Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Bhawna_thaker, lekh

“संसार चक्र”

“संसार चक्र” इंसान का अवनी पर जन्म लेने का और तो क्या मकसद होगा? पर लगता है हर जीव को …


“संसार चक्र”

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर

इंसान का अवनी पर जन्म लेने का और तो क्या मकसद होगा? पर लगता है हर जीव को ईश्वर एक मकसद देकर बहा देता है निर्मल, निश्चल मन देकर सांसारिक बावड़ी में, जीव भी उत्सुक होता है ईश्वर ने दिए मकसद पर फ़तेह पाने। जीव का मकसद है परोपकार और अध्यात्म के अध्ययन से स्व की तलाश करना और दिन दु:खी की सेवा करना। पर क्या इस मकसद को पूरा कर पाते है हम? जी नहीं क्यूँकि संसार की चकाचौंध और मोहमाया में उलझकर रह जाते है।
विर्य बिंदु में से आहिस्ता-आहिस्ता पलते बढ़ते नीरव मौन को समेटे माँ के मंदिर जैसे पावन गर्भ गृह के भीतर आत्मा टहलती है तन का शृंगारिक पोशाक पहने ईश की रची माया जाल से मोहित। बस एक माँ की धड़कन पहचानती है बाकी आवाज़ों से अन्जान एक नन्ही दुनिया में फरिश्ते सी पलती है।
पर मौन और मकसद से रिश्ता टूट जाता है जन्म के पहले क्षण से ही। रोम-रोम शोर व्याप्त हो जाता है धीरे-धीरे मकसद भूलते शोर भाने लगता है और आत्मा आदि हो जाती है, ज़िंदगी शोर का मेला जो है।
भोर की पहली किरण चहचहाती है पंछियों के शोर से आहिस्ता-आहिस्ता दिनरथ तब्दील होता है शोर के समुन्दर में हर तरफ़ से बहते शोर की लहरों में खुद को भूलते मौन और शांति पीछे छूट जाते है। कितना रममाण होते भ्रामक रंगीनियों में शोर संग जश्न मनाते सफ़र कटता है उम्र का आत्मा भूल जाती है मौन का मतलब, और ईश्वर के दिए मकसद को। लालच और अहं की गहरी खाई में इतनी गिर जाती है आत्मा कि
अब तो प्रार्थना में आँखें मूँदे भी मन विचारों के शोर से उलझता है। जो जीव गर्भ में ईश से गुफ़्तगु किया करता था वह खुद के झमेलों में उलझते गुम हो गया है लुभाता है शोर और चित्र-विचित्र आवाज़ों से लदा दुन्यवी मेलों का मजमा।
फीर धीरे-धीरे फ़िसलता है वक्त वापस मोड़ मूड़ता कानों के पर्दे उम्र के आगे नतमस्तक होते जीर्ण-शीर्ण होते शोर से दामन झटक लेते है, मोह के धागे टूटने लगते है, अंतहीन सफ़र की तैयारी करते आत्मा वापस मौन के पदचिन्ह की ओर बढ़ते हौल-हौले गिरह छुड़ा लेती है शोर से एक डर के साथ कि ईश्वर पूछेंगे मकसद पूरा करके लौटे या माया भी साथ उठा लाए, और चल पड़ती है मौन से मौन तक का सफ़र पूरा करके।
मौन की क्षितिज पर आख़री मुकाम पाते विलीन हो जाती है आत्मा शांत अडोल फीर मौन धारण करते। मकसद तो पूरा हुआ नहीं इसलिए जन्म-मृत्यु के आवागमन के चक्रव्यूह का हिस्सा बनते वापस स्व की तलाश में वीर्य बिंदु बनकर किसी कोख को तलाशते आत्मा भटकती रहती है। संसार चक्र की यही परिभाषा है शायद।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर


Related Posts

इतिहासबोध : राजनीति में महिला और महिला की राजनीति

October 19, 2023

इतिहासबोध : राजनीति में महिला और महिला की राजनीति ब्रिटेन में कैंब्रिज यानी विश्व प्रसिद्ध विद्याधाम। दुनिया को विज्ञान और

2028 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक गेम्स में क्रिकेट की एंट्री पर मोहर लगी

October 19, 2023

क्रिकेट प्रेमियों के लिए 128 साल बाद ख़ुशख़बरी का जोरदार छक्का अमेरिका के लॉस एंजिल्स में 2028 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक

नवरात्रि – माता के नौ स्वरूप

October 19, 2023

 नवरात्रि – माता के नौ स्वरूप आज से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। इन नौ दिनों में पूरी

मानवीय सन्दर्भों के सशक्त रचनाकार डॉ. सत्यवान सौरभ

October 16, 2023

मानवीय सन्दर्भों के सशक्त रचनाकार डॉ. सत्यवान सौरभ विभिन्न विषयों के साथ-साथ खास तौर पर सम्पादकीय और दोहे लिखने की

कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट

October 16, 2023

कैश फॉर क्वेरी इन पार्लियामेंट वर्ष 1951 में जब देश में प्रोविजनल सरकार थी तब से अभी तक सवाल पूछने

शिक्षकों की व्यथा व उनका निराकरण

October 14, 2023

शिक्षकों की व्यथा व  उनका निराकरण  शिक्षक मानवीय व्यक्तित्व निर्माता हैं इसलिए अपनी शिक्षण क्षमताओं में विकास और छात्रों में

PreviousNext

Leave a Comment