Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Priyanka_saurabh

संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते

संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते आज हम में से बहुतों के लिए खून के रिश्तों का कोई महत्त्व …


संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते

संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते

आज हम में से बहुतों के लिए खून के रिश्तों का कोई महत्त्व नहीं। ऐसे लोग संबंधों को महत्त्व देने लगे हैं। और आश्चर्य की बात ये कि ऐसा उन लोगों के बीच भी होने लगा है जिनका रिश्ता पावनता के साथ आपस में जोड़ा गया है। वैसे तो हमारे सामाजिक संबंधों और सगे रिश्तों में खूनी जंग का एक लंबा इतिहास रहा है। पर पहले इस प्रकार की घटनाएं राजघरानों के आपसी स्वार्थों के टकराने तक सीमित रहती थीं। लेकिन अब यह मुद्दा और भी गंभीर हो गया है, क्योंकि अब छोटे-छोटे निजी स्वार्थों को लेकर रक्त संबंधों अथवा नातेदारी संबंधों की बलि चढ़ाने में आमजन भी शामिल हो गए हैं। वर्तमान की इस सच्चाई को प्रस्तुत करने में कोई हिचक नहीं कि तकनीकी मूल्यो, पूंजी के जमाव, आक्रामक बाजार, सूचना तकनीकी के साथ में सोशल मीडिया से बढ़ती घनिष्ठता जैसे कारकों के फैलाव के सामने परिवार, समुदाय तथा इनमें समाहित सामाजिक रिश्ते बौने नजर आ रहे हैं। इसलिए सामाजिक रिश्तों में टूटन की तीव्रता वास्तव में हमारी चिंता का विषय है।

प्रियंका सौरभ

पारिवारिक मूल्यों के छीजते जाने का रोना हर तरफ सुनाई देता है, पर इसकी तह में जाने की जरूरत है। क्या विकास की हमारी मौजूदा सोच से इसका कोई नाता नहीं है। आज सामाजिक संबंधों के साथ-साथ परिवार के आत्मीय रिश्तों से जुडे सरोकार भी बहुत कमजोर पड़ रहे हैं। सही बात यह है कि इस वैश्विक दौर में रक्त संबंधों के साथ में अब नातेदारी तथा रिश्ते भी स्वार्थ की आग में झुलसने को मजबूर हैं। परिवार के आत्मीय संबंधों पर चोट करने वाली तमाम घटनाएं आज देखने में आ रही हैं। समाज वैज्ञानिकों के लिए ये घटनाएं आज संयुक्त परिवार की टूटन, रक्त संबंधों में बिखराव तथा रातों-रात सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचने की लालसा जैसे कारणों के चलते सामाजिक संबंधों में बदलाव की तेज चाल को भी महसूस करा रही हैं।

वैसे तो हमारे सामाजिक संबंधों और सगे रिश्तों में खूनी जंग का एक लंबा इतिहास रहा है। पर पहले इस प्रकार की घटनाएं राजघरानों के आपसी स्वार्थों के टकराने तक सीमित रहती थीं। लेकिन अब यह मुद्दा और भी गंभीर हो गया है, क्योंकि अब छोटे-छोटे निजी स्वार्थों को लेकर रक्त संबंधों अथवा नातेदारी संबंधों की बलि चढ़ाने में आमजन भी शामिल हो गए हैं। वर्तमान की इस सच्चाई को प्रस्तुत करने में कोई हिचक नहीं कि तकनीकी मूल्यो, पूंजी के जमाव, आक्रामक बाजार, सूचना तकनीकी के साथ में सोशल मीडिया से बढ़ती घनिष्ठता जैसे कारकों के फैलाव के सामने परिवार, समुदाय तथा इनमें समाहित सामाजिक रिश्ते बौने नजर आ रहे हैं। इसलिए सामाजिक रिश्तों में टूटन की तीव्रता वास्तव में हमारी चिंता का विषय है।

वर्तमान की इस तेजी ते से भागती जिंदगी के मद्देनजर अब यह बहस चल पड़ी है कि क्या सामाजिक रिश्तों में अभी और कड़वाहट बढेगी? क्या भविष्य में विवाह और परिवार का सामाजिक-वैधानिक ढांचा बच पाएगा? क्या बच्चों को परिवार का वात्सल्य, संवेदनाओं का अहसास, मूल्मूयों तथा संस्कारों की सीख मिल पाएगी? क्या आने वाले समाजों में एकल परिवार के साथ में लिव-इन जैसेसंबंध ही जीवन की सच्चाई बन कर उभरेंगे? क्या इन रिश्तों की टूटन को बदलाव की स्वाभाविक प्रक्रिया माना जाए या इसे वैश्विक समाज के बदलाव की बयार समझा जाए? ये आज के कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं, जिनका जवाब खोजना समय की मांग है। एकल परिवार व धन की चाहत में यहां अपने ही जान के दुश्मन बन गए हैं।

कोई मां-बाप अपने बेटे व बहू से तंग आकर आत्महत्या का निर्णय कर रहा है। कोई बेटा कुछ रुपये के लिए बाप का ही कत्ल कर दे रहा है। मां-बाप की पेंशन की खातिर भाई-भाई आपस में लड़ रहे हैं। एकल परिवार की चाह बढ़ रही है। बिना परिश्रम के ही कम समय में अमीर बनने की लालसा लोगों को गलत राह पर ले जा रही है। इसमें बुजुर्ग अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं। सम्बन्ध क्या हैं? रिश्ते क्या हैं? रिश्तों और संबंधों में आपसी सामंजस्य, साहचर्य किस तरह का है? क्या रिश्ते और सम्बन्ध एक ही हैं? क्या रिश्ते और सम्बन्ध आपस में एकसमान भाव रखते हैं? ये ऐसे सवाल हैं जो आये दिन दिमाग में उलझन तो पैदा ही करते हैं, दिल में भी उथल-पुथल मचाते हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार हम संबंधों को लेकर सजग होते हैं और कई बार रिश्तों का महत्त्व नहीं समझते हैं। इसके अलावा बहुत बार ऐसा भी होता है कि किसी व्यक्ति के लिए संबंधों के साथ-साथ रिश्तों की भी महत्ता होती है। इसके साथ-साथ समाज में ऐसे लोगों से भी सामना होता है जिनका सम्बन्ध सिर्फ उन्हीं लोगों से अधिक होता है जो उनके साथ किसी न किसी तरह का रिश्तेनुमा व्यवहार रखते हैं। वर्तमान स्थितियों को देखते हुए आज बहुतेरे लोग रिश्तों के साथ संबंधों को अहमियत देते दिखाई देते हैं जबकि बहुत से लोग संबंधों को तवज्जो देते हैं। यहाँ समझने का विषय मात्र इतना है कि किसी के लिए भी संबंधों और रिश्तों में अंतर कैसा है? इन दोनों शब्दों की परिभाषा उसके लिए किस स्तर की है?

असल में आज की भौतिकतावादी दुनिया में हम संबंधों और रिश्तों की महत्ता को भूल चुके हैं। आज हम में से बहुतों के लिए रिश्तों का कोई महत्त्व नहीं। ऐसे लोग संबंधों को महत्त्व देने लगे हैं। और आश्चर्य की बात ये कि ऐसा उन लोगों के बीच भी होने लगा है जिनका रिश्ता पावनता के साथ आपस में जोड़ा गया है। माता-पिता, भाई-बहिन आदि रक्त-सम्बन्धियों के अलावा एक रिश्ता आपस में सामाजिक रूप से इस तरह निर्मित किया गया है जो पावनता में, विश्वास में किसी भी रिश्ते से पीछे नहीं बैठता है। पति-पत्नी के रूप में बनाया गया यह रिश्ता भी आज कसौटी पर खड़ा कर दिया गया है। आये दिन इस रिश्ते को भी परीक्षा देनी पड़ती है। कभी इन दोनों को आपस में और कभी इन दोनों को सामाजिक रूप में तो कभी इनको पारिवारिक रूप में।

समय के साथ माता-पिता, भाई-बहिन आदि से दूरी बनती जाती है, भले ही ये दूरी दिल से न बने मगर ऐसा अपने रोजगार, कारोबार या अन्य कार्यों के चलते भौगौलिक रूप से अवश्य ही हो जाता है। जब हम परिवार संस्था के रूप में संबंधों का निरूपण करते हैं तो सहयोग,सामंजस्य व त्याग अपरिहार्य शर्त है। एक मां बच्चे के लिये तमाम तरह के त्याग करती है। पिता खून-पसीने की कमाई से उसका संबल बनकर बच्चे के भविष्य को संवारते हैं। तो ऐसा संभव नहीं है कि विवाह के उपरांत उनके दायित्वों से बेटा विमुख हो जाए। कहीं न कहीं नई पीढ़ी में वह धैर्य तिरोहित हो चला है जो रिश्तों के सामंजस्य की अपरिहार्य शर्त हुआ करता था। निस्संदेह, वैवाहिक रिश्तों में हर व्यक्ति को उसका स्पेस, आत्मसम्मान, आर्थिक आजादी और बेहतर भविष्य के लिये पढ़ने-लिखने का अवसर मिलना चाहिए। लेकिन यह परिवार की कीमत पर नहीं हो सकता।

हम अपने परिवार में रिश्तों की कई परतों में गुंथे होते हैं। एक व्यक्ति पुत्र,पिता,भाई और पति की भूमिका में होता है। उसे सभी संबंधों में अपनी भूमिका का निर्वहन करना होता है। जाहिर है एक लड़का और लड़की दो अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि और संस्कारों के बीच पले-बढ़े होते हैं। फिर एक परिवार में भी एक भाई व बहन के सोच-विचार और दृष्टिकोण भिन्न हो सकते हैं। भारतीय समाज में रिश्तों को सींचने की सनातन परंपरा सदियों से चली आ रही है। हम अपने माता-पिता के प्रति दायित्वों का निर्वाह करते हैं तो उससे संस्कार हासिल करके नई पीढ़ी उसका अनुकरण-अनुसरण करती है। यही सामाजिकता का तकाजा भी है। इन रिश्तों का निर्वाह एक-दूसरे के आत्मसम्मान और भावनाओं का सम्मान करते हुए ही संभव है।

जैसे कहावत भी है कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती, उसी तरह हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न हो सकता है। उसकी इस भिन्नता का सम्मान करना ही बेहतर रिश्तों की आधारभूमि है। निश्चित रूप से समय के साथ सोच, कार्य-संस्कृति, जीवन-शैली और हमारे खानपान-व्यवहार में बदलाव आया है। लेकिन मधुर व प्रेममय रिश्तों का गणित हर दौर में दो और दो चार ही रहेगा, वह पांच नहीं हो सकता। रिश्ते त्याग, समर्पण, विश्वास व एक-दूसरे का सम्मान करना मांगते हैं।

About author 

Priyanka saurabh

प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
facebook – https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/

twitter- https://twitter.com/pari_saurabh 


Related Posts

Kya sayana kauaa ….ja baitha by Jayshree birmi

November 17, 2021

 क्या सयाना कौआ………जा बैठा? हमे चीन को पहचान ने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती।हम १९६२ से जानते है

Sanskritik dharohar ko videsho se vapas lane ki jarurat

November 13, 2021

 भारत की अनमोल, नायाब, प्राचीन कलाकृतियां, पुरावशेष और सांस्कृतिक धरोहरों को विदेशों से वापस लाने की जांबाज़ी हर शासनकाल में

Bal diwas he kyo? By Jayshree birmi

November 12, 2021

 बाल दिवस ही क्यों? कई सालों से हम बाल दिवस मनाते हैं वैसे तो दिवस मनाने से उस दिन की

Bharat me sahitya ka adbhud khajana by kishan bhavnani gondiya

November 12, 2021

भारत में साहित्य का अद्भुद ख़जाना –   साहित्य एक राष्ट्र की महानता और वैभवता दिखाने का एक माध्यम है 

Masoom sawal by Anita Sharma

November 12, 2021

 ” मासूम सवाल” एक तीन सवा तीन साल का चंचल बच्चा एकाएक खामोश रहने लगा….पर किसी ने देखा नही।उस छोटे

Prithvi ka bhavishya by Jayshree birmi

November 12, 2021

 पृथ्वी का भविष्य  हमारे पुराणों और ग्रंथों  में पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर जो भी प्रलय हुए हैं उसके बारे

Leave a Comment