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कविता-सूखी लकड़ी की पुकार

मैं दर्द से तड़प रहा था — मेरे दोनों पैर कट चुके थे। तभी सूखी लकड़ी चीख पड़ी — इस …


मैं
दर्द से तड़प रहा था —
मेरे दोनों पैर
कट चुके थे।

तभी
सूखी लकड़ी
चीख पड़ी —
इस भीषण बर्फीली ठण्ड में
इन मासूम कुत्तों को
बचा लो!

मैं यह देख
रह गया स्तब्ध
जबकि —
हरे-भरे पेड़ और पौधे
बिलकुल मौन खड़े थे।

प्रतीक झा ‘ओप्पी’
शोध छात्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज


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