माँ का समर्पण
उसे निभाती एक स्त्री ।
सबको माफ कर चुप रहती।
ताने-बाते सब सह जाती ।
दुखी-भूखा देख तड़पती ।
बोझा ढोती, मेहनत करती,
बच्चों का हर सुख चाहती ।
कष्ट झेलती,उन्हें दुलारती,
स्नेहिल ममतामयी हृदयी माँ।
हर पल घर का ध्यान रखती,
अपने से पहले बच्चों को रखती।
बच्चों को ठोकर लग जाती,
आँसू माँ की आँखो में भर आते।
हर मुश्किल में सशक्त खड़ी हो,
हल खोजती मेहनत करती।




