Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Aalekh, Bhawna_thaker, lekh

लैंगिक असमानता आख़िर कब तक|gender inequality

“लैंगिक असमानता आख़िर कब तक” “महिलाएं भूमि अधिग्रहण कानून को समझो और अपने हक और अधिकार के लिए आगे आओ” …


“लैंगिक असमानता आख़िर कब तक”

लैंगिक असमानता आख़िर कब तक|gender inequality

“महिलाएं भूमि अधिग्रहण कानून को समझो और अपने हक और अधिकार के लिए आगे आओ”

आज़ादी के बाद से बेटियों के अधिकारों को कानूनी रूप से मजबूत बनाने के बावजूद आज भी संयुक्त परिवार की संपत्ति में बहुत कम महिलाएं सह-मालिक होती है। चाहे कितनी भी सदियाँ क्यूँ न बीत जाए समाज की सोच महिलाओं के प्रति अनमनी ही रहेगी खासकर विधवाओं के लिए कुछ लोगों की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आएगा। सर से पति का साया क्या उठ जाता है ज़िंदगी दोज़ख बन जाती है। छोटी उम्र होती है तो ससुराल वालों की या मायके वालों की मोहताज होती है और एक उम्र के बाद विधवा होती है तो बेटे और बहू की।

भारत में महिलाओं के भूमि अधिकारों का अध्याय, स्वाधीनता के सात दशकों के बाद भी अब तक अपूर्ण है। क्या समाज और सरकार के समक्ष महिलाओं को यह साबित करना होगा कि वह भी ‘समानता’ के संवैधानिक दायरों में शामिल हैं? या सार्वजनिक रूप से प्रमाणित करना होगा कि ‘संपत्ति और भूमि’ में कानूनन उनका भी आधा हिस्सा है? पितृसत्तात्मक व्यवस्था में यह सोच बहुत गलत है कि जमीन पुरुषों के नाम ही होनी चाहिए। अभी भी जमीन का मालिकाना हक महिलाओं के नाम नहीं के बराबर है। यही नहीं, विवाहित महिलाओं से उनके मायके वालों द्वारा निरंतर दबाव बनाया जाता है कि वे पैतृक संपत्ति पर अपना अधिकार छोड़ दें, और सच में महिलाएं अपना हिस्सा भाईयों को दान में देकर बलिदान दे देती है। 

हमारे समाज में अक्सर विधवाओं को उनकी सम्पत्ति से जुड़े अधिकारों से वंचित रखा जाता है, क्योंकि न तो उनको अपने अधिकारों की जानकारी होती है, न उनके पास अपना अधिकार साबित करने के लिए किसी भी तरह का ठोस काग़ज या डाॅक्यूमेंटस सबूत के तौर पर होता है। सम्पत्ति में अधिकार मिल जाने से विधवा औरतों को अपने बच्चों के पालन-पोषण और उनकी शिक्षा में आसानी हो जाती है। साथ ही उन्हें कई तरह के सरकारी लाभ भी मिलते है। इसके बारे में ज़्यादातर महिलाओं को पता भी नहीं होता। 

औरतों के लिए भूमि से जुड़े अधिकारों में सबसे बढ़ी बाधा लोगों की सोच होती है। कुछ महानुभावों का कहना होता है कि विधवाओं को सम्पत्ति का अधिकार हासिल करने के लिए क़ानून का सहारा लेने की बजाय दोबारा शादी कर लेनी चाहिए। विधवाओं के ससुराल वालों को यह चिंता सताती है कि अगर कोई विधवा दोबारा शादी करेगी तो सम्पत्ति पर उसके दूसरे पति का भी अधिकार हो जाएगा। उन्हें यह भी लगता है कि सम्पत्ति में हिस्सा मिल जाने के बाद बहू घर का काम करना बंद कर देंगी या घर छोड़ कर चली जाएगी। नतीजतन ससुराल वाले इन विधवाओं को उनके माता-पिता के घर वापस भेज देते है और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते है।

महिलाओं के भविष्य के लिए अगर पिता या पति के जीवित रहते ही औरतों का नाम सम्पत्ति के काग़ज़ों में जोड़ दिया जाए तो इस तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है। कुछ वर्ग में रिवाज़ होता है कि अगर कोई औरत विधवा हो जाती है तो उसे सामाजिक नियमों के अनुसार कुछ समय तक तक घर के अंदर ही रहना पड़ता है। मृत्यु प्रमाण पत्र की ज़रूरत और उसकी जानकारी के अभाव में आगे क्या करना है की असमंजस में रहती है। अगर कहीं से जानकारी हासिल होती है तब औरतें मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल करने के प्रयास में लग जाती है तब उन्हें नोटरी शुल्क सहित कई तरह के ख़र्च उठाने पड़ते है। इन काग़ज़ी कार्रवाई को पूरा होने में बहुत समय लगता है और उन औरतों को इसके लिए महीनों इंतज़ार करना पड़ता है। इन सभी मुश्किलों से बचने का कोई रास्ता नहीं है।

सरकारी कर्मचारी कई तरह के बहाने बनाते है जैसे आज हमारे पास फ़ॉर्म नहीं है, अगले सप्ताह आना या कभी कह देते हैं कि हमारे पास मुहर नहीं है बाद में आना इस वजह से पूरी प्रक्रिया लम्बी हो जाती है और औरतों को भूमि का अधिकार मिलने में देरी हो जाती है।

हर महिलाओं को अपने हक और अधिकारों के बारे में जानकारी रखनी चाहिए। पति के गुज़र जाने के बाद जो महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी नहीं होती उनकी आर्थिक स्थिति हमेशा से हाशिए पर रही है। महिला सशक्तिकरण के तमाम दावे इस सत्य की धज्जियां उड़ा देते है। बगैर आर्थिक सुदृढ़ीकरण के महिला सशक्तिकरण की हर परिभाषा और कोशिश अधूरी है। जिस तरह से बेटों का भविष्य सुरक्षित करने में माँ बाप अपना पसीना बहाते है, वैसे बेटियों के भविष्य के लिए भी प्रावधान रखें। शादी में दो चार लाख खर्च कर लिए मतलब फ़र्ज़ पूरा हो गया? नहीं दर असल पैतृक संपत्ति में बेटियों को भी बेटे के बराबर का हिस्सा मिलना चाहिए, और ससुराल वालों को भी बहू को अपने घर का सदस्य मानकर सारे अधिकार देने चाहिए। वरना महिलाएं पति की मृत्यु पश्चात न घर की रहती है न घाट की।

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर


Related Posts

वैश्विक परिपेक्ष्य में नव वर्ष 2024

December 30, 2023

वैश्विक परिपेक्ष्य में नव वर्ष 2024 24 फरवरी 2022 से प्रारम्भ रूस यूक्रेन युद्ध दूसरा वर्ष पूर्ण करने वाला है

भूख | bhookh

December 30, 2023

भूख भूख शब्द से तो आप अच्छी तरह से परिचित हैं क्योंकि भूख नामक बिमारी से आज तक कोई बच

प्रेस पत्र पत्रिका पंजीकरण विधेयक 2023 संसद के दोनों सदनों में पारित, अब कानून बनेगा

December 30, 2023

प्रेस पत्र पत्रिका पंजीकरण विधेयक 2023 संसद के दोनों सदनों में पारित, अब कानून बनेगा समाचार पत्र पत्रिका का प्रकाशन

भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक-आईएनएस इंफाल

December 30, 2023

विध्वंसक आईएनएस इंफाल-जल्मेव यस्य बल्मेव तस्य भारत की आत्मनिर्भरता का प्रतीक-आईएनएस इंफाल समुद्री व्यापार सर्वोच्च ऊंचाइयों के शिखर तक पहुंचाने

भोग का अन्न वर्सस बुफे का अन्न

December 30, 2023

 भोग का अन्न वर्सस बुफे का अन्न कुछ दिनों पूर्व एक विवाह पार्टी में जाने का अवसर मिला। यूं तो

शराब का विकल्प बनते कफ सीरप

December 30, 2023

शराब का विकल्प बनते कफ सीरप सामान्य रूप से खांसी-जुकाम के लिए उपयोग में लाया जाने वाला कफ सीरप लेख

PreviousNext

Leave a Comment