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श्रमिक | kavita -shramik

kanchan chauhan, poem

श्रमिक | kavita -shramik

एक मई को जाना जाता,श्रमिक दिवस के नाम से श्रमिक अपना अधिकारसुरक्षित करना चाहते हैं ,इस दिन की पहचान से।कितनी मांगे रखते श्रमिक,अपनी- अपनी सरकार से।


श्रमिक

एक मई को जाना जाता,
श्रमिक दिवस के नाम से।
श्रमिक अपना अधिकार
सुरक्षित करना चाहते हैं ,
इस दिन की पहचान से।
कितनी मांगे रखते श्रमिक,
अपनी- अपनी सरकार से।
हाड़ तोड़ मेहनत के बदले,
चंद रुपयों के नाम पर।
दिन भर मेहनत करता श्रमिक,
रात भर दर्द से कराहता है।
दर्द की पीड़ा से कराहता श्रमिक,
चैन से सो भी नहीं पाता है।

दर्द से राहत पाने को वह,
नशे की राह अपनाता है।
नशे की राह पर चल कर श्रमिक,
सब कुछ भूल ही जाता है।
कलह-क्लेश, गरीबी, लाचारी,
इन सब में फंसकर रह जाता है।
जीवन को जीना खुद भी भूला,
साथ ही अपनों का जीवन भी,
वह नशे की भेंट चढ़ाता है।
श्रमिक की इस तकलीफ़ को,
कोई भी समझ नहीं पाता है।
हाड़ तोड़ मेहनत के बदले,
वह नशे का रोग लगाता है।
चंद रुपयों के बदले श्रमिक,
जीवन का दांव लगाता है।

About author

कंचन चौहान,बीकानेर

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