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Jitendra_Kabir, poem

दोमुंहे सांप- जितेन्द्र ‘कबीर’

दोमुंहे सांप वो लोगजो जहर उगलते हैंसार्वजनिक मंचों पर हर समयदूसरों के लिए,होते होंगे क्या इतने ही जहरीलेअपनी निजी जिंदगी …


दोमुंहे सांप

दोमुंहे सांप- जितेन्द्र 'कबीर'

वो लोग
जो जहर उगलते हैं
सार्वजनिक मंचों पर हर समय
दूसरों के लिए,
होते होंगे क्या इतने ही जहरीले
अपनी निजी जिंदगी में भी
सबके लिए?
अगर होते होंगे
तब तो बड़ा मुश्किल होता होगा
उनके परिजनों, पड़ोसियों और
रिश्तेदारों को
उनके साथ निबाहने के लिए,
लेकिन अगर नफरत का यह चोला
रखा होगा उन्होंने
सिर्फ दूसरों के लिए,
अपने करीबी लोगों से
वो भी करते होंगे प्यार,
फिक्रमंद रहते होंगे वो भी
अपने परिजनों के कुशल-मंगल के लिए,
तो समझना चाहिए उन्हें
कि उनका उगला जहर बन सकता है
अमंगल का कारण
न जाने कितनों के प्रियजनों के लिए,
उन्हें समझना चाहिए कि
बेकाबू आग लील जाती है खुद को ही
चाहे वो लगाई गई हो
किसी दूसरे के लिए,
उन्हें समझना चाहिए कि
नफरत का सांप दोमुंहा है,
जितनी नफरत करोगे तुम किसी दूसरे से
पाओगे उतनी ही खुद के लिए।

जितेन्द्र ‘कबीर’
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम – जितेन्द्र ‘कबीर’
संप्रति-अध्यापक
पता – जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र – 7018558314


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