Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Aalekh, Bhawna_thaker

स्वतंत्रता कहीं स्वछंदता न बन जाए

 स्वतंत्रता कहीं स्वछंदता न बन जाए “तोल-मोल के बोल मानव वाणी को न व्यर्थ खोल, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मिश्री …


 स्वतंत्रता कहीं स्वछंदता न बन जाए

“तोल-मोल के बोल मानव वाणी को न व्यर्थ खोल, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मिश्री में तू घोल”

सोशल मीडिया का आविष्कार जब से हुआ है तब से लोगों की ज़ुबान तेज़ाबी होने लगी है। हर कोई किसीको भी तीखे शब्दों का इस्तेमाल करके कुछ भी सुना देते है। यहाँ तक की प्रधान मंत्री देश के सम्मानीय व्यक्ति होते है उनके बारे में भी अनाप-सनाप बोलने से नहीं शर्माते। जैसे फेसबुक, वोटसएप, इंस्टाग्राम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सार्वजनिक  मंच बन गया हो। 

माना कि लोकतांत्रिक देश भारत सभी नागरिकों को विचार करने का, भाषण देने का और अपने व अन्य व्यक्तियों के विचारों का प्रचार, प्रसार करने का पूरा अधिकार और स्वतंत्रता देता है, अभिव्यक्ति की आज़ादी संविधानिक अधिकार भी है। पर जब अधिकारों का गलत इस्तेमाल हो तब एक सीमा तय करना जरूरी हो जाता है। 

अभिव्यक्ति की आजादी भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में से एक है। हमारा देश मिली-जुली संस्कृति वाला देश है यहाँ आस्तिक, नास्तिक और आध्यात्मिक सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार है। इनके विचारों को सुनना लोकतंत्र का परम कर्तव्य है, अवाम की आवाज़ सुनना देश की शासन व्यवस्था का उतरदायित्व है।

सोच और विचारों का संचार मनुष्य के अधिकारों में सबसे अधिक मूल्यवान है। हर नागरिक स्वतंत्रता के साथ बोल सकता है, लिख सकता है तथा अपने अल्फाज़ों को समाज के सामने रख सकता है। लेकिन इस स्वतंत्रता के दुरुपयोग के लिए भी इंसान खुद ज़िम्मेदार होता है।

आजकल समाज और देश में जो हो रहा है उसे देखकर लगता है कि या तो अभिव्यक्ति की आजादी खतरे में है, या लोगों को अपनी अभिव्यक्ति का ठीक से उपयोग करना नहीं आता। आज शोषक और शोषित दोनों ही पक्ष एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। दोनों ही असंतुष्ट है। शायद ये आजादी के दुरुपयोग का नतीजा है। इस मुद्दे पर विमर्श बेहद जरूरी है।

स्वतंत्रता जब स्वच्छंदता का रुप ले लेती है तब महसूस होता है कि आज़ादी का दुरुपयोग हो रहा है। आज़ादी का हनन हो रहा है, स्वतंत्रता सीमा लाँघ रही है। फिर चाहे वह नेता हो या जनता, हर कोई मनमानी पर उतर आया है। स्वतंत्रता को अब एक दायरे की जरूरत है, स्वतंत्रता का सीमा रेखा के बाहर जाकर उपयोग करने वालों पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए। नेताओं को अपने वक्तव्यों में शब्दों पर लगाम कसनी होगी। विपक्षों के गुण-अवगुण पर बहस आज हद पार कर रही है। शोसल मीडिया पर  जात-पात और धर्म के नाम पर फैल रही बदी भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा लाँघ रही है। जिसके चलते एक दूसरे के प्रति सौहार्द की भावना लज्जित हो रही है। हर नागरिक को मर्यादा में रहकर अपने विचार, अपनी मांग और अपने अधिकार रखने चाहिए। हर धर्म का सम्मान करना चाहिए तभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गरिमा बरकरार रहेगी। 

About author

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु

Related Posts

कामकाजी महिला से रत्ती भर कमतर नहीं गृहिणी | housewife is not an iota less than a working woman.

December 11, 2022

“कहते है लोग वक्त ही वक्त है उसके पास, खा-पीकर टीवी ही देखती रहती है कहाँ कोई काम खास, करीब

भाईदूज का उपहार/Hindi Story -bhaidooj ka uphar

October 23, 2022

Hindi Story -bhaidooj ka uphar. “(भाईदूज का उपहार”) माँ इस बार मैं आपकी नहीं सुनूँगा, दीदी की शादी को तीन

बहू को बेटी सा प्यार देकर बुढ़ापा सुरक्षित कर लीजिए

October 19, 2022

 बूढ़े माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा बेटा नहीं…. एक अच्छी संस्कारी बहु होती है। हर माँ-बाप को बेटे की शादी

बजट में खेलिए ज़िंदगी की रेस आसान लगेगी

October 17, 2022

“बजट में खेलिए ज़िंदगी की रेस आसान लगेगी” परिवार चलाना कोई बच्चों का खेल नहीं, लोहे के चने चबाने जितना

पुरानी चीज़ों का सुइस्तेमाल करें

October 17, 2022

 “पुरानी चीज़ों का सुइस्तेमाल करें” दिवाली नज़दीक आ रही है, तो ज़ाहिर सी बात है सबके घर के कोने-कोने की

क्यूँ न बच्चों को संस्कृति से परिचय करवाया जाए

October 17, 2022

“क्यूँ न बच्चों को संस्कृति से परिचय करवाया जाए” आजकल की पीढ़ी भौतिकवाद और आधुनिकता को अपनाते हुए अपने मूलत:

Leave a Comment