Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Sonal Manju

भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार

 भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार बॉलीवुड में हर साल अलग-अलग जॉनर की कई फिल्में रिलीज होती हैं। कॉमेडी एक …


 भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार

बॉलीवुड में हर साल अलग-अलग जॉनर की कई फिल्में रिलीज होती हैं। कॉमेडी एक ऐसा जॉनर है, जिसे देखना हर कोई पसंद करता है। लेकिन आज बॉलीवुड जितना कॉमेडी के लिए फेमस है उतना आज से 80 साल पहले नहीं था और महिला कॉमेडियन तो भूल ही जाइए। उस दौर की फिल्मों में महिलाओं को हम रोने-धोने के किरदार में देखते हुए आ रहे थे। सिनेमा में मेल कॉमेडियन बहुत देखने को मिल जाते लेकिन फीमेल कॉमेडियन नहीं। लेकिन धीरे-धीरे उस जमाने में भी कुछ ऐसी साहसी महिलाएं आगे आई जिनकी सोच ने भारतीय सिनेमा का रुख बदल दिया। यदि आप पीछे मुड़कर देखें, तो आपको ऐसी कई अभिनेत्रियां मिलेंगी जो अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए जानी जाती हैं। जैसे ब्लैक एंड व्हाइट युग से टुनटुन और मनोरमा, 70 के दशक की चुलबुली-मजेदार प्रीति गांगुली और अस्सी के दशक की सदाबहार गुड्डी मारुति। इस लेख में हम आपको ऐसी ही कुछ अभिनेत्रियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो जब भी पर्दे पर नजर आईं अपने कॉमेडी से भरपूर किरदारों को अमर कर दिया।

टुनटुन

टुनटुन Tuntun

बॉलीवुड में 40 के दशक में एक ऐसी स्टार आईं जिन्होंने महिलाओं की छवि को बदला दिया। जी हां हम बात कर रहे हैं भारत की पहली महिला कॉमेडियन टुनटुन की।
टुनटुन का असली नाम उमा देवी खत्री था। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के पास एक छोटे से गांव में 11 जुलाई 1923 में हुआ था। टुनटुन, जिनका नाम सुनते ही हमारे सामने गोल-मटोल हसमुख सी छवि आ जाती है, दरअसल इनका प्रारंभिक जीवन बेहद कठिनाइयों से गुजरा। उमा देवी जब चार- पांच साल की थी तभी जमीन के विवाद में उनके माँ-बाप तथा भाई की हत्या कर दी गई थी। ऐसे में वो अपने चाचा के साथ रहने लगी और पेट भरने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू लगाने का काम करती थी।
23 साल की उम्र में उमा देवी भागकर मुंबई आ गई। उन्होंने मुंबई में संगीतकार नौशाद जी से फिल्मों में गाना गाने का काम मांगा। ऑडिशन के बाद 1947 में ‘दर्द’ फिल्म का यह गाना ‘अफसाना लिख रही हूं दिल-ए-बेक़रार का आँखों में रंग भर के तेरे इंतजार का’ उमा देवी का पहला गाना आया और यह गाना सुपरहिट रहा। पुराने गानों के शौकीन लोग आज भी इस गाने को बेहद पसंद करते हैं। इस गाने के बाद उनके कई और हिट गाने भी रहे जैसे ‘आज मची है धूम’, ‘ये कौन चला’, ‘बेताब है दिल’ आदि। दर्द फिल्म के बाद उन्होंने दुलारी, चांदनी रात, सौदामिनी, भिखारी, चंद्रलेखा आदि जैसी फिल्मों में गीत गाए।
उमादेवी ने गायन का प्रशिक्षण नहीं लिया था, इसीलिए धीरे-धीरे उनके गायन का काम सिमटता गया तब नौशाद जी ने उन्हें अभिनय में हाथ आजमाने की सलाह दी। उमादेवी का सपना भी था कि बड़े पर्दे पर वो दिलीप कुमार के संग काम करे। भगवान ने उनकी सुन ली, उनकी पहली फ़िल्म ‘बाबुल’ में दिलीप कुमार लीड रोल में थे।
एक दिन शूटिंग के दौरान दिलीप कुमार के साथ एक सीन करते हुए वह उनके ऊपर गिर गई जिसके बाद दिलीप कुमार ने उमा देवी को टुनटुन उपनाम दिया। आगे चलकर यही नाम उनकी पहचान बना और लोगों ने उन्हें कॉमेडियन टुनटुन के रूप में बहुत पसंद किया। फ़िल्म रिलीज़ हुई और छोटे से रोल में भी उनका अभिनय काफ़ी सराहा गया। उसके बाद आई मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता गुरु दत्त की फ़िल्म मिस्टर एंड मिस 55 में उन्होंने अपने अभिनय के वे जौहर दिखाए कि हर कोई उनका कायल हो गया।
बाद में टुनटुन की ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि फ़िल्मकार उनके लिए अपनी फ़िल्म में विशेष रूप से रोल लिखवाया करते थे और टुनटुन भी हर रोल को अपने शानदार अभिनय से यादगार बना देती थीं। टुनटुन ने अपने फिल्मी करियर में लगभग200 फिल्मों में काम किया। 90 का दशक आते-आते उन्होंने फि़ल्मों में काम करना कम कर दिया और अधिकांश समय अपने परिवार के साथ गुजारने लगी। उनकी अंतिम फिल्म 1990 में आई ‘कसम धंधे की’ थी। 24 नवंबर 2003 में उन्होंने इस दुनिया से विदा ली, लेकिन आज भी वे हिन्दी फिल्मों की पहली और सबसे सफ़ल महिला कॉमेडियन के रूप में याद की जाती हैं।

मनोरमा

मनोरमा Manorama
आपको 1972 में आई फ़िल्म सीता और गीता तो याद ही होगी। हालांकि इस फ़िल्म में अभिनेत्री हेमा मालिनी ने गीता के रोल में लोगों को खूब हँसाया पर इसी फिल्म में सीता और गीता की “चाची” ने अपने अभिनय से सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। ये अपने चाची रोल से ही फेमस हो गई। इन्हें फिल्मों में काम और मनोरमा नाम प्रोड्यूसर-डायरेक्टर रूप किशोर शोरी ने दिया।
1926 में लाहोर में जन्मी मनोरमा आइरिश मां और पंजाबी क्रिश्चियन पिता की बेटी थी। उसका नाम रखा गया, एरिन इसाक डेनियल। बचपन से ही फिल्मों में आ गयी, बेबी एरिन के नाम से।
मनोरमा कई उर्दू और पंजाबी फ़िल्मों की नायिका भी रही। 1941 में उन्हें ‘खजांची’ में एडल्ट रोल में देखा गया। 1946 में उनकी तीन फ़िल्में खामोश निगाहें, रेहाना और शालीमार रिलीज़ हुईं । पार्टीशन के बाद वो बम्बई आ गयीं। नयी जगह पर जमने में थोड़ा वक़्त लगा। 1948 में ‘चुनरिया’ रिलीज़ हुई। फिर उसी साल दिलीप कुमार के साथ ‘घर की इज़्ज़त’. इसमें वो दिलीप कुमार की छोटी बहन बनीं। हँसते आंसू, जौहरी में उन्हें सेकंड लीड मिली। इस बीच उनका वज़न बहुत बढ़ गया और वो समझ गयीं कि हीरोइन बनना उनके नसीब में नहीं है।
फिल्मों में काम करते-करते मनोरमा को एक कश्मीरी नौजवान राजन हक्सर से प्यार हो गया। दोनों ने शादी कर ली। राजन हक्सर विलेन के तौर पर पहचाने जाते थे। अगर शम्मी कपूर की ‘जंगली(1961) देखी हो तो याद होगा कि उसमें विलेन राजन हक्सर ही थे। राजन ने करीब दो सौ फ़िल्में की। मगर इसके बावजूद वो गुमनामी में परलोक सिधार गए। बहरहाल, उनकी शादी सिर्फ बीस साल चलने के बाद टूट गयी। और मनोरमा अकेले ही संघर्ष करती रही। शुरुआत में वह बतौर एक्ट्रेस फिल्मों में नजर आईं। लेकिन फिर वह बाद में विलेन और कॉमिक किरदार निभाने लगीं।
मनोरमा की यादगार फ़िल्में हैं, एक फूल दो माली, दस लाख, दो कलियाँ, नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, हाफ टिकट, मुझे जीने दो, मेरे हुज़ूर, शोर, बनारसी बाबू, लफंगे, लावारिस, झनक झनक पायल बाजे, कारवां, महबूब की मेहंदी, बॉम्बे तो गोवा, जौहर महमूद इन हांगकांग, बद्तमीज़ आदि। उन्होंने करीब डेढ़ सौ फ़िल्में कीं। फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया तो टेलीविज़न की तरफ मुड़ गयीं। एकता कपूर के बालाजी के दो सीरियल्स में लम्बे समय तक नज़र आयीं, कश्ती और कुंडली।

समलैंगिकता पर बनी ‘फायर’ (1996) फेम दीपा मेहता की कनाडा के सहयोग से बनी ‘वाटर’ (2005) मनोरमा की आखिरी फिल्म थी। बाल विवाह और विधवाओं के नारकीय जीवन पर प्रहार करती इस फिल्म में उन्होंने संवासनी आश्रम की क्रूर संचालिका मधुमती का किरदार निभाया था। समीक्षकों ने उन्हें बहुत सराहा। पुरातनपंथियों के लाख विरोध के बावजूद ये विवादास्पद फिल्म करीब पांच साल तक बनती रही। इस बीच कई आर्टिस्ट बदल गए, फिल्म के कई हिस्से दोबारा शूट किये गए, मगर मनोरमा का किरदार जस का तस रहा। 15 फरवरी 2008 को आये हार्टअटैक के चलते 83 साल की मनोरमा ने ख़ामोशी से इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

प्रीति गांगुली

प्रीति गांगुली preeti Ganguly

हिंदी सिनेमा के इतिहास में बहुत कम ही ऐसे लोग हैं जिन्हें नाम से कम और काम से ज्यादा पहचाना जाता है। प्रीति गांगुली का नाम भी उन्हीं अदाकाराओं में शामिल है। प्रीति गांगुली को हिंदी सिनेमा में उनके कॉमिक रोल के लिए जाना जाता है।
इनका जन्म 17 मई 1953 मुंबई में हुआ था। प्रीति हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता अशोक कुमार की बेटी थीं। प्रीति अपने पिता के बहुत करीब थीं और हमेशा उनकी फिल्में देखती थीं। अपने पिता की फिल्म देखने के दौरान उन्होंने अपने पिता की तरह एक लोकप्रिय अभिनेत्री बनने का फैसला किया। और उनका सपना तब सच हो गया जब उन्हें पहली फिल्म धुएं की लकीर मिली।
प्रीति गांगुली ने 1970 और 1980 के दशक में बॉलीवुड फिल्मों में कई हास्य भूमिकाएँ निभाईं। ये बासु चटर्जी की कॉमेडी फिल्म खट्टा-मीठा (1978) में अमिताभ बच्चन की कट्टर प्रशंसक फ्रेनीसेथना की हास्य भूमिका के लिए लोकप्रिय हैं। उन्होंने ज्यादातर ऐसी भूमिकाएँ निभाईं जो दर्शकों को हास्यपूर्ण राहत प्रदान करती थीं, विशेष रूप से एक अत्यधिक स्वस्थ महिला की भूमिकाएँ। प्रीति गांगुली की मुख्य फ़िल्में गिन्नी और जॉनी, लैला मजनू, उत्तर दक्षिण, सुपरमैन, प्यार के काबिल, वक्त की दीवार, बंदिश, थोड़ी सी बेवफाई, झूठा कहीं का, दामाद, अनमोल तस्वीर, तृष्णा, दिल्लगी, आहूति, अनुरोध, बालिका बधू, रानी और लालपरी, परिणय आदि हैं।
प्रीति गांगुली ने एक फ़िल्म निर्देशक शशधर मुखर्जी से शादी कर ली, जोकि सुबोध मुखर्जी के भाई थे। बाद में प्रीति ने अपना वजन कम करना शुरू कर दिया। लेकिन लगभग 50 किलोग्राम वजन कम करने के बाद, उनकी फिल्मी भूमिकाएँ कम हो गईं और बाद में 1993 में, अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने मुंबई में एक अभिनय स्कूल का उद्घाटन किया, और स्कूल का नाम अपने पिता के नाम पर “अशोक कुमार अकादमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट्स” रखा, जहाँ उन्होंने फिल्म प्रशंसा कक्षाएं भी लीं। लंबे अंतराल तक ये फिल्मों से दूर रही। कुछ साल बाद, ये इमरान हाशमी की फिल्म आशिक बनाया आपने(2005) और तुम हो ना(2005) में नजर आईं। 2 दिसंबर2012 को दिल का दौरा पड़ने से इनकी मृत्यु हो गई।

गुड्डी मारुति

गुड्डी मारुति Guddi maruti
90 के दशक में यूं तो कई सितारे हैं जिन्होंने अपने बेहतरीन अभिनय से लोगों का दिल जीता, लेकिन अपनी कॉमेडी से लोगों को हंसाने वाली गुड्डी मारुति आज भी याद की जाती हैं। दर्शक गुड्डी को ‘शोला और शबनम’, ‘आशिक आवारा’, ‘खिलाड़ी’, ‘दुल्हे राजा’ और ‘बीबी नंबर 1’ जैसी कॉमेडी फिल्मों में उनके जबरदस्त रोल के लिए याद करते हैं।
गुड्डी मारुति का जन्म 4 अप्रैल 1961 को मुंबई में हुआ। इनका असल नाम ताहिरा परब है। इनके पिता मारुतिराव परब डायरेक्टर, राइटर और शानदार एक्टर भी रहे हैं। इसीलिए एक्टिंग गुड्डी को विरासत में मिली थी। घर वाले इन्हें प्यार से गुड्डी बुलाते थे। बॉलीवुड के जाने माने डायरेक्टर मनमोहन देसाई ने उन्हें गुड्डी मारुति स्क्रीन नेम दिया था। इसी नाम से वह फिल्म इंडस्ट्री में पॉपुलर हुईं।
इन्होंने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बॉलीवुड फिल्म ‘जान हाजिर है’ में भी काम किया। इसके बाद वह 80 के दशक में भी अभिनय की दुनिया मे सक्रिय रहीं। गुड्डी ने अपना बॉलीवुड डेब्यू साल 1980 में ‘सौ दिन सास के’ जरिए किया, लेकिन इन्हें अपनी पहचान बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। जब इन्होंने बॉलीवुड डेब्यू किया तो अगले साल ही इनके पिता चल बसे। इस वजह से उन्होंने दो साल फिल्मों में काम भी नहीं किया लेकिन जब इन्होंने वापसी की तो लगातार काम कर दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ी। हालांकि इनको पहचान 90 के दशक में मिली। मोटापे की वजह से इन्हें लीड रोल्स तो नहीं मिले लेकिन लीड एक्ट्रेस की बेस्ट फ्रेंड के कई रोल में दर्शकों को लोट-पोट कर दिया।
फिल्मों के बाद इन्होंने सीरयल में भी हाथ आजमाया और सफल रहीं। साल 1995 में उनका स्टैंड अप कॉमेडी शो ‘सॉरी मेरी लॉरी’ बहुत फेमस हुआ। इसमें उनके साथ ब्रजेश हीरजी भी थे। इसके अलावा ‘श्रीमान श्रीमति’ में मिसेज मेहता के किरदार में उन्होंने लोगों का दिल जीता। ‘अगड़म-बगड़म’, ‘मिस्टर कौशिक की पांच बहुंए’, ‘डोली अरमानों की’, ‘ये उन दिनों की बात है’ और ‘हैलो जिंदगी’ जैसी सीरियल्स में भी उन्होंने अहम किरदार निभाएं।
2002 में उन्होंने बड़े पर्दे से ब्रेक ले लिया था, लेकिन 9 साल बाद उन्होंने ‘मेरी मर्जी’ फिल्म से बड़े पर्दे पर वापसी की। आखिरी बार गुड्डी साल 2020 में शाहरुख खान के प्रोडक्शन में आई संजय मिश्रा की फिल्म ‘कामयाब’ में नजर आई थीं। गुड्डी मारुति ने बिजनेसैन अशोक से शादी की थी। ये अपने परिवार के साथ मुंबई के ब्रांदा में रहती हैं, और अक्सर इंस्टाग्राम पर फैमिली के साथ तस्वीरें पोस्ट करती हैं।

अब की बनने वाली फिल्मों में फ़िल्म की लीड अभिनेत्री और अभिनेता स्वयं ही कॉमेडियन की भूमिका खुद ही निभा लेते हैं। पहले जिस तरह कॉमेडियन के रोल लिखे जाते थे एवं इसके लिए अलग कलाकार इन भूमिकाओं को निभाते थे, वैसे पहले की भांति हास्य कलाकारों के रोल अब विरले ही देखने को मिलते हैं। लेकिन फिर भी फिल्मों में अभी भी कभी-कभी कुछ एक पात्र देखने को मिल जाते है, जैसे- भारती सिंह, उपासना सिंह, सुगंधा, जेमी लिवर आदि।

About author 

Sonal manju

सोनल मंजू श्री ओमर

राजकोट, गुजरात

Related Posts

Lekh aa ab laut chalen by gaytri bajpayi shukla

June 22, 2021

 आ अब लौट चलें बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी

Badalta parivesh, paryavaran aur uska mahatav

June 12, 2021

बदलता परिवेश पर्यावरण एवं उसका महत्व हमारा परिवेश बढ़ती जनसंख्या और हो रहे विकास के कारण हमारे आसपास के परिवेश

lekh jab jago tab sawera by gaytri shukla

June 7, 2021

जब जागो तब सवेरा उगते सूरज का देश कहलाने वाला छोटा सा, बहुत सफल और बहुत कम समय में विकास

Lekh- aao ghar ghar oxygen lagayen by gaytri bajpayi

June 6, 2021

आओ घर – घर ऑक्सीजन लगाएँ .. आज चारों ओर अफरा-तफरी है , ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत का

Awaz uthana kitna jaruri hai?

Awaz uthana kitna jaruri hai?

December 20, 2020

Awaz uthana kitna jaruri hai?(आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ?) आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ये बस वही समझ सकता

azadi aur hm-lekh

November 30, 2020

azadi aur hm-lekh आज मौजूदा देश की हालात देखते हुए यह लिखना पड़ रहा है की ग्राम प्रधान से लेकर

Previous

Leave a Comment