Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Health, lekh, sneha Singh

स्क्रीन टाइम v/s स्लीप टाइम

स्क्रीन टाइम v/s स्लीप टाइम आप दिन में कितने घंटे स्क्रीन के सामने होती हैं? अपने रेग्युलर काम से थोड़ी …


स्क्रीन टाइम v/s स्लीप टाइम

स्क्रीन टाइम v/s स्लीप टाइम

आप दिन में कितने घंटे स्क्रीन के सामने होती हैं? अपने रेग्युलर काम से थोड़ी देर के लिए जैसे ही खाली होती हैं तुरंत हाथ में मोबाइल ले लेती हैं? स्क्रीन टाइम में केवल मोबाइल की ही गिनती नहीं करनी है, आप आफिस में कितने घंटे कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करती हैं? घर आ कर कितनी देर टीवी देखती हैं। आज ओटीटी प्लेटफार्म पर वेबसिरीज की लोगों की आदत पड़ गई है। पूरा का पूरा सीजन एक बैठक में खत्म कर देने वालों की भी कमी नहीं है। क्या आप भी ऐसा करती हैं? वीकएंड में तो पूरी की पूरी रात वेबसिरीज देखी जाती हैं। ओवरआल, पूरे दिन में हमारी आंखें किसी न किसी स्क्रीन के सामने रहती हैं? अभी जल्दी एक सर्वे आया है, जिसमें कहा गया है कि मनुष्य का स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसकी वजह से स्लीप टाइम घट रहा है। एक समय था, जब बारह बजे सोना बहुत देर माना जाता था। बारह बजे तक जागते रहने पर मां-बाप या बुजुर्ग कहते थे कि क्या आधी रात तक जागती रहती हो? अब बारह बजे तक जागना जैसे काॅमन हो गया है। अब तो ऐसा लगता है कि जैसे सोने का समय ही 12 बजे का हो गया है। ऐसा कहने वाली तमाम लोग मिल जाएंगी कि किसी से कहो कि नौ-दस बजे सो जाती हूं तो उसे हैरानी होती है। लोगों की लाइफस्टाइल ही ऐसी हो गई है कि उन्हें जल्दी सोना हो तो नींद ही नहीं आती। बाॅडी क्लाक ही ऐसा सेट हो गया है कि बारह बजने के बाद ही नींद आती है।

क्या कहते हैं डाक्टर और साइकोलाॅजिस्ट

मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए डॉक्टर और साइकोलाॅजिस्ट लोगों को स्क्रीन टाइम घटाने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि स्क्रीन टाइम पर नजर रखें। अधिक समय देंगे तो समय तो खराब होगा ही, साथ ही साथ हेल्थ इश्यू भी खड़ा होगा। सेंटर फार द स्टडी आफ डेवलपिंग सोसायटी द्वारा अभी देश के 18 राज्यों में 15 से 34 साल के उम्र के 9316 युवाओं और युवतियों पर एक सर्वे किया गया था। इस सर्वे में 45 प्रतिशत युवकों और युवतियों ने कहा था कि उनका स्क्रीन टाइम बढ़ा है।

सोशल मीडिया पर रहते हैं ऐक्टिव

ह्वाट्सएप, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर पर लोग सब से अधिक ऐक्टिव रहते हैं। इसी के साथ इन युवकों-युवतियों ने यह भी कहा था कि उनकी चिंता और भय में बढ़ावा हुआ है। दूसरे एक सर्वे में कहा गया है कि स्क्रीन टाइम बढ़ने की वजह से नींद कम हुई है। हमेशा कुछ न कुछ देखते रहने की वजह से आंखों को मेहनत पड़ती है। रात में बिस्तर पर लेटने पर भी तुरंत नींद नहीं आती। सोने से पहले अंतिम समय में भी लोग मोबाइल देख लेते हैं। रात में आंख खुलती है तो भी लोग मोबाइल चेक कर लेते हैं। सुबह उठने के साथ ही लोग पहला काम मोबाइल देखने का करते हैं। मजे की बात तो यह है की ज्यादातर लोगों को मोबाइल के पीछे समय बरबाद करने का अफसोस भी होता है।

मां-बाप से सीखते हैं बच्चे

बच्चे भी अब हाथ में मोबाइल लिए बैठे रहते हैं। बच्चों का स्क्रीन टाइम कभी चेक किया है? जो पैरेंट्स अपनी संतानों को जितनी देर उनकी इच्छा हो, उतनी देर मोबाइल उपयोग के लिए देते हैं, मां-बाप को देख कर ही वे यह सब सीखते हैं। मां-बाप ही जब मोबाइल के एडिक्ट होंगे तो बच्चों से अच्छी आशा कैसे रखी जा सकती है। बच्चों की आंखों की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। इसके पीछे भी स्क्रीन टाइम ही जिम्मेदार है।
नींद पूरी नहीं होगी तो पूरा दिन खराब होना ही है।

लाइफस्टाइल मैनेजमेंट के विचार

लाइफस्टाइल मैनेजमेंट एक्सपर्ट दिन को तीन हिस्सों में बांटने की बात कहते हैं। आठ घंटे काम और आठ घंटे अन्य दिनचर्या और आठ घंटे नींद। काम करते समय मोबाइल को दूर रखना चाहिए। रिलैक्स होने के लिए ही आठ घंटे हैं। इसके भी तीन हिस्से करने चाहिए। तीन घंटे दैनिक क्रियाओं के लिए, तीन घंटे स्वजनो से संवाद के लिए और तीन घंटे अपनी पसंद की प्रवृत्ति के लिए। इन तीनों घंटों को मोबाइल ही न खा जाए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

बात करते समय ध्यान कहां रहता है

आप किसी से बात करती हैं तो उससे आंख से आंख मिला कर बात करती हैं? ज्यादातर लोगों का ध्यान दूसरों से बात करते समय मोबाइल में ही होता है। ऐसा करना सामने वाले व्यक्ति का अपमान है। आप खुद ही सोचिए कि आप किसी से बात कर रही हैं और वह आप की ओर न देखे तो आप को कैसा लगेगा?

डिजिटल डिसिप्लिन

अब का समय डिजिटल डिसिप्लिन फाॅलो करने का है। लोग ट्रेन, बस या प्लेन में फुल वाॅल्यूम कर के कुछ देखते या वीडियो काल पर बाल करते रहते हैं। ऐसा करने वाला यह भी नहीं सोचता कि उसकी इस हरकत से कोई डिस्टर्ब या इरिटेट तो नहीं हो रहा। आप एंज्वाय कीजिए कोई दिक्कत नहीं है, पर दूसरों को खलल नहीं पहुंचनी चाहिए।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें

हर किसी को अपना बाॅडी क्लाक इस तरह सेट करना चाहिए कि अपनी शारीरिक और मानसिक स्वस्थता बनी रहे। शरीर का तो ऐसा है कि इसकी जैसी आदत डालेंगी, यह उसी में ढल जाएगा। नींद के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि नींद को बढ़ाएंगी तो बढ़ेगी, घटाएंगी तो घटेगी। तमाम लोग कहती हैं कि मैं छह घंटे ही सोती हूं। बहुत से महान लोगों के बारे में हमने सुना है कि वह मात्र इतने घंटे ही सोते थे। अच्छी बात है, पर वह जागते हुए क्या करते थे, यह जानना महत्वपूर्ण है। उनका शरीर उन्हें अधिक काम करने और कम सोने का परमिट करता रहा होगा। वे लोग जागते समय क्रिएटिव काम करते रहे होंगे। वे मोबाइल लेकर नहीं बैठे रहते रहे होंगे या टीवी में नहीं खोए रहते रहे होंगे।

मेडिकल साइंस क्या कहता है

मेडिकल साइंस कहता है कि आठ घंटे की नींद जरूरी है। संयोग से कभी नींद ज्यादा या कम हो जाए तो दिक्कत की कोई बात नहीं है। पर बाकी के संयोगों में शरीर को पूरा आराम तो मिलना ही चाहिए। जिस तरह कम सोना शरीर के लिए परेशानी खड़ी करता है, उसी तरह ज्यादा सोना भी शरीर को नुकसान पहुंचाता है। तमाम महिलाएं दस-बारह घंटे सोती हैं। इस तरह अधिक सोने की भी आदत पड़ जाती है। नींद का ऐसा नहीं है कि आज दो घंटे कम सो लिया तो कल दो घंटे ज्यादा सो लिया तो बराबर हो जाएगा। हां, कभी हम ऐसा करती हैं कि नींद न पूरी हुई हो या थकान लगी हो तो अगले दिन थोड़ा ज्यादा आराम कर लिया। इसमें भी कभी-कभी चल जाता है।

उठने पर फ्रेश फील हो

सच और अच्छी बात तो यह है कि बिस्तर पर पड़ते ही थोड़ी देर में नींद आ जानी चाहिए। रात को अच्छी और गहरी नींद आए और सवेरे नेचुरल कोर्स में नींद उड़ जाए। उठने पर एकदम फ्रेश फील होना चाहिए। नींद अच्छी न आने पर सवेरे उठने पर थकान महसूस होती है। अच्छी नींद के लिए जितना हो सके, स्क्रीन से दूर रहें। दिन में कुछ समय खुले में रहें।

खुद को वाॅच करें

खुद पर भी वाॅच रखना पड़ता है। ध्यान नहीं रखेंगी तो खुद ही खुद के हाथ से निकल जाएंगीं। कार होती है तो हम दिन भर घूमती ही नहीं रहती हैं। इसी तरह मोबाइल है तो दिन भर कुछ न कुछ देखते रहना जरूरी नहीं है। आंखों को आराम मिलना बंद हो जाएगा तो दृष्टि बदल जाएगी।

About author

Sneha Singh
स्नेहा सिंह

जेड-436ए, सेक्टर-12

नोएडा-201301 (उ.प्र.) 

Related Posts

Vikas aur paryavaran me santulan by Jay shree virami

November 7, 2021

विकास और पर्यावरण में सन्तुलन दुनियां में विकास और पर्यावरण में संतुलन अति आवश्यक हैं।किंतु विकास के लिए पर्यावरण के

एलर्जिक क्यों?

October 23, 2021

 एलर्जिक क्यों कई प्राकृतिक और कई अप्राकृतिक परिबलों का शरीर द्वारा प्रतिकार होने की प्रक्रिया हैं।ये प्रक्रिया सभी मानव शरीर

एक और चायवाले का बेटा वह भी गुजरात से

October 23, 2021

 एक और चायवाले का बेटावह भी गुजरात से हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जो एक ऐसे पिता की संतान है

सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से

October 23, 2021

 सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से – पुष्ट जानकारी प्रभावी संचार, सुशासन और पारदर्शिता की कुंजी है  मीडिया

युवाओं को भारत की प्राचीन परंपरा और संस्कृति से परिचित कराने की ज़रूरत

October 23, 2021

 युवाओं को भारत की प्राचीन परंपरा और संस्कृति से परिचित कराने की ज़रूरत – भारत की बहुलवादी संस्कृति में सामाजिक

क्यों शिकार होती हैं नारियां?

October 23, 2021

 क्यों शिकार होती हैं नारियां? हमारे देश में नौ दुर्गा की पूजा करते हैं नौरात्रों में,बहुत सारे श्लोक और पाठ

Leave a Comment