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सराहना बनाम अहंकार रूपी अदृश्य विष

सराहना बनाम अहंकार रूपी अदृश्य विष  आओ सराहना प्रशंसा और तारीफ़ में अहंकार रूपी अदृश्य विष को आने से रोकें …


सराहना बनाम अहंकार रूपी अदृश्य विष 

सराहना बनाम अहंकार रूपी अदृश्य विष | appreciation vs the invisible poison of ego
आओ सराहना प्रशंसा और तारीफ़ में अहंकार रूपी अदृश्य विष को आने से रोकें

सराहना में अद्भुत नई ऊर्जा का संचार होता है तो, अहंकार रूपी अदृश्य विष भी छुपा होता है जिससे बचना ज़रूरी – एडवोकेट किशन भावनानी 

गोंदिया – कुदरत द्वारा रचित इस खूबसूरत सृष्टि में बेहद शक्तिशाली बुद्धिमान मानवीय प्राणीकी रचना कर उसमें ऐसे अद्भुत गुणों की खान को मन, हृदय, मस्तिष्क रूपी शरीर के हिस्सों में इस तरह समायोजित किया है कि अपनें एक एक गुण शक्ति को पहचान कर उसे निखारा जाए तो श्रेष्ठ मानव की मिसाल कायम करने में देर नहीं लगेगी परंतु हम मानवीय जीव एसी उलझन में फंस कर रह गए हैं कि आज एक मानव ही दूसरे मानव का दुश्मन हो कर उसके हर काम की ऐसी आलोचना करता है कि सकारात्मक भाव, कार्य, गुण, मेहनत को नकारात्मक, निरउपयोगी और बेकार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता और अहंकार रूपी मैं मैं का बोध धारण कर उस विकार को अपनी शक्ति समझकर पालते है जबकि हम अपने दोस्तों की तो क्या, दुश्मनों के अच्छे कार्य की अगर थोड़ी सी सराहना तारीफ़ प्रशंसा कर दें तो उसके लिए यह औषधि का काम करेगी क्योंकि तारीफ़, प्रशंसा एक फूल की सुगंध रूपी व सार्थक शक्ति है जो मनुष्य की सोई हुई उर्जा को जगा कर मंजिल तक पहुंचाने का काम करती है, जब कोई हमारी सराहना तारीफ़ करता है तो हमारे व्यक्तित्व में मिठास घुलने लगती है। प्रशंसा की यह मिठास न केवल कानों में प्रवेश करती है बल्कि मन के द्वारा हृदय में घुल जाती है और हमारे मंजिल तक पहुंचने का कारण बनती है आज के आर्टिकल में हम इसी औषधि तारीफ़ और प्रशंसा रूपी सुगंध का विश्लेषण करेंगे। 
साथियों बात अगर हम तारीफ और प्रशंसा दोनों शब्दों की करें तो दोनों में बहुत सामान्य अंतर हैं, इनमें मुख्य अंतर यह है कि एक तारीफ़ कृतज्ञता, बधाई, प्रोत्साहन या सम्मान की अभिव्यक्ति है, जबकि प्रशंसा एक उचित मूल्यांकन या योग्यता, मूल्य या उत्कृष्टता की मान्यता का अनुमान हैं। इसका उपयोग उस व्यक्ति को धन्यवाद देने के लिए किया जाता है जिसने आपके लिए कुछ अच्छा किया है या कुछ ऐसा किया है जो आपको लगता है कि उसे प्रशंसा या विचार दिया जाना चाहिए। तारीफ का एक अच्छा उदाहरण है – आप वाकई साहसी हैं। प्रशंसा किसी ऐसी चीज़ की मान्यता या चिंता है जो आकर्षक है। किसी वस्तु को अत्यधिक ध्यान में रखना, जैसे मूर्ति का काम, उसकी सराहना करने का एक उदाहरण है। प्रशंसा को कृतज्ञता की भावनाओं के रूप में परिभाषित किया गया है। प्रशंसा का एक उदाहरण है – मैं आपके भारी काम और समर्पण के लिए सार्वजनिक रूप से आपको धन्यवाद देना चाहता हूं।
साथियों बात अगर हम तारीफ और प्रशंसा के सामर्थ्य व्यक्तित्व के गुणों की करें तो, एक श्लोक आया हैं।
अष्टौ गुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम: श्रतुं च!
पराक्रमश्चबहुभाषिता च दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च॥
अर्थ – सर्वेश्रेष्ठ आठ गुणों से मनुष्य की बहुत प्रशंसा होती है- 1. बुद्धि, 2. कुलीनता, 3. मन का संयम, 4. ज्ञान, 5. बहादुरी, 6. कम बोलना, 7. दान देना और 8. दूसरे के उपकार को याद रखना। इनका सामूहिक अर्थ, व्यक्ति अपनी बुद्धि का सही तरीके से उपयोग करना जानता है, वह अपनी लाइफ में बहुत सक्सेस पाता है। जो व्यक्ति बिना सोच-समझे कोई काम करता है, उसे अक्सर असफलता का मुंह देखना पड़ता है। जिस व्यक्ति का व्यवहार सरल और सहज होता है, वह भी अपने इस नेचर के कारण प्रसिद्धि पा सकता है। जबकि इसके उलट व्यवहार करने वाला व्यक्ति कभी किसी का प्रिय नहीं होता। जो व्यक्ति अपने मन यानी इंद्रियों को नियंत्रण में रखता है, वह साधु के समान होता है। ऐसा व्यक्ति महान गुरु बनकर भटके हुए मनुष्यों को रास्ता दिखाता है। यही काम करते हुए वह प्रशंसा और प्रसिद्धि पा सकता है। 
साथियों ज्ञान यानी नॉलेज। जिस व्यक्ति के पास ज्ञान होता है, वह हर समस्या का सामना कर लेता है। साथ ही वह लोगों को सही सलाह देकर उनकी परेशानियां भी कम करता है। ऐसे लोग अपने नॉलेज के दम पर अलग जगह बनाते हैं और प्रशंसा पाते हैं। जो व्यक्ति पराक्रमी यानी बहादुर होता है वह अपने दम पर प्रसिद्धि पाता है। विषम परिस्थिति में भी ऐसे लोग घबराते नहीं है और दूसरों की भी मदद करते हैं। इनका यही काम इन्हें लोकप्रिय बनाता हैं।जो व्यक्ति हमेशा सोच-समझकर बोलता है, कब क्या बोलना है यह जानता है, वह अपनी लाइफ में काफी प्रसिद्ध होता है। जो ज्यादा बोलते हैं, कब क्या बोलना है यह नहीं जानते, उनका कोई सम्मान नहीं करता। धर्मों में दान करनाअनिवार्य माना गया है। जो व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार दान करता है वह अपनी लाइफ में सक्सेस भी होता है और फेम भी पाता है। जीवन में कभी न कभी सभी को मदद की जरूर पड़ती है। जो लोग मदद करने वाले को भूल जाते हैं, उन्हें अपने जीवन में हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत जो लोग मदद करने वाले को हमेशा याद रखते हैं और उनके सुख-दुख में साथ देते हैं, वे भी प्रसिद्धि पाते हैं।
साथियों बात अगर हम तारीफ प्रशंसा की ज़रूरत की करें तो, सराहना प्रोत्साहन की जरूरत बच्चों ही नहीं, बडों को भी होती है। घर से लेकर स्कूल-कॉलेज, सार्वजनिक स्थलों और कार्यस्थल तक इसकी आवश्यकता पडती है। शिक्षक की जरा सी तारीफ से बच्चे का आत्मविश्वास बढसकता है तो पेरेंट्स का प्रोत्साहन उसे बेहतर भविष्य की ओर बढने को प्रेरित करता है। अरे वाह! तुमने तो इतना मुश्किल सवाल हल कर दिखाया, शाबाश! यह छोटा सा वाक्य नन्हे मस्तिष्क पर बडा प्रभाव पैदा करता है। सराहना के चंद लफ्ज रिश्तों को खुशगवार बना सकते हैं। मां, तुम्हारे हाथों में तो कमाल है! बच्चे की छोटी सी तारीफ मां की डिक्शनरी का सबसे खूबसूरत वाक्य बन सकती है। 
साथियों बात अगर हम धार्मिक साहित्य पुराणों में तारीफ़ प्रशंसा की करें तो, महाकवि कालिदास लिखते हैं- स्तोत्रं कस्य ना तुष्टये। स्तुति अर्थात् प्रशंसा किसे प्रसन्न नहीं करती है वेदों, पुराणों में देवी-देवताओं की स्तुति के लिए विविध स्तोत्रों की रचना की गई है। रामचरितमानस के किष्किंधा काण्ड में जब हनुमान को सीता की खोज में समुद्र के पार जाना था, वह उदास और गुमसुम से बैठे थे। उस समय रीछराज जामवंत की प्रशंसा प्रोत्साहित करने वाली थी और उन्हें सागर पार जाने का हौसला देने वाली थी। 
साथियों बात अगर हम सराहना तारीफ प्रशंसा में एक ट्विस्ट अदृश्य विष करें तो, यहीं से कुछ झंझटें भी शुरू हो जाती हैं, क्योंकि प्रशंसा के भीतर अदृश्य विष छुपा होता है। प्रशंसा हमें अच्छे कर्म के लिए प्रेरित कर सकती है या अहंकार पैदा कर गिरा भी सकती है। प्रशंसा को धीर-गंभीर लोग तुरंत पचाने में लग जाते हैं और किसी अच्छे काम के लिए प्रेरित होते हैं। प्रशंसा प्रेरणा बन जाती है। परंतु मूर्ख प्रशंसा सुनकर अहंकार पाल लेते हैं। उनका ‘मैं’ और प्रबल हो जाता है। ‘मैं’ लगभग दूसरी मौत का नाम है। हमें इससे बचना चाहिए, क्योंकि कुछ लोग हमारी प्रशंसा अहंकार बढ़ाकर हमें बर्बाद करने के लिए कर सकते हैं। यही प्रशंसा का जहर है।

साथियों चापलूसी और तारीफ दोनों का इस्तेमाल किसी की तारीफ करने के लिए किया जाता है। हालाँकि, चापलूसी और तारीफ में बड़ा अंतर है। चापलूसी और तारीफ के बीच मुख्य अंतर ईमानदारी में है। चापलूसी अत्यधिक या निष्ठाहीन प्रशंसा है जबकि तारीफ किसी चीज या किसी की वास्तविक प्रशंसा है। जैसा कि कहानीयों में देखा गया है, एक व्यक्ति आमतौर पर अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए दूसरे की चापलूसी करता है। उसका मकसद उस व्यक्ति से कुछ उधार लेना, किसी चीज के लिए मदद लेना, अपने बारे में सकारात्मक धारणा बनाना या यहां तक ​​कि नुकसान पहुंचाना भी हो सकता है। हालाँकि बहुत से लोग उनकी चापलूसी करते हैं, चापलूसी कभी भी किसी को प्रभावित करने का एक अच्छा तरीका नहीं है। यह व्यक्ति की जिद और बेईमानी को दर्शाता है।

 
साथियों कुछ लोग ऐसी श्रेणी में आते हैं जो न गंभीर होते हैं और न मूर्ख। इन्हें सहज कह सकते हैं। सबसे अच्छा तरीका यही है। सहजता से सुनिए और भूल जाइए। तब प्रशंसा ऐसा लाभ देगी, जो दिखेगा नहीं लेकिन भविष्य में काम कर जाएगा। आप सहज हैं तो सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि प्रशंसा के समय आपकी सोच, जो हो सो हो, लेकिन आलोचना के समय आप परेशान नहीं होंगे।आलोचना के समय धीर-गंभीर व्यक्ति को भी ताकत लगानी पड़ती है और मूर्ख तो आवेश में आ ही जाते हैं। सहज व्यक्ति दोनों ही स्थिति में अपनी खुशी से सौदा नहीं करेगा।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सराहना बनाम अहंकार रूपी अदृश्य विष।आओ सराहना प्रशंसा और तारीफ़ में अहंकार रूपी अदृश्य विष को आने से रोके।सराहना में अद्भुत नई ऊर्जा का संचार होता है तो, अहंकार रूपी अदृश्य विष भी छुपा होता है जिससे बचना ज़रूरी तारीफ़ प्रशंसा रूपी फूल की सुगंध रूपी सार्थक शक्ति मनुष्य की सोई हुई ऊर्जा को जगा कर मंजिल तक पहुंचाया जा सकता है। तारीफ़ प्रशंसा औषधि का काम करते हैं जो हमारे व्यक्तित्व में मिठास कानों से होते हुए मन के द्वारा ह्रदय में घुल जाती है।

About author

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 
किशन सनमुख़दास भावनानी 
गोंदिया महाराष्ट्र

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