सहित विभिन्न विषयों पर लिखा। ग़ालिब की शायरी इसकी बुद्धि, कटाक्ष और भावनाओं की जटिलता को पकड़ने की क्षमता से चिह्नित है।

अपनी अपार प्रतिभा के बावजूद, ग़ालिब ने कठिनाइयों का जीवन व्यतीत किया और जीवन भर आर्थिक रूप से संघर्ष किया। उनके काम को उनके जीवनकाल में पूरी तरह से सराहा नहीं गया था, लेकिन तब से उनकी कविता को व्यापक लोकप्रियता मिली है और कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है। उनकी विरासत दुनिया भर के कवियों और साहित्य के प्रति उत्साही लोगों को प्रेरित करती है।

मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर

“हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले।”

“इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश गह है जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे।”

“दिल से तेरी निगाह ज़रा मोद के देख पास होते ही नहीं तो तेरे नसीब में ये बात नहीं कि पास हो।”

“अर्ज़ था कि जाते वक़्त उन्हों ने कह दिया था कि भूल ना जाना हमें इस तरह से सताकर तुम भी ना सताना।”

“काग़ज़ के फूलों को सेरेमाहोबत में जलाते रहे, हम अपनी जिंदगी की राह में चलते रहे।”

“किसी के वास्ते रुख़ते हैं जमाने जितने मगर, ज़िन्दगी तो अपनी पहले ही कम है के बस दो-चार दिन रहे।”

“ग़म दे क्या चीज़ है, मसरूफ़ ज़िन्दगी की बात है, कहो फिर एक बार जीवन में तो आज मुस्कुराना ही पड़ेगा।”

“वो जो हममें तुममें क़रार था तुम्हारे ख़ातिर वो रिस्ता क़रार का था हमारे ख़ातिर।”

“गुलशन की फ़ैक़ तो सब ने उड़ाई होगी, हमने भी उड़ाया था जिन्हें दिल में समाए रखा।”

“हम न थे तो क्या घमंड था, तुम न होते तो क्या हमारी जान थी।”

“दोस्ती इतनी ख़ूबसूरत हैं के इसे रौशनी से भी जलाया नहीं जा सकता।”

“आता हूँ दिल तुझे आपने साथ लेकर, तेरे पास रूठ कर फिर एक बार जाने की चाहत लेकर।”

“जिसे हम चाहते हैं, वो बात बयाँ नहीं करते, तुम हस्ती हो रुख़सार इसलिए जानते हो हम कितने तन्हा हैं।”

“कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती, मौत का एक दिन मुआयना है, न जाने क्यूँ वो भी कभी साथ नहीं आती।”

“हँसना तो इंसान का फित्रत है, हम बस उन्हीं से नहीं हंसते, जो हमें ख़ुशी से ज्यादा ख़ुश हों।”

“तेरे वादे पे जिए हम तो ये जान झूठ जाना, के खुशी से मर ना जाते अगर ऐतबार होता।”

“कहते हो ग़ालिब कैसे हो जाते शौक़त और इबादत, तमाम उम्र करते हो जो इब्तिदात वो भी तो आखिरत में होती हैं।”

“दिल से तेरी याद को जुबां पे लाते नहीं, हम तो रुसवाई में भी आवाज़ देते नहीं।”

“मुझे किसी से मोहब्बत नहीं सीखनी, मुझे तो बस वफ़ा करनी है, क्योंकि वफ़ा से बड़ी कुछ नहीं होती, बस उम्र कटती हैं और कुछ नहीं होता।”

“उसने मेरी बात तो बड़ी अच्छी सुनी, मगर उसने ये क्या नहीं समझा, की इश्क़ मुझसे तो हो सकता नहीं, मगर मेरे दिल से इश्क़ होता हैं।”

“हँसते हैं रोते हैं सभी आदमी, मगर हँसता हुआ ज़माना नहीं देख पाता, तेरी ज़ुल्फ़ों के साए में शाम कर लेता हूँ, तुझसे बच के कहाँ जाऊँ के मैं मेरा दामन बचा लेता हूँ।”

“इश्क़ पर जिंदगानी भरी होती हैं, हर ख़ुशी से हर गम से भरी होती हैं, जो माँगो तो जान भी दे देता हैं, मगर कभी वफ़ा से कभी जुदाई से भरी होती हैं।”

“हमको मालूम हैं जन्नत की हक़ीकत लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को, ‘ग़ालिब’ ये ख़्याल अच्छा हैं।”

“ज़िन्दगी शायद फिर लौट आएगी, घम के आँगनों में फिर हम खिल जाएँगे, मुस्कुराएँगे जब देखेंगे तुझे हम, आँखों में फिर से आशुओं की नाई लहराएँगे।”

“हँसी तो फ़र्ज़ हैं मगर हम तुम्हें रोया नहीं करते, अजब हैं ये तेरी दोस्ती के रिश्ते, जो जान से भी प्यारे हैं हम उन्हें निभाया नहीं करते।”

“उम्र-ए-दराज़ माँग कर लाए थे चार दिन, दो आदमी तो किस्मत से ही मिल गए।”

“एक नयी सी दुनिया हमें दिखाई देती हैं, एक नयी सी दुनिया हमें दिखाई देती हैं, कभी इसे हम सपना कहते हैं, कभी इसे हम ज़िन्दगी कहते हैं।”

“बदलते रहेंगे ये जमाने के तौर-तरीन, तेरी आंखों के सिवा कुछ नहीं देखा हमने।”

“अजब मसला हैं दिल तेरा, हमें आता नहीं, तेरी तस्वीर देखी तो कोई ख़ता नहीं।”

“इस दरिया के साग़र में उतर जाने का मजा तो आता हैं, दूसरों की खुशी में खुश होने का मजा तो आता हैं।”

“तेरे वजूद को अपनी ज़िन्दगी का आलम समझते हैं, बिछड़ने की ख़ुशी में भी अपनों से मुलाकात करते हैं।”

“ग़ालिब वो नहीं जो आज कल की तरह फ़ैशन में हो, वो तो वो हैं जिसने अपनी रूह को इश्क़ के लिए जोखा हो।”

“हमने माना के तग़ाफ़ुल नसीब से मिलता हैं, ग़म के आफ़ात में ग़ज़ल का अधूरा साज़ होता हैं।”

“दोस्ती इतनी ख़ूबसूरत हैं, ना कोई बता सकता हैं, ना कोई भुला सकता हैं।”

“कितनी नफ़रत थी ये मेरे दिल में, जब लोगों से नफ़रत करना पड़ता था, अब जब मैं इनसानों से मोहब्बत करने लगा, तो पता चला के इनसान होना कितना मुश्किल हैं।”

“खुदा ने आशिक़ों से यह कैफ़े तमाम देखा, होते हैं जिस की हाथों में जाम और चाकी।”

“ये नाम जब भी पुकारूंगा, तुम्हारी महफ़िल में लाओगे जाम, शायद तुम्हें इससे बेहतर उपहार कुछ न मिल पाये।”

“इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मों को बख़्श दिया, हम ख़ुद ग़रीब होते तो क्या होता।”

“दुनिया ने कहा मेरे दिल में रहने वाले को कुछ नहीं मिलता, मैंने कहा ज़ुल्म ने मेरी जान ले ली तो क्या हुआ, कम से कम इश्क़ तो मिलता हैं।”

“मेरी नौमीदी नहीं देखती आज की शाम, नए सवेरे की तलाश में जी रहे हैं।”

“अगर खुदा मुझे तेरी अजायब नवाज़िशों से खुश नहीं कर सकता, देख कर मुझे ज़िन्दगी से क्या क्या माँग नहीं गुज़रता हूँ।”

“अजब था मेरा इस्तिवा-ए-दार पर, वो ख़ौफ़ से बोला कि रह नहीं सकता तेरे बग़ैर।”

“हदीसे सुनी थी उन्होंने इतनी, कि जान का खतरा नहीं, तो देखा तेरी नज़रों में जान की कीमत इतनी हैं।”

“तुझे क्या खबर के तेरी आँखों में मैं क्या देखता हूँ, तेरी बेदर्दी के सिवा कुछ नहीं देखता हूँ।”

“वो जो हम में तुम में करार था, उसे तुम भूल जाओगे ये हो नहीं सकता।”

“जब इश्क़ करता हूँ, तो बेदर्दी से करता हूँ, इसे आदत से मजबूर हैं मेरा जिगर।”

“जब बात तेरी नज़रों की होती हैं, तो  कितने शब्द कम होते हैं।”


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