लघुकथा–पढ़ाई
कुमुद ने शादी की तो किताबें छूट गईं। बच्चों की मार्कशीट देख कर खुश होने लगी। अपना सब कुछ उसने एक पाॅलीथिन में लपेट कर अलमारी की दराज में बंद कर दिया था। मार्कशीट और सर्टिफिकेट के साथ सपने भी। जो ज्यादातर महिलाएं करती हैं, अगर वही सब करना था तो इस तरह मेहनत कर के पढ़ाई करने की क्या जरूरत थी? उसकी अनपढ़ मम्मी उससे अच्छा घर का मैनेजमेंट करती हैं। पढ़ने में बेकार समय गंवाया। अफसोस करते हुए सारी मार्कशीट, सर्टिफिकेट समेट कर अलमारी की दराज में रख कर कुमुद फिर सफाई में लग गई।
कुमुद के दिन ऐसे ही मस्ती में बीत रहे थे। तभी अचानक एक दिन कार एक्सीडेंट में आशिष बिस्तर पर पड़ गया। अस्पताल का खर्च, बच्चों की फीस और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। घर की जिम्मेदारी खुद के कंधे पर आने से कुमुद ने हिम्मत कर के कहा, ” आप कहो तो मैं नौकरी कर लूं?”
इस विपरीत परिस्थिति में घर से परमीशन मिल गई। सालों बाद वह आश्चर्य से अपनी मार्कशीटें, सर्टिफिकेट देख रही थी। एक भावना के साथ मन में यह सवाल भी उठ रहा था कि “वह न पढ़ी होती तो… ये डिग्रियां न होतीं तो…?”
