Follow us:
Register
🖋️ Lekh ✒️ Poem 📖 Stories 📘 Laghukatha 💬 Quotes 🗒️ Book Review ✈️ Travel

Satish Chandra, story

कहानी-वह चली गई | kahani – wo chali gayi

 कहानी-वह चली गई | kahani – wo chali gayi वह निश्चेतन अवस्था में, बिना किसी हरकत के, आँख बंद किए …


 कहानी-वह चली गई | kahani – wo chali gayi

कहानी-वह चली गई | kahani - wo chali gayi

वह निश्चेतन अवस्था में, बिना किसी हरकत के, आँख बंद किए सोई सी पड़ी थी। बालों में कयी दिनों से कंघी नहीं की गई थी। कभी – मैं अपनी उंगलियों को कंघी की तरह उसके बालों में फेर दिया करता था बस! बाँकी साफ – सफाई बेटा करता था। अब तो उसकी साँसें भी साथ छोड़ गई थीं!

         मेरा बदन काँप रहा था। मेरा आधा नहीं पूरा बदन जवाब दे रहा था। एक सत्य आशंका से मेरी चेतना जवाब दे रही थी।

         आस – पड़ोस के लोग भी आ गये थे। वह अपने पार्थिव शरीर को छोड़ चुकी थी। लोग उसके भाग्य को और स्वभाव को सराह रहे थे। और मैं अपने दुर्भाग्य पर रो पड़ा था।

          वह सुहागन चली गई थी और मैं बिधवा हो गया था। बेटों और बहुओं को आज तक पता नहीं था कि, दुख किसे कहते हैं। वह नहीं जानते थे और आज माँ का साथ छूट गया था। सभी जोर – जोर से रो रहे थे। बहुओं को अब, आज से अंधेरा – अंधेरा लग रहा था।

           मेरी तो बसी – बसाई दुनिया ऊजड़ गई थी। बीमार थी लेकिन ताकत थी मेरी वह! किसे देना है, किससे लेना है, जब तक वह नहीं कहती, मैं कुछ भी नहीं कर पाता था। अच्छी सलाहकार थी वह मेरी।

          आज मुझे उसकी जरूरत थी और जरूरत में वह साथ छूट गया था।

           अब वह समा गई थी काल के गाल में। अब सब कुछ मेरा खत्म हो गया था। फिर भी अब बुढ़िया – पुराण शुरू हो गया था।

           दस दिन पानी बाती और फिर बाल साफ कराना और कर्म में जब यह कहा कि, ‘जो भी दोगे वह पाएगी !’ मन कर रहा था कि, सब कुछ उन महापात्रों को सौंप दूँ! लेकिन यह अब मेरे बस का नहीं था। बेटे – बहुओं ने जो कहा वही दिया था।

           तेरही के दूसरे दिन ही, सभी रिश्तेदार, मेहमान चले गए थे। मैं अकेला रो रहा था और वह कहीं भी नहीं दिखती थी।

          सूना – सूना सा द्वार, सूनी लगती थी वाहन दौड़ाती सामने की कोलतार वाली सड़क और सूना सारा वातावरण। मेरी तो सब कुछ, जीवन की अच्छी बगिया ही ऊजड़ गई थी। मित्रों के सांत्वना भरे संदेश आते थे। भला उनको कैसे समझाऊँ कि, मेरी दुनिया ऊजड़ गई है। मानता हूं कि, प्यार सभी पति – पत्नी करते हैं। लेकिन हमारा प्यार…! मेरी पत्नी आज – तक मुझसे जो मंगाया लाकर दे दिया। नहीं जाना कि, घर में क्या है, क्या नहीं।

          दस – दस दोस्त आ जाएं, नात – रिश्तेदार आ जाएं, बादशाह की तरह बैठा रहूँ, सभी व्यवस्था हो जाती, मेरी मूँछें कभी भी नीची नहीं हुईं।

      यह दुनिया भर का दर्द, दुनिया भर का सूनापन अब मेरे हिस्से आ गया था।

         उसने मरने से पहले एक गीत गाया था, ‘तेरी दुनिया से दूर चली, होके मजबूर चली !’

          आज का यह सूनापन, आकाश सा  सूनापन मुझे काटने को दौड़ रहा था। जिधर भी नजर दौड़ाता हूँ, कुछ भी नजर नहीं आता है। चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा काटने  को दौड़ता है।

          मेरे साथ यह प्रकृति भी रो रही है, लेकिन इस निर्दय भगवान के आगे किसी की नहीं चलती और उस भगवान के आगे किसी की नहीं चलती। और उस भगवान के यहाँ भी अच्छे लोगों की पुकार होती है, बुरे की नहीं।

           आज दुखी पूरा परिवार है, यार – दोस्त हैं, लेकिन मेरे दुख की सीमा नहीं है। मन को समझाता हूँ लेकिन, वह समझता नहीं है।

           मैं जीना नहीं चाहता, मरना चाहता हूँ लेकिन वह जानती थी इसीलिए मजबूत बेड़ियां डाल दी हैं, मैं चाहकर भी इस चहारदीवारी के बाहर नहीं जा सकता हूँ।

          सब कुछ है साथ कुछ लेकर नहीं गयी, घर – द्वार, बाग – बगीचे, खेती – बाड़ी लेकिन वह नहीं है। वह चली गई है और अब लगता है कि, सब कुछ चला गया है। मेरी लक्ष्मी चली गई है। सब कुछ खत्म हो गया है। मेरा पावर खत्म हो गया है। अब कोई हंसता है तो, बहुत बुरा लगता है।

          बहुत कुछ, बीती बातें याद आती हैं। वह कहा करती थी कि, “अब मेरे जाने का समय आ गया है, तुम्हें जो मिले खा लेना, मैं जानती हूँ, तुम रहोगे नहीं, मेरी बातें याद रखना, तुम जान नहीं देना और हमारे बेटे की शादी धूम – धाम से करना! समय कट जाएगा, दिन रात मेरी याद नहीं करना, हम फिर मिलेंगे ठीक!”

          बहुत कुछ भूली – बिसरी बातें याद आती थी और वह मुझे याद दिलाती थी।

          उसने जीवन में खूब तीरथ – ब्रत किए थे, लेकिन धन – सुख और कुछ भी नहीं माँगती थी। वह माँगती थी कि, “मैं अपने पति के आगे, उनकी बाहों में, सुहागन मर जाऊँ!”

         उसने एक दिन याद दिलाया था और कहा था कि, “मेरे पैर की मुँदरी और नाक की कील नहीं उतारने देना और श्रृंगार करके जला देना!”

          वह मुंह मांगा वरदान पा गई है और अब वह और उसकी यादें रह गयी हैं। अब तो मुझे तिल – तिल कर, जल – जलकर मरना होगा।

          सहसा किसी ने कुछ मांगा और मैं उठकर दरवाजे के अंदर गया। अभी देहरी डाँक कर अंदर पाँव रखा ही था कि, याद आया वह तो चली गई!

         वह चली गई जो मेरी हर समस्या का समाधान थी। वह चली गई जो मेरी ताकत थी, जो मेरी अच्छी सलाहकार थी। उससे पूछे बगैर मैं कोई काम नहीं करता था। और बिन मुझसे बताए वह भी कोई काम नहीं करती थी।

           वह चली गई जिसने यह पूरी गृहस्थी सजाई थी। वह चली गई जिसने मुझे जीना सिखाया था।

           मैं धम्म से सोफे पर गिर गया।

          आए हुए रिश्तेदार समझा रहे थे, लेकिन मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। चुपचाप शांत सुन रहा था।

-सतीश “बब्बा”

About author

सतीश चन्द्र मिश्र,
सतीश चन्द्र मिश्र, 
जिला – चित्रकूट, उत्तर – प्रदेश, 
पिनकोड – 210208.


Related Posts

कहानी रिश्ते

June 24, 2022

 कहानीरिश्ते   सुधीर श्रीवास्तव अभी मैं सोकर उठा भी नहीं था कि मोबाइल की लगातार बज रही  घंटी ने मुझे जगा

कहानी -मोहपाश

June 23, 2022

 “मोहपाश” भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर कच्ची कचनार सी सुंदर और नाजुक महक बारहवीं पास करते ही काॅलेज जाने के लिए

कहानी-आस्था ईश्वर पर रखिए

June 23, 2022

 “आस्था ईश्वर पर रखिए” भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर शादी के पहले दिन रिया सुबह नहा धोकर नीचे आई तो सासु

कहानी -कथिर से कुंदन बन गई

June 22, 2022

 “कथिर से कुंदन बन गई” भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर कुंतल आज UPSC पास करके कलेक्टर की कुर्सी संभालने जा रही

Five short stories by mahesh keshri

June 5, 2022

Five short stories by mahesh keshri Five short stories by mahesh keshri महेश कुमार केशरी जी के द्वारा लिखित पांच

भीड़ या भीड़ का हिस्सा

June 4, 2022

 भीड़ या भीड़ का हिस्सा हम सब बीरबल की इस कहानी से सुपरिचित हैं ही। एक बार राजा अकबर अपने

PreviousNext

Leave a Comment