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चुप रहना शाब्दिक बाणों से अधिक तीखा प्रहार

चुप रहना शाब्दिक बाणों से अधिक तीखा प्रहार शाब्दिक बाणों से जो दिल पर घाव होते हैं वह तीक्ष्ण हथियारों …


चुप रहना शाब्दिक बाणों से अधिक तीखा प्रहार

चुप रहना शाब्दिक बाणों से अधिक तीखा प्रहार

शाब्दिक बाणों से जो दिल पर घाव होते हैं वह तीक्ष्ण हथियारों से कई गुना अधिक घातक होते हैं

हर बात को बोलने से पहले उसकी सटीकता को रेखांकित करना वर्तमान समय की मांग – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

गोंदिया – अंतरराष्ट्रीय स्तरपर कुछ दशकों से हम प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से देखते और सुनते आ रहे हैं कि फलां देश के बीच वन टू वन, ग्रुप वॉइस डायलॉग हुए जिसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम निकलते हैं जिसका लाभ मानवीय जीवन में दशकों तक उठाया जाता है परंतु कुछ दिन पूर्व एक प्रवक्ता द्वारा एक डिबेट कार्यक्रम में दिए गए बयान टिप्पणी को लेकर दंगे, दंगों का माहौल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाराजगी व्यक्त की गई है और आज भी तीखे डिबेट जारी हैं जिससे माहौल को गर्म महसूस किया जा रहा है, प्रवक्ता को सस्पेंड किया गया है हालांकि उनका भी कुछ तर्क है परंतु हम उस विषय में न जाकर आज इस आर्टिकल के माध्यम से वाद विवाद से बचने मौन अस्त्र के प्रयोग पर चर्चा करेंगे।
साथियों कई बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरपर ऐसी अनेक स्थितियां आती है जब किसी पक्ष का एक बयान, बोली, शाब्दिक वार्तालाप, निजी विचार, डिबेट में विचार, सुझाव दूसरे पक्ष को शाब्दिक बाण के रूप में लग जाता है और वही विवाद की जड़ हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप हानियों का अंत नहीं दिखता है इसलिए किसी ने सच ही कहा है कि वाणी एक अनमोल रत्न है, हर बात को बोलने से पहले उसकी सटीकता को रेखांकित करना वर्तमान समय की मांग है क्योंकि शाब्दिक बाणों से जो दिलों पर घाव होते हैं वह तीक्ष्ण हथियार से कई गुना अधिक घातक होते हैं इसीलिए वाणी का उपयोग सदैव सटीकता से और कम करना चाहिए। मौन यह मानवीय जीवन में वाद विवाद से बचने का कारगर और सटीक अस्त्र भी है जिसका उपयोग दुनिया के सबसे बड़े पदों पर बैठे महानुभाव से लेकर अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति को करना आवश्यक है।
साथियों बात अगर हम मौन के लाभों, फायदों की करें तो (1) वाद विवाद से बचने का कारगर उपाय है (2) व्यक्तित्व में निखार लाता है (3) दिमाग तेज काम करता है।(4) अनर्गल बातों में मन नहीं भटकता (5) तनाव दूर होता है (6) सोचने समझने की शक्ति का विकास होता है (7) ऊर्जा का विकास होता है (8) मुख से गलत अनर्गल वाणी नहीं निकलती (9) समाज में प्रतिष्ठा में निखार होता है (10) क्रोध पर नियंत्रण करने का सटीक उपाय है।
साथियों बात अगर हम धार्मिक साहित्य ग्रंथों में मौन और मौनव्रत के महत्व की करें तो, गीता में मानस तप के प्रकरण में एक सूत्र वाक्य आया है, वह है मौनमात्म विनिग्रहः, भाव संशुद्धिरित्येतत्तपो मानसः उच्यते। अर्थात मन को शुद्ध करने के लिए मानसिक तप की आवश्यकता होती है। मानसिक तप का प्रधान अंग मौनव्रत है। नारद ने प. उप. में इसी ब्रह्मनिष्ठा के प्रकरण में कहा है न कुर्यात् वदेत्किंचित् अर्थात् ब्रह्म-विकासी को मौन व्रत करना आवश्यक है। उपनिषदों में ‘अवाकी’ शब्द मौनव्रत को प्रकाश देता है। धर्मशास्त्र में कर्मांग में भी मौनव्रत बताया है। उच्चारे जप काले च षट्सुमौनं समाचरेत। जपकाल, भोजनकाल, स्नान, शौचकर्म में मौन रहना चाहिए। आचार प्रकरण में आता है ‘यावदुष्णं भवेदन्नं या वदश्नन्ति वाग्यतः पितरस्नाव दस्मिनियावन्नोक्ताः हविर्गुणाः। भोजन करते समय जब तक मौनपूर्वक भोजन करो तब वह भोजन देवता पितरों को पहुंचता है। इसी पर सनक जुजात गीता में कहा है ‘वाचोवेगं मनसः क्रोध वेग एतान् वेगान् योसहमे।’ इसका अर्थ है कि वाणी के, मन के, इंद्रियों के वेग को जो रोकता है वह ऋषि और ब्राह्मण है। चरक ऋषि ने विमानस्थान में आरोग्य की शिक्षा में कहा है ‘काले हितमितवादी’। जब कहने का अवसर हो तब संक्षिप्त शब्द और हितप्रद बात बोले।
साथियों बात अगर हम मौन को गहराई से समझने की करें तो, मौन का अर्थ है अपनी शक्ति का व्यय न करना। मनुष्य जैसे अन्य इन्द्रियों से अपनी शक्ति खर्च करता है, वैसे बोलने से भी अपनी बहुत शक्ति व्यय करता है। आजकल देखोगे तो छोटे बालक तथा बालिकाएँ भी कितना वाद विवाद करते हैं। उन्हें इसकी पहचान ही नहीं है कि हमें जो कुछ बोलना है, उससे अधिक तो नहीं बोलते और जो कुछ बोलते हैं वह ऐसा तो नहीं है जो दूसरे को अच्छा न लगे या दूसरे के मन में दुःख उत्पन्न करे। कहते हैं कि तलवार का घाव तो भर जाता है किंतु जीभ से कड़वे शब्द कहने पर जो घाव होता है, वह मिटने वाला नहीं है। इसलिए सदैव सोच-समझकर बोलना चाहिए। जितना हो सके उतना मौन रहना चाहिए। महात्मा गांधी प्रति सोमवार को मौन व्रत रखते थे। मौन धारण करने की बड़ी महिमा है। इसे धारण करोगे तो बहुत लाभ प्राप्त करोगे।
साथियों बात अगर हम मौन और गप्पे लड़ाने की तुलनात्मक व्याख्या की करें तो, कुछ लोग खाने-सोने तथा क्लब सोसाइटियों में गप्प लड़ाने के अभ्यस्त हो गए हैं। उनका विश्वास यह रहता है कि गपशप करने से मनोविनोद हो जाता है, किंतु यह बात सर्वथा असत्य है। व्यर्थ गप से अपनी वाणी की कुशलता का भ्रामक ज्ञान लोगों को होता है। गप्प करने से वाणी का तेज नष्ट हो जाता है। बकवादी का वेदमयी वाणी पर भी कम विश्वास होता है। गप्प से मन प्रसन्न रहेगा यह भ्रममात्र है। गप्प का परिणाम मन को खेदजनक बनाना है। यह शांतिकारक वाणी का दोष है। इसलिए परम शांति चाहनेवालों को मौनव्रत पर ध्यान देना चाहिए।
साथियों बात अगर हम मौन के महत्व की करें तो, मौन का जीवन मैं बहुत महत्व है, एक बहुत पुरानी कहावत है – एक चुप , सौ सुख!!कई बार मौन रहना किसी तनावपूर्ण स्थिति का समाधान बन जाता है, शब्दरूपी तीर एक बार जब कमान से निकल जाता है तो लौटकर नहीं आता , इसलिए जब शब्दों पर नियंत्रण न हो तो मौन रहने मैं ही भलाई होती है। मौन किसी विवादित स्थिति का शांतिपूर्ण हल है, मौन रहना एक भावनात्मक नियंत्रण के साथ साथ अभिव्यक्ति भी है। यह एक भाषा है जिसके माध्यम से अनर्गल विवाद से स्वयं को बचा सकते है। मौन को मीठी चुप्पी भी कहा गया है चूंकि वाचाल होना घातक सिद्ध हो जाता है जिह्वा से निकली अप्रिय शब्द तीर समान होते है वह व्यक्ति के साथ वातावरण को भी चोट पहुंचाता हैवी मौन रहना सेविंग अकाउंट हैवी इससे शारीरिक उर्जा को आसानी से बचाकर अन्य उपयोगी समय मे खर्च करने सेवा मानव कल्याण होगा
साथियों मौन रहना एक व्रत है, जिससे सहनशीलता का विकास होता है । मौन एक व्यायाम है बचपन मे बच्चो को मुहॅ पर अंगुली रखकर चुप रहने का प्रयास करवाया जाता है । व्यवहारिक तौर पर क्रोध पर नियंत्रण करने का सही तरीका चुप रहना है क्षण भर मे क्रोध खत्म हो जायेगा। मौन रहना एक साधना है इस साधना सेवा मानसिक शांति मिलती है और सकारात्मक विचार दिमाग मे आते हैं पर यह कभी कभी परिस्थिति को उलझा भी देता है मौन कभी-कभी हानिकारक भी हो जाता है सामने वाला व्यक्ति परिस्थिति का सही मूल्यांकन नही कर पाता है अतिशयोक्ति तो सभी जगह है।
साथियो हम कम बोलें, सारगर्भित बोलें, सुमधुर और हित से भरा बोलें। मानवी शक्तियों को हरने वाली निंदा, ईर्ष्या, चुगली, झूठ, कपट इन गंदी आदतों से बचें और मौन व सारगर्भिता का सेवन करें। दीपक जलता है तो बत्ती और तेल जलता है। इसी तरह जितना अधिक बोला जाता है, अंदर की शक्ति उतनी ही नष्ट होती है।
मौन की कोई भाषा नहीं
ना ही उसकी कोई परिभाषा
मौन से कभी कोई जीता नहीं
बहुत शक्तिशाली है भाषा
मौन की गूंज को सब समझते हैं
स्पष्ट अंदाज में महसूस करते हैं
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चुप रहना शाब्दिक बाणों से अधिक तीखा प्रहार। वाणी एक अनमोल रत्न है। हर बात को बोलने से पहले उसकी सटीकता को रेखांकित करना वर्तमान समय की मांग है। शब्द बाणों से जो दिल पर घाव होते हैं वह तीक्ष्ण हथियारों से कई गुना अधिक घातक होते हैं वाणी का उपयोग सदैव सटीक और कम करना चाहिए।

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कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट 

किशन सनमुख़दास भावनानी 
 गोंदिया महाराष्ट्र

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