Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

lekh, Priyanka_saurabh

बेलगाम शिक्षा व्यवस्था: किताबों में कमीशन का खेल,

बेलगाम शिक्षा व्यवस्था: किताबों में कमीशन का खेल, अभिभावक रहे झेल स्कूलों की मनमानी, किताबें बनी परेशानी। निजी स्कूल बने …


बेलगाम शिक्षा व्यवस्था: किताबों में कमीशन का खेल, अभिभावक रहे झेल

बेलगाम शिक्षा व्यवस्था: किताबों में कमीशन का खेल,

स्कूलों की मनमानी, किताबें बनी परेशानी। निजी स्कूल बने किताबों के डीलर तो दुकानदार बने रिटेलर।

स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी की किताबों से पांच गुना तक महंगी हैं। एनसीईआरटी की 256 पन्नों की एक किताब 65 रुपये की है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्नों की किताब 305 रुपये में मिल रही है। कई किताबों में तो प्रिंट रेट के ऊपर अलग से प्रिंट स्लिप चिपकाकर प्रकाशित मूल्य से कहीं अधिक वसूली की जाती है। निजी स्कूलों में कमीशन के चक्कर में हर साल किताबें बदलने के साथ अलग-अलग प्रकाशकों की महंगी किताबें लगाई जाती हैं। अभिभावक भी बच्चों के भविष्य को लेकर ज्यादा विरोध नहीं कर पाते। छोटे-छोटे बच्चों की चुनिंदा किताबें लेना अब अभिभावकों की मजबूरी बन गई हैं। निजी स्कूलों की मनमानी से माता-पिता पिस रहे हैं। सरकार, जनप्रतिनिधि प्रशासन चुप हैं?

-प्रियंका सौरभ

स्कूलों में नया सत्र शुरू होते ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है। एक से दो माह की फीस के साथ स्कूलों में डेवलपमेंट फीस के नाम पर ली जाने वाली मोटी रकम भरनी है तो कॉपी-किताब भी खरीदना है। कॉपी-किताब का सेट इतना महंगा है कि उसे खरीदने में अभिभावकों के पसीने निकले जा रहे हैं। कई निजी स्कूलों में तो पहली व आठवीं कक्षा की किताबों का सेट छह से 10 हजार रुपये पड़ रहा है। प्रशासन और शिक्षा विभाग इस लूट पर चुप्पी साधे हुए हैं। इन दिनों सभी पुस्तक विक्रेताओं के यहां लंबी लाइनें लग रहीं हैं। परिजन बच्चों की किताबें खरीदने चुनिंदा दुकानों पर पहुंच रहे हैं। स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी की किताबों से पांच गुना तक महंगी हैं। अधिकांश निजी स्कूल संचालक राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबें मंगवाने में रुचि नहीं दिखाते। निजी विद्यालयों में 80 फीसदी निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें पढ़ाई जाती हैं।

इन किताबों की कीमत एनसीईआरटी से कई गुणा अधिक होती हैं। कई किताबों में तो प्रिंट रेट के ऊपर अलग से प्रिंट स्लिप चिपकाकर प्रकाशित मूल्य से कहीं अधिक वसूली की जाती है। निजी स्कूलों में कमीशन के चक्कर में हर साल किताबें बदलने के साथ अलग-अलग प्रकाशकों की महंगी किताबें लगाई जाती हैं। एनसीईआरटी की 256 पन्नों की एक किताब 65 रुपये की है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्नों की किताब 305 रुपये में मिल रही है। ऐसी कौन की किताबें स्कूल पढ़ा रहा है जो 500 से 600 रुपये में मिल रहीं हैं। इतनी महंगी तो बीए-एमए की किताबें भी नहीं आतीं। पहले बड़े बच्चे की किताबों से उनका छोटा बच्चा पढ़ लेता था क्योंकि किताबें वही रहती थी। लेकिन अब बड़े बच्चों की किताबें छोटा बच्चा प्रयोग नहीं कर पाता क्योंकि हर साल जान – बूझकर किताबों में कोई न कोई बदलाव कर दिए जाते हैं। किताबों के कवर भी बदले होते हैं जिससे पता नहीं चल पाता कि यह पुरानी पुस्तक है या नई। पुस्तक के एक पन्ने के संशोधन के लिए नई किताब लेनी पड़ती है।

स्कूलों का सिलेबस हर साल बदल जाता है। लेकिन एनसीईआरटी द्वारा बड़ी रिसर्चों के साथ बनाया गया पाठ्यक्रम बरसों से एक जैसा ही है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि निजी स्कूलों में लागू पाठ्यक्रम का स्टैंडर्ड एक ही साल इतना गिर जाता है कि स्कूलों को उसे बदलना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है, पाठ्यक्रम का स्टैंडर्ड तो ठीक होता है, लेकिन स्कूलों को अपनी कमीशन में कटौती का डर होता है। यदि पुराना सिलेबस लागू किया जाए तो छात्रों को वे सभी किताबें शहर की सभी दुकानों पर मिल जाएंगी। कुछ छात्र पुरानी किताबों के साथ भी काम चलाने का प्रयास करेंगे। ऐसे में निजी स्कूलों की अवैध कमाई को धक्का लग सकता है। निजी स्कूल इसके पक्ष में नहीं है। स्कूलों द्वारा जो पाठ्यक्रम में बदलाव होता है, वह केवल नाममात्र सीक्वेंस का बदलाव होता है। जिसमें किताबों में लिखे अध्याय की क्रम संख्या को बदल दिया जाता है, ताकि छात्र पिछले वर्ष की किताबों का इस्तेमाल न कर सकें। इसकी कोई समय सीमा क्यों नहीं तय की गई कि कितने समय के बाद पुस्तकों में संशोधन किया जाना है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से होने के बावजूद बच्चों को एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताबें लेने को कहा जाता है।

एनसीईआरटी की पुस्तकें तो हर दुकान में मिल जाती हैं पर निजी प्रकाशकों की किताबें लेने के लिए निश्चित दुकान पर आना पड़ता है। कहीं और ये किताबें नहीं मिलतीं। एटलस, मानव मूल्य की पुस्तक, व्याकरण, कॉम्पैक्ट, ग्राफ बुक, आदि ऐसी चीजें है जो पूरे साल कहीं नहीं लगतीं, फिर भी लेनी पड़ती हैं क्योंकि स्कूल कहता है। 488 रुपये की कॉम्पैक्ट असाइनमेंट, 50 रुपये की ग्राफ बुक आदि लेते-लेते बिल हजारों में चला जाता है।चाहे प्रदेश सरकार हो या केन्द्र सरकार, शिक्षा पर किसी का ध्यान नहीं है। इस क्षेत्र में निजी स्कूलों द्वारा जनता से खुली लूट हो रही है। कोई भी सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही। शिक्षा का स्तर क्या है और वहां किस प्रकार से लूट मची है? कोई देखने वाला नहीं है। स्कूल और निजी प्रकाशकों की दादागिरी पर प्रशासन भी चुप है और अभिभावकों के हित के लिए कुछ नहीं कर पा रहा। देश भर में प्रशासन ने निर्देश जारी किए है कि सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाएंगी, पर कोई भी निजी स्कूल इसका पालन नहीं कर रहा। सब अपनी मर्जी से प्राइवेट पब्लिशर की किताबों की सूची अभिभावकों को थमा रहे हैं। अभिभावक भी बच्चों के भविष्य को लेकर ज्यादा विरोध नहीं कर पाते।

एनसीईआरटी की किताबों में पुस्तक विक्रेताओं को मात्र 15 से 20 फीसद ही कमीशन मिलता है। जबकि अन्य प्रकाशकों से 30 से 40 फीसदी तक कमीशन देते हैं। इसके अलावा स्टेशनरी के आफर अलग मिलते हैं। इस मोटे कमीशन के लालच में स्कूल संचालक प्रकाशकों से सीधा डील कर सीधे स्कूलों में ही किताबें मंगा लेते हैं। जिससे पुस्तक विक्रेताओं को मिलने वाली पांच से 10 फीसदी का कमीशन भी निजी स्कूलों को मिलता है या फिर स्कूल द्वारा निर्धारित किए गए पुस्तक विक्रेताओं से अपना कमीशन प्राप्त करते हैं। प्रतिवर्ष होने वाले इस खेल में ही स्कूल संचालकों को लाखों का फायदा होता है। कोई भी अभिभावक अपने बच्चे के भविष्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहता क्योंकि शिकायत के बाद पुस्तक विक्रेता पर कार्रवाई हो न हो, स्कूल बच्चे पर जरूर कार्रवाई कर देगा। ऐसे में सवाल है कि क्या अधिकारियों को खुलेआम हो रही यह लूट दिखाई नहीं दे रही।

About author 

Priyanka saurabh

प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार
facebook – https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/
twitter- https://twitter.com/pari_saurabh

Related Posts

Lekh aa ab laut chalen by gaytri bajpayi shukla

June 22, 2021

 आ अब लौट चलें बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी

Badalta parivesh, paryavaran aur uska mahatav

June 12, 2021

बदलता परिवेश पर्यावरण एवं उसका महत्व हमारा परिवेश बढ़ती जनसंख्या और हो रहे विकास के कारण हमारे आसपास के परिवेश

lekh jab jago tab sawera by gaytri shukla

June 7, 2021

जब जागो तब सवेरा उगते सूरज का देश कहलाने वाला छोटा सा, बहुत सफल और बहुत कम समय में विकास

Lekh- aao ghar ghar oxygen lagayen by gaytri bajpayi

June 6, 2021

आओ घर – घर ऑक्सीजन लगाएँ .. आज चारों ओर अफरा-तफरी है , ऑक्सीजन की कमी के कारण मौत का

Awaz uthana kitna jaruri hai?

Awaz uthana kitna jaruri hai?

December 20, 2020

Awaz uthana kitna jaruri hai?(आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ?) आवाज़ उठाना कितना जरूरी है ये बस वही समझ सकता

azadi aur hm-lekh

November 30, 2020

azadi aur hm-lekh आज मौजूदा देश की हालात देखते हुए यह लिखना पड़ रहा है की ग्राम प्रधान से लेकर

Previous

Leave a Comment