Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

kishan bhavnani, lekh

मैं मैं का भाव मानवीय विकारों में से एक

 मैं मैं का भाव मानवीय विकारों में से एक मैं – मेरी प्रतिभा – मेरा नेतृत्व सर्वोपरि हैं अभिमान का …


 मैं मैं का भाव मानवीय विकारों में से एक

मैं मैं का भाव मानवीय विकारों में से एक
मैं – मेरी प्रतिभा – मेरा नेतृत्व सर्वोपरि हैं अभिमान का बढ़ता प्रचलन!

वर्तमान परिवेश में राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त पारिवारिक आध्यात्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक सहित अन्य क्षेत्रों में भी नेतृत्व करने की होड़- एड किशन भावनानी

गोंदिया – आज वैश्विक स्तर पर अगर हम मनुष्य प्रवृत्ति देखें तो सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, आर्थिक, पारिवारिक इत्यादि अनेक क्षेत्रों में अधिकतर व्यक्तियों में मैं का भाव अधिक देखने को मिलता है। जो सोचते है कि अगर मै नहीं होता तो ये काम नहीं होता या होता भी तो मै ही कर सकता था और ये तो मेरे कारण ही हो रहा है,ऐसा भाव अधिकतर मनुष्यों में होता है। यही उनकी असफलता, आपस में फूट, विभाजन व परेशानियों का कारण बनता है। हम उपरोक्त हर क्षेत्र में देखते हैं कि ऐसी प्रवृत्ति मिलती ही है। अगर ये मनुष्य की प्रवृत्ति समाप्त हो गई तो फिर जीवन एक अलौकिक सुखों से भरपूर हो जाता है। 

साथियों दूसरी बात मेरी प्रतिभा प्रवृत्ति – मनुष्य को अपनी प्रतिभा पर बहुत गर्व होता है कि ये सब मेरी प्रतिभा के कारण हो रहा है, हालांकि प्रतिभा हर व्यक्ति का वह हथियार होता है जो की उसे भगवान् द्वारा अनूठा मिलता है इस दुनिया में हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ टैलेंट जरूर होता है इसीलिए जिसमे से कुछ लोगो को तो अपने टैलेंट के बारे में अत लग जाती है और कुछ लोग अपने टैलेंट को नहीं पहचान पाते।कुछ लोगो को अपनी प्रतिभा को पहचानने में थोड़ा समय लगता है। प्रतिभा हमें जन्मजात से ही प्राप्त होती है और हर व्यक्ति में एक अलग ही अपना-अपना टैलेंट होता है प्रतिभा का मतलब है की आप मनुष्य की वह स्थिति जिस स्थिति में वह अन्य लोगो के मुकाबले अधिक ज्यादा जानता हो या फिर कोई ऐसा अनूठा काम जो अन्य लोगो को करने के लिए या तो अलग से सीखना पड़ता है या फिर अलग से उस काम में कौशलता प्राप्त करनी पड़ती है।आसान भाषा में प्रतिभा आपकी नौसर्गिक प्रतिभाएं आपके व्यक्तित्व और पहचान का स्वाभाविक हिस्सा है और यह हमें व्यवसाय/नौकरी, शिक्षा, या जीवन के अन्य क्षेत्रो में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करती है।परंतु मनुष्य अपनी प्रतिभा को अपना गुरूर जो उसके विनाश का कारण बनता है और असफलताएं और परेशानियों के कारण उसका अंत होता है। 

साथियों यदि यह प्रवृत्ति निकल जाए और मालिक द्वारा बक्शी प्रतिभा का भाव आजाए तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। तीसरी बात – मेरा नेतृत्व सर्वोपरि – अधिकतर व्यक्तियों को ऐसा लगता है कि मेरा नेतृत्व सर्वोपरि है बस उनके आगे सब शून्य है।ये हमे उपरोक्त सभी क्षेत्रों में अक्सर दिख जाता है। अधिकतर व्यक्ति मेन आदमी बनकर नेतृत्व करना चाहते हैं कि मैं जैसा कहूं वैसा ही हो या मै सबका एक ग्रुप लीडर और सर्वेसर्वा बनू और जैसा मै बोलू मेरे साथी सब वैसा ही करें, यह हमे सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक क्षेत्रों में बहुत देखने को मिलता है। अधिकतर व्यक्ति बस किसी भी टीम, दल, परिवार, संस्था, ग्रुप, पंचायत, सभा, संगठन इत्यादि हर क्षेत्र का लीडर बनना पसंद करता है और जो उसका विरोध करते हैं उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। 

साथियों उपरोक्त संगठनों में हम देखते हैं कि हर व्यक्ति अपने 4-5 साथियों को मिलाकर एक नया संगठन खड़ा कर लेता है परन्तु अगर यह भाव आजाये कि किसी के नेतृत्व में, किसी के हाथ के नीचे, किसी के परोपकार में, किसी की सहायता में काम या सेवा करना छोटा नहीं कहलाता है तो सब परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है।कहने का भाव यह है कि अधिकतर व्यक्तियों की उपरोक्त तीनों भाव उसके स्वार्थ से समाए होते हैं। उपरोक्त तीनों स्थितियों में कहीं ना कहीं स्वार्थ का भाव छिपा होता है और स्वार्थ ही उपरोक्त मनुष्य की तीनों विकार प्रवृत्ति की जड़ है।

साथियों बात अगर हम निस्वार्थ संगठन विकास की करें तो संगठन, जिसे एक अथवा अधिक साझा लक्ष्य (यों) की प्राप्ति के लिये कार्यरत दो या ज्यादा लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है,कि अवधारणा निस्वार्थ संगठन विकास के मूल में है। इस संदर्भ में विकास यह धारणा है कि समय बीतने पर एक संगठन अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में अधिक प्रभावी बन सकता है।

संगठनात्मक विकास एक प्रणाली-स्तरीय अनुप्रयोग और रणनीतियों, संरचना और प्रक्रिया के नियोजित विकास, सुधार और पुनर्प्रवर्तन की ओर व्यवहारात्मक शास्र के ज्ञान का स्थानांतरण है, जिसका परिणाम संगठन की प्रभाव कारिता के रूप में मिलता है परंतु वर्तमान परिवेश में हम देखते हैं कि निस्वार्थ संगठित सेवा के लिए परिभाषित राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त आध्यात्मिक, शैक्षणिक, पारिवारिक, सामाजिक सहित अन्य क्षेत्रों में भी कुछ हद तक व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नेतृत्व करने की होड़ लग गई है।

अतः उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है।हमें दूसरों के लिए निस्वार्थ संगठनात्मक विकास द्वारा कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है। वाणी में भी आया है कि विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,

मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।

हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,

मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।

वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र)


Related Posts

Lekh aa ab laut chalen by gaytri bajpayi shukla

June 22, 2021

 आ अब लौट चलें बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी

Badalta parivesh, paryavaran aur uska mahatav

June 12, 2021

बदलता परिवेश पर्यावरण एवं उसका महत्व हमारा परिवेश बढ़ती जनसंख्या और हो रहे विकास के कारण हमारे आसपास के परिवेश

lekh jab jago tab sawera by gaytri shukla

June 7, 2021

जब जागो तब सवेरा उगते सूरज का देश कहलाने वाला छोटा सा, बहुत सफल और बहुत कम समय में विकास

Lekh- aao ghar ghar oxygen lagayen by gaytri bajpayi

June 6, 2021

आओ घर – घर ऑक्सीजन लगाएँ .. आज चारों ओर अफरा-तफरी है , ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत का

Awaz uthana kitna jaruri hai?

Awaz uthana kitna jaruri hai?

December 20, 2020

Awaz uthana kitna jaruri hai?(आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ?) आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ये बस वही समझ सकता

azadi aur hm-lekh

November 30, 2020

azadi aur hm-lekh आज मौजूदा देश की हालात देखते हुए यह लिखना पड़ रहा है की ग्राम प्रधान से लेकर

Previous

Leave a Comment