Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Jitendra_Kabir, poem

दोमुंहे सांप- जितेन्द्र ‘कबीर’

दोमुंहे सांप वो लोगजो जहर उगलते हैंसार्वजनिक मंचों पर हर समयदूसरों के लिए,होते होंगे क्या इतने ही जहरीलेअपनी निजी जिंदगी …


दोमुंहे सांप

दोमुंहे सांप- जितेन्द्र 'कबीर'

वो लोग
जो जहर उगलते हैं
सार्वजनिक मंचों पर हर समय
दूसरों के लिए,
होते होंगे क्या इतने ही जहरीले
अपनी निजी जिंदगी में भी
सबके लिए?
अगर होते होंगे
तब तो बड़ा मुश्किल होता होगा
उनके परिजनों, पड़ोसियों और
रिश्तेदारों को
उनके साथ निबाहने के लिए,
लेकिन अगर नफरत का यह चोला
रखा होगा उन्होंने
सिर्फ दूसरों के लिए,
अपने करीबी लोगों से
वो भी करते होंगे प्यार,
फिक्रमंद रहते होंगे वो भी
अपने परिजनों के कुशल-मंगल के लिए,
तो समझना चाहिए उन्हें
कि उनका उगला जहर बन सकता है
अमंगल का कारण
न जाने कितनों के प्रियजनों के लिए,
उन्हें समझना चाहिए कि
बेकाबू आग लील जाती है खुद को ही
चाहे वो लगाई गई हो
किसी दूसरे के लिए,
उन्हें समझना चाहिए कि
नफरत का सांप दोमुंहा है,
जितनी नफरत करोगे तुम किसी दूसरे से
पाओगे उतनी ही खुद के लिए।

जितेन्द्र ‘कबीर’
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम – जितेन्द्र ‘कबीर’
संप्रति-अध्यापक
पता – जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र – 7018558314


Related Posts

Kavita mere mulk ki media by golendra patel

June 1, 2021

 मेरे मुल्क की मीडिया बिच्छू के बिल में नेवला और सर्प की सलाह पर चूहों के केस की सुनवाई कर

kavita chhijta vimarsh by ajay kumar jha

June 1, 2021

 छीजता विमर्श. दुखद- शर्मनाक जीवन पथ पर निरपेक्षता नामित शस्त्र से वर्तमान के अतार्किक भय में रिस रहा लहू इतिहास

kavita tahreer me pita by mahesh kumar .

June 1, 2021

 कविता.. तहरीर में पिता.. ये कैसे लोग हैं ..??  जो एक दूधमुंही नवजात बच्ची के मौत को नाटक कह रहें हैं…!! 

कविता-हार और जीत जितेन्द्र कबीर

June 1, 2021

हार और जीत ‘हार’ भले ही कर ले इंसान कोकुछ समय के लिए ‘निराश’लेकिन वो मुहैया करवाती है उसकोअपने अंतर्मन

kavita barkha shweta tiwari Mp.

June 1, 2021

बरखा बरखा रानी आओ ना  बूंद बूंद बरसाओ ना तपती धरती का व्याकुल अंतर्मन  क्षुब्ध दुखी सबका जीवन  शीतल स्पर्श

kavita vaqt by anita sharma jhasi

June 1, 2021

वक्त जुबां से आह निकली थी,लबों पे उदासी थी।क्या सोचा था,क्या पाया है,मन में उदासी थी। कभी ईश्वर से नाराजगी

Leave a Comment