Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Priyanka_saurabh, renu

समय की रेत पर निबंधों में प्रियंका सौरभ की गहरी आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि

‘समय की रेत पर’ निबंधों में प्रियंका सौरभ की गहरी आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि विभिन्न विधाओं की पांच किताबें लिख चुकी युवा …


‘समय की रेत पर’ निबंधों में प्रियंका सौरभ की गहरी आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि

समय की रेत पर निबंधों में प्रियंका सौरभ की गहरी आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि

विभिन्न विधाओं की पांच किताबें लिख चुकी युवा लेखिका प्रियंका सौरभ के निबंध-संग्रह ‘समय की रेत पर’ में भारतीय समाज, संस्कृति, इतिहास, धर्म, विरासत और भाषा आदि पर आधारित 43 निबंध हैं। विविधता को समाहित करने के बावजूद सभी निबंध विरासत और संस्कृति को बचाये रखने की छटपटाहट लिए हुए हैं। गहन गंभीरता और विचारशीलता से सराबोर इन निबंधों में हमारी विरासत और संस्कृति के इतिहास का आलोचनात्मक विश्लेषण है, वर्तमान की गहरी छानबीन है और उज्ज्वल भविष्य को दिशा देेने की कोशिश है। लेखिका आधुनिक चेतना के स्थान पर मध्यकालीन संकीर्ण मानसिकता के बढ़ते जाने को लेकर चिंतित है।

– रेनू शब्द मुखर

पहला ही निबंध ‘समय की रेत पर’ से ही किताब का भी नामकरण किया गया है, जो कि उचित जान पड़ता है। यह पूरे संग्रह का प्रतिनिधि निबंध है, जिसमें समाज परिवर्तन के लिए पुरुषार्थ की भूमिका को रेखांकित किया गया है क्योंकि गतिमान जीवन यात्रा में इंसान की इच्छाएं अनंत होती है। बिना पुरुषार्थ के भोजन भी नहीं मिल सकता है और बिना पुरुषार्थ के किसान खेती भी नहीं कर सकता है। ‘खंडित हो रहे परिवार’ में गिरावट के प्रतीक के रूप में आज खंडित हो रहे परिवारों की दशा की विवेचना है जिसमें लेखिका कहती है कि वैवाहिक सम्बन्ध टूटने, आपसे भाईचारे में दुश्मनी एवं हर तरह के रिश्तों में कानूनी और सामाजिक झगड़ों में वृद्धि हुई है। आज सामूहिकता पर व्यक्तिवाद हावी हो गया है. इसके कारण भैतिक उन्मुख, प्रतिस्पर्धी और अत्यधिक आकांक्षा वाली पीढ़ी तथाकथित जटिल पारिवारिक संरचनाओं से संयम खो रही है। जिस तरह व्यक्तिवाद ने अधिकारों और विकल्पों की स्वतंत्रता का दावा किया है। उसने पीढ़ियों को केवल भौतिक समृद्धि के परिप्रेक्ष्य में जीवन में उपलब्धि की भावना देखने के लिए मजबूर कर दिया है।

इस पुस्तक के निबंधों में लेखिका ने सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के विषयों जैसे-खंडित हो रहे परिवार, धर्म, मिट्टी के घर, देशभक्ति के मायने, आस्था पर निशाने, चरित्र शिक्षा, अंधविश्वास का दलदल, पुरस्कारों का बढ़ता बाजार, हमारी सोच, अंतरात्मा की आवाज, तीर्थयात्रा, जीवन की आपाधापी, पत्थर होती मानवीय संवेदना, संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते, रंगत खोते हमारे सामाजिक त्योहार, सनातन धर्म’ के बदलते अर्थ,बदलती रामलीला, शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा-घटता अपनापन, घर की दहलीज से दूर होते बुजुर्ग, प्रतिष्ठा की हानि, मूल आधार है हमारे सामाजिक त्योहार, अपनों से बेईमानी, पतन की निशानी, रामायण सनातन संस्कृति की आधारशिला, विरासत हमें सचमुच बताती हैं कि हम कौन हैं, राष्ट्रीय अस्मिता, सभ्यता, महिला सशक्तिकरण, भाषा और साहित्य इत्यादि विषयों पर गहरे विश्लेषण के साथ तर्कसम्मत, व्यावहारिक और ठोस चिंतन बहुत ही मुखर ढंग से प्रस्तुत किए हैं।

“इतिहास की जानकारी मनुष्य के भविष्य निर्माण के लिए होनी चाहिए इसलिए यह ज़रूरी है कि इतिहास में दर्ज हो चुकी सभ्यताएँ, संस्कृति, भाषा, साहित्य और कला सभी सुरक्षित होने के साथ पोषित और समृद्ध भी होती रहें।” पुस्तक के सभी निबंध सटीक, समसामयिक होने के साथ स्थायित्व लिए हुए हैं। निश्चय ही इन निबंधों में लेखिका का जागृत टिप्पणीकार होना हमारी विरासत और संस्कृति के असल को जितना सामने लाता है, उतना ही मानवीय विवेक के साथ संस्कृति के प्रति स्व:चेतना को भी। वे विचारधाराओं के बीच केवल चहलक़दमी नहीं करतीं, बल्कि उसके जीवन सापेक्ष सार्थक को वैचारिकी में लाती हैं। लेखनी की धनी प्रियंका सौरभ का इस कृति के माध्यम से बहुआयामी चिन्तन मुखर हुआ है। वे समसामयिक विषयों पर गहरी समझ रखती हैं। लेखिका ने सभी निबंधों में सन्दर्भ के साथ उदाहरण भी दिए हैं और तथ्यों के साथ गहरा विश्लेषण भी किया है।

कुल मिलाकर यह कृति हमरी विरसत,संस्कृति, मानवीय चेतना एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों की गहन पड़ताल करती है। पुस्तक पठनीय ही नहीं, चिन्तन मनन करने योग्य, देश के कर्णधारों को दिशा देती हुई और क्रियान्वयन का आह्वान करती वैचारिक विमर्श की समसामयिक कृति है। “समय की रेत पर” हमारी संस्कृति और विरासत से जुड़े समकालीन निबंधों का सशक्त दस्तावेज़ है। निबंधो का यह संग्रह हमारी विरासत और संस्कृत से जुड़े मुद्दों को समेटे है।

परिस्थितियों से प्रेरित लेखन जरा भी ऊबाऊ या दिखावटी नहीं होता। यहीं से सत्यता की सुगंध आने लगती है। प्रियंका जी के विषय व्यापक और महीन हैं। उनकी भाषा पर पकड़ बताती है कि भाषा पर किसी तरह का कोई समझौता उनके शब्दकोश में नहीं है। बहुत ही गहन और अंतर्द्वंद से उपजे विचारों को लेखों में ढालना आसान कतई नहीं है। उनके लेखों की हेडिंग से लेख का पूरा मजमून और संदर्भ सामने जैसे प्रकट हो जाता है। यही खासियत होती है लेखों के शीर्षक की जिसमें प्रियंका जी ने भरपूर काम किया है। लेख यदि भारी-भरकम हो और शीर्षक हल्का हो तो लेख की गरिमा अपने-आप ही कम हो जाती है। जो लोग अपने शीर्षक पर काम नहीं करते उनके लिए ये पुस्तक उदाहरण है। मैंने इधर समकालीन लेखकों में इस स्तर की पुस्तक यही पढ़ी है। प्रियंका सौरभ जी अपने नाम के मुताबिक आलोचना में महिलाओं की सौरभ बढा रही हैं।

नोशन प्रकाशन द्वारा एक बेहतरीन पुस्तक का आना साहित्य और साहित्यकार दोनों को समृद्ध करता है। पुस्तक के शीर्षक और उसके कवर, गेटअप, पेज की क्वालिटी, मुद्रण, लगभग बिना गलतियों के पुस्तक प्रकाशित करना आदि पर उनकी मेहनत रंग लाई है। सभी निबंध पठनीय हैं, जो कि विषय को लेकर गहरी आलोचनात्मक अंतर्द़ृष्टि प्रदान करते हैं। निबंधों की भाषा बहुत सशक्त है। अनेक स्थानों पर भाषा व्यंग्यात्मकता से धारदार बन गई है। इस महती पुस्तक के लिए नोशन प्रकाशन का बहुत अभिनंदन। एक गंभीर आलोचक और उसकी पुस्तक पर इससे ज्यादा और कुछ नहीं लिख सकते। यशस्वी रहो। आने वाले दिनों में आलोचना पर उनके और भी प्रोजेक्ट्स हमारे सामने मूर्तरूप लेकर आएं और साहित्य को समृद्ध करें, यही शुभकामनाएं।

*पुस्तक का नाम : समय की रेत पर
लेखक : प्रियंका ‘सौरभ’
लेखकीय पता : परी वाटिका, कौशल्या भवन,
बड़वा (सिवानी) जिला भिवानी, हरियाणा – 127045
मोबाइल : 9466526148, 7015375570
विधा : सांस्कृतिक निबंध
प्रकाशक : नोशन प्रकाशन समूह, चेन्नई।
संस्करण : 2023
मूल्य : ₹ 220/-
पृष्ठ संख्या : 140*
———————————————————-

About author 

Renu shabd mukhar
रेनू शब्द मुखर
सचिव संपर्क संस्थान एवं हिंदी विभागाध्यक्ष ज्ञान विहार स्कूल जयपुर, राजस्थान।
संपर्क -9610809995

Related Posts

पीढ़ी के अंतर को पाटना: अतीत, वर्तमान और भविष्य को एकजुट करना

November 8, 2023

पीढ़ी के अंतर को पाटना: अतीत, वर्तमान और भविष्य को एकजुट करना पीढ़ी का अंतर एक कालातीत और सार्वभौमिक घटना

करवाचौथ: वैज्ञानिक विश्लेषण

October 31, 2023

करवाचौथ: वैज्ञानिक विश्लेषण कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ कहते हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने

करवा चौथ में चाँद को छलनी से क्यों देखते हैं?

October 31, 2023

करवा चौथ में चाँद को छलनी से क्यों देखते हैं? हिन्दू धर्म में अनेक त्यौहार हैं, जिन्हें भक्त, पूरे श्रद्धाभाव

परिवार एक वाहन अनेक से बढ़ते प्रदूषण को रेखांकित करना जरूरी

October 31, 2023

परिवार एक वाहन अनेक से बढ़ते प्रदूषण को रेखांकित करना जरूरी प्रदूषण की समस्या से निपटने सार्वजनिक परिवहन सेवा को

सुहागनों का सबसे खास पर्व करवा चौथ

October 30, 2023

सुहागनों का सबसे खास पर्व करवा चौथ 1 नवंबर 2023 पर विशेष त्याग की मूरत नारी छाई – सुखी वैवाहिक

वाह रे प्याज ! अब आंसुओं के सरताज

October 28, 2023

वाह रे प्याज ! अब आंसुओं के सरताज किचन के बॉस प्याज ने दिखाया दम ! महंगाई का फोड़ा बम

PreviousNext

Leave a Comment